नेहरू ने सुभाष की जासूसी नहीं करवाई थी
हरि राम पाण्डेय
आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन है। नेताजी को लेकर भारतीय समाज में विशेषकर राजनीतिक हलकों में कई तरह की बातें चलती हैं और चलती रहीं हैं। इनमें दो बातें सबसे ज्यादा मशहूर हैं पहले तो नेता जी जीवित हैं और दूसरी कि नेहरु - गांधी और उनके समर्थकों से उनको भय था इसलिए वह अभी तक अज्ञातवास में हैं। यह अफवाहें कैसे उठीं इसके बारे में कहना बड़ा मुश्किल है। गौर कीजिएगा, यहां मैंने अफवाह शब्द का प्रयोग किया है, क्योंकि इतिहास में इस के समर्थन में कुछ प्रमाणित नहीं है। उल्टे नेताजी और उनकी पत्नी को लेकर नेहरू की सद्भावना के स्पष्ट प्रमाण है सरकारी फाइलों में। ये फाइलें 2015 में सार्वजनिक कर दी गईं। नेहरू और नेताजी की पत्नी एमिली शेंकेल के कई पत्र सुरक्षित हैं। इन पत्रों से नेता जी की पुत्री अनीता बोस के पालन पोषण के लिए नेहरू की चिंता साफ झलकती है।
नेताजी आखरी बार अपने परिवार से 8 फरवरी 1945 को मिले थे और उसी रात वे जर्मनी की एक नौका में सवार होकर देश की जंग लड़ने के लिए निकल पड़े थे। कहां गये यह किसी को पता नहीं चला। लेकिन लेकिन इस निष्क्रमण तथा अज्ञातवास के पहले नेता जी ने एक पत्र अपने भाई पश्चिम बंगाल के मशहूर कांग्रेसी नेता शरत चंद्र बोस को लिखा था। उस पत्र में नेताजी ने साफ तौर पर कहा था कि " उन्होंने शादी कर ली है और उससे एक पुत्री है मेरे बाद उस परिवार की देखरेख उसी तरह करना जिस तरह मेरी करते रहे हो।" एमिली अपनी डायरी में लिखतीं हैं कि " लगभग ढाई साल के बाद अगस्त 1945 की एक रात एमिली वियेना में अपने कमरे में थी, जब उसने सुना कि एक विमान दुर्घटना में ताइपेई में नेता जी की मृत्यु हो गई है। परिवार के लोग इस खबर को सुनकर सन्न रह गए। इसके बाद वह उस कमरे में गई जहां अनीता सो रही थी और वहां बैठकर थोड़ी देर तक रोती रही।लेकिन जीवन तो जीना ही था और वह अपने काम में लग गई। युद्ध के बाद वियना में जीवन बड़ा कठिन हो गया था लोग पाई-पाई को तरस रहे थे। घर में बच्ची अनीता के लिये दूध नहीं था। परिवार के पास पैसे नहीं थे।" 1948 में एमिली ने अपने देवर शरत चंद्र बोस को एक पत्र लिखा और बताया कि वह अपने परिवार के साथ वियना आ गई हैं।
क्या विडंबना है की खबरें उड़ती थीं कि नेताजी को खोजने के लिये उनके परिवार की जासूसी की जाती है। लेकिन अवर्गीकृत फाइलों में कोई भी पत्र ऐसा नहीं है जिसमें नेताजी या एमिली या उन्हें लिखे पत्रों में शरत बाबू ने कहीं भी जासूसी का जिक्र नहीं किया है। जासूसी की इस कथा के साथ एक और सनसनीखेज बात कही जाती थी कि जवाहरलाल नेहरू ने लगातार नेताजी के विरुद्ध षड्यंत्र किया। लेकिन जब 23 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री ने नेताजी संबंधित फाइलों को सार्वजनिक किया और उसे लोगों के लिए सुलभ कराया गया तो बड़ी अजीब बातें सामने आईं। लोगों को यह उम्मीद थी कि उन फाइलों में जवाहरलाल नेहरू के संबंध में पक्के सबूत मिलेंगे और इससे पता चल सकेगा कि नेहरू और गांधी ने मिलकर सुभाष चंद्र बोस की हत्या करवाई। इसीलिए इन फाइलों को सार्वजनिक नहीं किया जाता था। लेकिन षड्यंत्र की इस कथा का कोई आधार नहीं मिला। उल्टे फाइलों के पुराने पड़ गए पन्नों रखे पत्र, सरकारी नोट और कानूनी दस्तावेजों से इतिहास के उस मोड़ पर प्रकाश पड़ता है जो देश के सर्वश्रेष्ठ नेता सुभाष चंद्र बोस के बारे में गढ़ी गयी कहानियों से गायब था।
