दोष तो हमारा भी है
पिछले कई दिनों से राम रहीम सिंह का मसला अखबारों का मसाला बना हुआ है. इसके पहले आशाराम बापू का था. उसके पहले भी कई बाबा और साधु – साधुनिआं भी खबर बन चुकीं हैं. राम रहीम सिंह के बारे में सी बी आई जज जगदीप सिंह ने कहा था कि “ वह जंगली जानवर ( वाइल्ड बीस्ट ) की तरह काम करता था.” लेकिन जंगली जानवरों का एक कायदा होता है कि वह भूख लगने पर या उकसाए जाने पर ही हमला करता है. ये ना झूठ बोलते हैं, ना कभी ठगते हैं ना शोषण करते हैं. लेकिन जैसे जैसे खबरें बहार आ रहीं हैं गुरु राम रहीम सिंह जानवर से भी ज्यादा खतरनाक दिखने लगे है. वह मनोवैज्ञानिक तौर पर रोब गांठने में भी गुरु था. जेल से मिल रही ख़बरों के अनुसार राम रहीम वहाँ अवसाद, चिडचिडापन , बेचैनी और दुविधा का शिकार हो गया है. डाक्टरों के अनुसार यह काम व्यसन ( सेक्स एडिक्शन ) के कारण हुआ है. इसके अलावा भी बहुत कुछ है पर उसके आश्रम स्व जो वस्तुए बरामद हो रहीं हैं जैसे कलाशिनिकोव कि मगज़ीन के खोल, अनगिनत अस्थि पंजर टनों पटाखे और बारूद का कारखाना इनके बारे में क्या सफाई हैं. बाबा या उनके दंगाई शिष्यों के पास इनके लिए कोई कैफियत है? अब हिन्दू संतों कि सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् ने सरकार से अनुरोध किया है कि इन स्वयंभू गुरुओं के खिलाफ क़ानून बनायें. परिषद् ने 14 नकली बाबाओं कि सूची भी जारी की है. इनमे गुरमीत , नारायण साईं , राधे माँ, ॐ बाबा, निर्मल बाबा इत्यादि शामिल हैं. परिषद् ने ऐसे बाबाओं से सावधान रहने को कहा है. सबसे बसी बात है कि इन अध्यात्मिक ठगों से निपटने के लिए भारत में कोई क़ानून है नहीं. भारत में ठगी के लिए क़ानून तो है पर ये उससे ज्यादा बड़ी ठगी करते हैं . इनकी ठगी में वायदे और धन के अलावा भी बहुत कुछ होता है. आध्यात्मिक ठगी का इससे कुछ नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा बहुत से भगत तो इन गुरुओं पर स्वेच्छा से दौलत न्योछावर करते हैं और बिला शक ओ शुभा के उनकी बातों को सुनते हैं और उनपर अमल करते हैं. अब कैसे प्रमाणित होगा कि वे ठगे गए हैं. जबतक ये गुरु ह्त्या ना करें नया बलात्कार ना करें तबतक इन्हें क़ानून के दायरे में लाना कठिन है. दरअसल भगवद्भक्ति का यह पूरा बाज़ार लोकास्था प्रणाली पर कायम और चल रहा है. बाबाओं के इस आकस्मिक बाढ़ में क़ानून केवल सावधान रहने कि हिदायत देने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है. ये बाबा रहस्यमय सिद्धियों का दावा करते हैं और उनकी पीड़ा को दूर करने के लिए अतार्किक समाधान सुझाते हैं. इन बाबाओं ने न केवल हमारे देश के विकास की घडी को बल्कि विश्व के विज्ञान कि घडी को भी उलटा घुमा दिया है. अब राम रहीम सिंह नकी ही बात करें तो उसने क़ानून से बचने के उद्देश्य से व्यापक भक्ति और आदर के प्रसार में विगत 15 साल से लगा था. हरबार वह वह कोई घृणित अपराध करता और जनसेवा या सार्वजानिक रहत कार्य कि नाद में उसे छुपा देता. सन 2000 में खबर आयी कि उसने अपने 400 शिष्यों का जबरन बंध्याकरण किया है , 2001 में ओडिशा के तूफ़ान पीड़ितों के रहत कार्य में यह छिप , इसीतरह 2002 में एक पत्रकार से बलात्कार का मामला उठा और इसने 2003 में इतना बड़ा शिविर लगाया कि वह विश्व रिकार्ड बन गया. वह ये चक्कर चलाता रहता था.
इसमें हमारी सबसे बड़ी गलती है कि हम एक जनसमुदाय के तौर पर इस भगवान् गिरी के झांसे में आ जाते हैं. इनके दर्शन से सुख पाने लगते हैं. बेशक हमारेव समाज के कुछ लोगों में इनके प्रति क्षोभ की अन्तर्धारा प्रवाहित होती रहती हगे पर वे असमर्थ हो जाते हैं. पिछले महीने में डेरा को लेकर दंगे हुए. हम सवाल पूछते हैं कि सरकार क्यो नाकामयाब हुई इस राज्य में? अब कौन बताये कि वहाँ के राजनीतिग्य डेरा कि म्नादाद से ही चनाव जीतते हैं. धर्म के इस बाज़ार में जो हैसियत ये बना लेते हैं वह सामजिक क्षति तथा लोकतान्त्रिक मूल्यों का प्रतिगामी होता है. इसलिए एक समाज के रूप में हमारा दोष है कि हम आस्था में अंधे होकर इनके पीछे चलने लगते हैं. इससे समाज को बचाना जरूरी है .
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