जापान की बुलेट ट्रेन और भारत की पटरियां
गुरुवार को भरात के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे में 1 लाख 10 हज़ार करोड रूपए की लागत से बनने वाले बुलेट ट्रेन चलाने पर एक समझौता हुआ. यह ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई के बीच चलेगी. अभी इस समझौते के हस्ताक्षर कि स्याही सूखी भी नहीं थी कि जम्मू तावी – नयी दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस पटरियों से उतर गयी. विगत 27 दिनों में यह नौवीं ट्रेन दुर्घटना थी. यह बताती है कि पटरियों पर दौड़ती ट्रेनों की संख्या और सुरक्षा स्तर में तालमेल नहीं है. भारतीय रेल दुनिया की सबसे बड़ी यातायात प्रणाली है. इससे रोजाना 2 करोड़ 30 लाख लोग सफ़र करते हैं. इस प्रणाली में 2016- 17 में 78 दुर्घटनाएं हुईं और इसमें 193 लोग मरे गए.लोक सभा में 19 जुलाई 2017 को एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि इस वर्ष के पहले 6 महीनों में 29 दुर्घटनाएं हुईं जिनमे 20 घटनाएं पटरियों से उतरने की थीं और इनमें से 39 लोग मारे गए और 54 घायल हो गए. विगत एक दशक में 1394 दुर्घत्र्नायें हुईं जिनमें से 51 प्रतिशत घटनाएं पटरियों से उतरने की थीं जिनमें 458 लोग मारे गए. रेलवे सुरक्षा पर स्थायी समीति कि 12वीं रिपोर्ट 14 न्दिसम्बर 2016 को लोक सभा में पेश की गयी थी. उस रिपोर्ट के मुताबिक़ दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण ट्रेनों का पटरियों से उतरना और इसके लिए मानवीय गलतियाँ सबसे बड़ा कारण हैं. ऐसी स्थिति में जापान ने भारत को बुलेट ट्रेन चलाने की तकनीक साझा करने कि सहमती दी है. इससे चिढ कर चीन के प्रधान मंत्री शी जिनपिंग ने कहा है कि वह भी अपनी तेज गति वाले ट्रेन की तकनीक का विपणन कर रहा है.2022 में जब भारत अपने जन सान्खियिकी लाभ के शीर्ष पसर होगा और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के “ मेक इन इंडिया “ के प्रचार का आर्थिक लाभ होने लगेगा तो उसी वक्त भारतीय रेल का भविष्य अध्ययन का सबसे बड़ा विषय होगा.
भारत में ट्रेन दुर्घटनाओं के दो कारण हैं , पहला कि पटरियों पर ट्रेनों का आवागमन बहुत ज्यादा है और दूसरा कि उसके ढांचे पर कम से कम खर्च किया जाता है.गौर करें सवारी गाड़ियों के आवागमन में विगत 15 वर्षों में 56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी अवधि में माल गाड़ियों की संख्या में 59% कि वृद्धि हुई है. लेकिन इसी अवाधि में पटरियों कि लम्बाई में महज 12 % वृद्धि हुई है. यानी 15 वर्षों में रेल पटरियों कि लम्बाई 81,865 से बढ़ कर 92081 हुई. अभी हाल में उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक गोपाल गुप्ता ने एक रिपोर्ट में कहा कि रेल पटरिओं का ख़राब होना और उनका ज़रुरत से ज्यादा उपयोग किया जाना ही दुर्घटनाओं का कारण है ना कि विस्फोटक. यही नहीं भारत के ट्रेनों के अधिकाँश पथ गंगा के मैदान से गुजरते हैं और इन पथों पर जितनी ट्रेनें चलती हैं वह सब अगर अपने समय से चलें तो जो समन्वित भीड़ होगी उसे संभाल पाना वर्तमान व्यवस्था के वश में नहीं है. दुर्घटना होनी ही है. रेल अधिकारी ट्रेनों को सिग्नल पर रोक कर इस समस्या का समाधान करते हैं. वैज्ञानिक पत्र “ फिजिका “ के अनुसार ट्रेनों को रोके जाने के कारण गाड़ियां विलम्ब से चलती हैं और ट्रेन के ड्राइवर से यदि सिग्नल के अनुपालन में ज़रा भी गलती हुई तो दुर्घटना निश्चित है.
राजनितिक लाभ के लिए हर साल नयी ट्रेनों को चलाने कि घोषणा कर दी जाती है जबकि पटरियों – पथों पर दवाब पहले से बना हुआ है. नयी ट्रेनों से दबाव और बश जाता है ऐसे नयी ट्रेनों की घोषणा को रोका जाना चाहिए. भारत में ट्रेनों कि औसत रफ़्तार 60 – 70 कि मी प्रति घंटा है. शायद ही कोई ट्रेन 130 कि मी अधिकतम रफ़्तार तक पहुच पाती है. ऐसे में 300 कि मी प्रति घंटे से ज्यादा तेज चलने वाली बुलेट ट्रेन की क्या दशा होगी यह आसानी से समझा जा सकता है. यही नहीं, बुलेट ट्रेन के लिए 1 लाख 10 हज़ार करोड़ रूपए जापान दे रहा है. इसपर 8 करोड़ रूपए मासिक व्याज लगेगा. अब एक ऐसे देश में जहां 13 करोड़ लोग 200 रूपए रोजाना कमाते हैं वहाँ व्याज की यह डर क्या व्यावहारिक है और वह भी एक ऐसी ट्रेन परियोजना के लिए जो अपनी गति का लक्ष्य कभी हासिल नहीं कर पाएगी. क्या सरकार किसी जंग की तैयारी कर रही है या दिवालिया होने की ? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिसका सामना मोदी सरकार को करना होगा.
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