शरतचंद्र के पुत्र अमिय बसु ने 10 जून 1952 को जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा【 संख्या पीएमओ 1956-71: 2 (67) 56-71 पीएम वॉल्यूम 1】। पत्र में अमिय बसु ने जवाहर लाल से निवेदन किया था कि " वे समय - समय पर वियेना में अपनी चाची( सुभाष बाबू की पत्नी एमिली शेंकल ) को कुछ पैसे भेजना चाहते हैं। यह पैसे भारतीय रिजर्व बैंक और ऑस्ट्रियन नेशनल बैंक के माध्यम से जाएंगे। हो सकता है , आस्ट्रियन बैंक इस पर आपत्ति करें और जटिलताएं बढ़ जाएं। अतएव मैं जानना चाहता हूं क्या यह राशि कोलकाता ( तत्कालीन कलकत्ता) में ऑस्ट्रिया के वाणिज्यदूत को सौंप दी जाए और वे उतनी ही रकम अपने देश की करेंसी में वहां दे दे।
दो दिनों के बाद नेहरू ने जवाब दिया। यह पत्र सम्बंधित अधिकारी के नाम था। पत्र में नेहरू ने जानना चाहा था कि क्या इस तरह से कुछ रकम भेजी जा सकती है और हम लोग कैसे उन्हें मदद पहुंचा सकते हैं। संबंधित मंत्रालय और रिजर्व बैंक इस पर राजी हो गए तथा अमिय नाथ बसु को सूचना दे दी गई कि वह इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
इस पत्र के बाद से कई और घटनाएं जुड़ गयीं। विख्यात नेता आसिफ अली वियेना यात्रा पर जाने वाले थे। जवाहरलाल नेहरु आसिफ अली से कहा कि सुभाष बाबू की विधवा से मिल लें। आसिफ अली ने नेहरू से कहा एमिली शायद ही मिलें। पर वह कहते हैं तो वे उनसे मिलेंगे और उन्हें तैयार करेंगे कि एमिली अपने लिये ना सही कम से कम उस बच्ची के लिए सरकार की मदद स्वीकार कर लें।
यहां सुभाष बाबू के विवाह को लेकर भी कई विवाद हैं। लेकिन, नेहरू का उत्तर इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट था। नेहरू ने साफ कहा था कि " उस विवाह को लेकर जहां तक हम सबों का मामला है हम उस शादी को मानते हैं और यही बात समाप्त हो जानी चाहिये।"
सुभाष बाबू की पत्नी एमिली शेंकेल ने आसिफ अली से भेंट की और बच्ची के भविष्य के बारे में उनसे चर्चा की। बच्ची के भविष्य के बारे एमिली की चिंता के बारे में जब नेहरू को जानकारी मिली तो उनहोंने स्पष्ट कहा कि " भविष्य की कोई गारंटी नहीं ली जा सकती है।" नेहरू ने कहा कि " मैं जो चाहता था कि कुछ पैसे उनके पास बच्ची के लिए रखवा दिो जाएं और इसका उपयोग तब तक नहीं हो जब तक इसकी जरूरत ना हो।" उन्होंने इसका फैसला शेंकेल पर ही छोड़ दिया। उन्होंने समझाने की भी कोशिश की कि अगर वह इसे नहीं पसंद करती हैं छोड़ दें, कोई दूसरा विकल्प सोचेंगे। इस बीच, नेहरू ने कहा " क्यों न अपने वियना कार्यालय के माध्यम से वे सौ पौंड भेजने को तैयार है जो समय समय पर बच्ची को दिया जाता रहेगा। नेहरू ने कहा यह रकम सरकारी नहीं है यह कांग्रेस की तरफ से है।" नेहरू ने यह कदम अन्य