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Wednesday, September 6, 2017

फूटने वाला है मोदी का गुब्बारा

फूटने वाला है मोदी का गुब्बारा

देश में एक साथ लगभग तीन ऐसी घटनाएं हुई हैं जिससे /पाता चलने लगा है कि मोदी जी कि छवि धूमिल होने वाली है. अगर मोदी जी से मुल्क यह पूछे कि इस तरह से मंत्रिमंडल में फेर बदल क्यों? छोटा सा उत्तर होगा कि संघ में बेचैनी बढ़ रही थी. अभी हाल में संघ ने कहा था कि भा ज पा के प्रति मतदाता लम्बे अर्से तक मोहग्रस्त रहे , मोह कि यह स्थिति इतनी लम्बी थी जितनी किसी भी सरकार और मतदाताओं के बीच नहीं रही पर अब जनता का मोह भंग हो रहा है. तीन वर्षग तक मोदी जी के सियासी सितारे बुलंदी पर थे. भारतीय मध्यवर्ग मोदी भजन में लीन था. यहाँ तक कि डाक्टर-इन्जीनियर-पत्रकार तक झाल बजा रहे थे. प्रवासी भारतीय तो उनके प्रति समर्पित थे. विपक्षी नेता तो अपने भविष्य के भय से भाग – भाग कर भा ज पा में “ढुक” रहे थे. यहाँ तक कि एक जमाने में विपक्ष के सबसे बड़े कद्दावर नेता नीतीश कुमारे ने भी इसी डर भाजपा का दामन पकड़ लिया. मोदी जी ने जनता को बड़े बड़े वायदों का झुनझुना थमाकर और मीडिया कि माया से इतना बड़ा तिलिस्म पैदा किया कि वे  वायदे सच जैसे लगने लगे , बिल्क्कुल मृग मरीचिका की  भांति. जहां भी जाईये जब भी टी वी खोलिए मोदी जी दीखते थे एक नए कार्यक्रम यता एक नयी योजना की  घोषणा करते  या चल रहे कार्यक्रम में लोगों को शामिल होते हुए बताते. सर्वत्र मोदी, घर-घर मोदी . इस वर्ष केंद्र सरकार के विज्ञापन का खर्च  1,153 करोड़ रूपये था, यह रकम गत वर्ष से 200 करोड़ ज्यादा थी. जी हाँ , अमीरों और गरीबों में द्वेष पैदा कर , नोट बंदी के नाम से देश की  अर्थ व्यवस्था के साथ जुआ खेलकर केवल वायदों को हकीक़त सा  दिखाने के लिए उन्होंने देश नकी जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से लिए गए टैक्स का साढ़े 11सौ करोड़ रुपयों से ज्यादा खर्च कर दिया. यही नहीं सोशल मीडिया में तो मोदी जी का प्रोपगैंडा करने वालों का मेला लगा रहता है. उनकी नीतोयों में खोट निकालने वालों को लानतें भेजी जाती हैं. इस चतुर्दिक प्रचार के तिलिस्मात ने आम आदमी के सोचने की  ताक़त को ख़त्म कर दिया. यही कारण है कि भा ज पा के मुकाबले के लिए तैयार किया जाने वाला कोई भी संयुक्त मंच कामयाब नहीं हो पाया. यह विश्वास बैठ गया है कि 2019 में फिउर यही आयेंगे , इसके कारण विरोधी न्प्रयास शिथिल हो गए.

      गरचे , क़द्देआदम से बड़ी तस्वीर हो जाए तो उसके साज – संभाल और संतुलम में भी कठिनाई हो जाती है. एक साथ तीन ऐसी घटनाएं घटीं कि मोदी जी कि छवि डगमगाने लगी. हालांकि यह डगमगाहट मामूली है लेकिन यह तो दिखने लगा कि तस्वीर कि चमक धूमिल हो रही है है, कहीं कुछ गड़बड़ है. पहली कि डोकलम से बिना शर्त वापसी, नोट बंदी के बाद 99% नोटों के बैंकों में वापस आ जाना और तीसरी घटना है सकल घरेलू उत्पाद ( जी डीपी ) में गिरावट. ज़रा सोचें चार दिनों के भीतर देश में डो ट्रेन दुर्घटनाएं जिसमें 20 यात्री मारे गए और 200 से ज्यादा घयल हो गए. आदित्यनाथ के घर गोरखपुर में एक अस्पताल में महज ओक्सिजन जैसी बुनियादी सुविधा के आभाव में 67 बच्चों कि मौत ने “ संघ परिवार ” के न्यू इंडिया कि हवा निकाल दी. सरकार कि तरफ से इन घटनाओं का लगातार और पूरी तरह खंडन यह बताता है कि सरकार को मालूम है कि पाँव तले  की  ज़मीन खिसक रही है.

  डोकलम से बिना शर्त वापस आने का स्पष्ट कूटनीतिक अर्थ है कि युद्ध तलने और सामान्य कूटनीतिक सम्बंधों को बहाल करने की चीन के पूर्व शर्त को भारत ने मान लिया. मोदी के कीर्तनीय अब कहते चल रहे हैं कि भारत ने बड़ी कामयाबी हासिल की है और चीन को कूटनीतिक झटका लगा है. जबकि कहना यह चाहिए था कि दोनों पक्षों ने “गुडसेन्स” से काम लिया. कीर्तन का शोर इतना बढ़ा कि चीन भी आजिज आ गया और बाध्य हो कर चीनी विदेश विभाग ने बयान जारी किया कि “ चीन की सीमा वाहिनी विवादित क्षेत्र में लगातार गश्त लगाती रहेगी .”  यही नहीं चीन ने यह भी कहा कि सभी पहलुओं पर यहाँ तक कि मौसम कि स्थिति परे विचार के बाद  विचार के बाद सीमा सड़क का काम जारी रहेगा. यहाँ मौसम शब्द पर गौर करी, इसका मतलब है कि इस वर्ष सड़क बनाने का काम शुरू नहीं होगा. यानी 8 महीनो तक रिश्ते ठीक रहेंगे. भारतीय जनता कूटनीतिक  मुहावरे नहीं समझती. इसका साफ़  अर्थ है कि हम वहां पिट गए और मामला कुछ समय बाद फिर उठेगा.

इसी तरह नोट बंदी के बाद 99% नोटों की  वापसी से सरकार नर्वस है. वह दलील पर दलील दे रही है तरह तरह के लक्ष्य बदल रही है. ख़बरों को मानें तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नोट बंदी के औचित्य को बताने के लिए 11 वीं बार बयान बदला है. वही हाल जीडीपी का है. सरकार इसकी गिरावट  का स्पष्ट कारण बता ही नहीं पा रही है. निष्कर्ष यह है कि अच्छे दिन वाले बयां बेकार हो गए. अब कोई चमत्कार ही दुबारा हवा बना सकता है वरना गुब्बारा फूटने वाला है.   

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