माध्यमों से भी उठाने की कोशिश की। उन्होंने पूछा किक्रिसमस के अवसर पर उपहार स्वरूप सौ पौंड भेजे जा सकते हैं यह राशि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पास आई एन ए के कोष का हिस्सा है। वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के इस निर्देश का पालन किया और अक्टूबर 1952 में वियना में भारतीय दूतावास में एक अधिकारी के वी रामास्वामी ने आधिकारिक तौर पर सूचना दी कि उनके नाम 100 पौंड का एक ड्राफ्ट आया है। यह ड्राफ्ट उपहार के तौर पर है। रामास्वामी ने अनुरोध किया कि वे निर्देश दें कि इस राशि का क्या उपहार खरीद कर उन्हें भेजा जाय। नेहरू एमिली के प्रति स्नेह जताने में कुछ कदम और आगे बढ़ गए। उन्होंने विदेश सचिव से यह जानना चाहा कि " क्या सुभाष बोस की पत्नी को चाय भेजी जा सकती है। " नकदी और उपहार भेजने की यह व्यवस्था 1953 तक शरूआती कुछ महीनों तक चलती रही।
1953 आखिरी दिनों में नेहरू को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बिधान चंद्र राय की मदद से इस मामले में प्राप्त हो गई। राय ने प्रस्ताव दिया की क्यों ना हम लोग एक ट्रस्ट बनाकर बच्ची के नाम से उसमें कुछ रुपया जमा करा दें और इसकी जिम्मेदारी बर्न में भारतीय राजदूत को सौंप दी जाय। उन्होंने कहा की शेंकेल को पिछले कई महीनों से 200 - 300 रुपए मिल रहे हैं अब उसे आशंका हो रही है यह रुपए नहीं मिलेंगे। विधानचंद्र राय ने शेंकेल को पत्र लिखा की अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी एक ट्रस्ट बनाकर उनकी बेटी के लिए कुछ रुपए जमा कराना चाहती है और इसकी जिम्मेदारी है नेहरू पर दी गई है। यह रकम 15 हजार ब्रिटिश पौंड या भारतीय मुद्रा में लगभग दो लाख रुपये के बराबर है। यह राशि नेताजी की जीवनी पर बने एक फिल्म के मुनाफे में मिली थी। राय ने यह भी सुझाव दिया कुछ लोग और ट्रस्ट में शामिल कर लिये जाएं । जल्दी ही इस के कानूनी कागज इत्यादि बने गए। 23 मई 1954 को ट्रस्ट बन गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू, बिधान चंद्र राय इत्यादि शामिल थे। ट्रस्ट ने घोषणा की कि इसमें दो लाख नेताजी की विधवा के लिए जमा कराए हैं जो अनीता बोस के काम आएंगे। इस पर गवाह के रूप में कैलाश नाथ काटजू और रफी अहमद किदवई ने हस्ताक्षर किए।
सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 1958 के अंत में नेहरू को पता चला कुछ दिनों से अनीता को रुपए नहीं मिल रहे हैं। वे चिंतित हो गए। उन्होंने बी सी राय को लिखा। जांच करने के बाद बी सी राय ने बताया की बकाया रकम एक साथ दे दी जाएगी। बी सी राय की की जुलाई 1962 में और जवाहरलाल नेहरु की मई 1964 में मृत्यु के बाद थोड़ा व्यवधान हो गया। फिर, जुलाई 1964 में लाल बहादुर शास्त्री ने इस ट्रस्ट को दोबारा शुरू । अनीता बोस के वयस्क होने तक यह चलता रहा। भला हो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जिन्होंने कई परेशानियां झेलकर कर इन फाइलों को सार्वजनिक किया और नेहरू सुभाष के बीच मतभेद की कहानी को खत्म किया।
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