देश में फैलता नये तरह का आतंकवाद
आमचुनाव के लिये सत्तारूढ़ दल ने किया सोशल मीडया कम्पनियों से समझौता
आने वाले दिन भयानक " फेक न्यूज " और अफवाहों के जाल में उलझे दिखेंगे
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता : गुजरात चुनाव की दशा और दिशा देखने के बाद 2019 के चुनाव के मद्देनजर प्र्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने फेसबुक कम्पनी, अमरीका की माइक्रोचिप कम्पनी ओर जापान की रेनेसास से एक व्यापक समझौता किया है और आनन फानन में इसपर काम भी शुरू हो चुका है। दिलचस्प बात यह है कि ई वी एम के काड में सुधार टके लिये चुनाव आयोग ने भी माइक्रोचिप ओर रेनेसास से अनुबंध किया है। इन दोनों कमपनियों की पार्टी के साथ चुनाव में क्या भूमिका होगी यह अभी खोजा जा रहा है पर फेसबुक ने तो अपना काम शुरू कर दिया है। भारत में लगभग 22 करोड़ लोग फेसबुक के वाट्सएप मैसेजिंग सर्विस का उपयोग करते हैं। यह संख्या विश्व में वाट्सएप का उपयोग करने वालों की सबसे बड़ी संख्या है। 2019 के चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में करने के उद्देश्य से किये गये इस समझौते के तहत देश की जनता की भावनाओं को उभार कर आवांतर सत्य (ऑल्ट ट्रुथ) पर आधारित भ्रामक सूचनाओं का इंतना बड़ा संजाल तैयार किया जायेगा कि आम आदमी अपनी तार्किक क्षमता खो बैठे और वह बिल्कुल मशीन की तरह वही करे जिसका उसे कमांड दिया जाय। मानसिक तौर पर पिछलग्गू बनाने का जो काम पूरी सेना नहीं कर सकती है वह कुछ लोगों की एक टुकड़ी कर डालेगी। इसके लिये फेसबुक के एक अधिकारी शिरील सैंडबर्ग को जिम्मेदारी दी गयी है ओर इसका संचालन केटी हारबाथ नाम की एक विशेषज्ञा कर रहीं हैं। इनके लोग सत्तारूढ़ दल के अत्यंत विश्वसनीय 6000 भारतीय अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिये फिलहाल भारत के विभिन्न शहरों का दौरा कर रहे हैं।
इनका पहला लक्ष्य फेसबुक और वाट्सएप के माध्यम से राजनीतिक विरोधियों को तंग और अपमानित करने का अभियान चलाना होगा। ताकि विरोध का दायरा बढ़े नहीं और जो लोग हैं वे बयभीत हो जाएं । इसके अलावा जो पत्रकार इसके खिलाफ कलम उठायेगे उन्हे चुप कराने के लिये पुलिस, कानून और प्रताड़ना का साहरा लिया जायेगा ताकि वे विरोध को आवाज ना दे सकें। इस तरह के काम के माध्यम से देश को भ्रमित सूचनाओं (फेक न्यूज) ओर अफवाहों का एक विशाल उत्पादन केंद्र बना दिया जाना है। ऐसे में यह तय कर पाना कठिन हो जायेगा कि क्या गलत है और क्या सही। अफवाहों पर नजर रखने और उनकी व्याख्या करने के लिये तैनात रॉ की टीम के एक उच्चाधिकारी ने सन्मार्ग को बताया कि अभी हाल में भीम कोरेगांव में जो कुछ भी हुआ वह इसी डिजीटल प्रोपगैंडा का एक मामूली नमूना था। इसके माध्यम से वह टीम अपने तंत्र की क्षमता और जिन लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है उनकी दक्षता का आकलन कर रही थी। इसकी रिपोर्ट ससमय सरकार को दे दी गयी थी पर कुछ किया नहीं गया। सूत्रों के मुताबिक आम जनता की भावनाऔं से छेड़छाड़ करने के प्रयोग के चक्कर में फेसबुक 2014 से लगा था पर कानूनी दिक्कतें उसे पेश आ रहीं थीं। भारत सरकार ने यह समझौता कर कानून का अवरोध हटा दिया। अब भावनाओं से छेड़छाड़ के इस भयानक खतरनाक प्रयोग के लिये भारतीयों को " गिनी पिग " की भांति उपयोग किया जा रहा है।
दरअसल, आम आदमी जब सोशल मीडिया में कोई पोस्ट डालता है तो उसपर ज्यादा विचार नहीं करता। हम सोशल मीडिया में जो पोस्ट देखते हैं उनमें अधिकांश हानि रहित हुआ करते हैं या कहें महसूस होते हैं। लेकिन सच तो यह है कि इसमें भयानक क्षमता होती है। रॉ के एक उच्चाधिकारी के मुताबिक सोशल मीडिया में इन पोस्ट्स का एक खास किसम के सॉफ्ट वेयर से विश्लषण कर भविष्य के बारे में आकलन किया जा सकता है। यहां तक जाना जा सकता है कि अगल प्रधानमंत्री कौन होगा। सोशल मीडया के माध्यम से ऑफलाइन घटनाओं को भी खोजा सकता है और आगे की घटनाओं के बारे में भी भविष्यवाणी की जा सकती है। ट्वीटर के विश्लेषण से भी भविष्य में होने वाले सामाजिक विद्रोहों को भी जाना जा सकता है। भारत में इसका सबसे अच्छा अदाहरण बंगलोर में उत्तर पूर्व के लोगों मार पीट की घटना का आकलन था। लोग घटना के सामने आने से कई दिन पहले से ट्वीटर पर अपना गुस्सा जाहिर करने लगे थे और इसके बारे में सरकार को सचेत भी कर दिया गया था।
सूत्रों के मुताबिक जो गुस्सा स्वाभाविक है वह तो ठीक है लेकिन खतरा तब होता है जब गलत बात पर सोशल मीडिया के माध्यम से गुस्सा भड़का दिया जाय। जब यह पूरी तरह से भड़क उठेगा तो अपने आप सड़कों पर दिखने लगेगा। कोरेगांव की घटना इसका ताजा उदाहरण है। पहले भी , भ्रामक खबरों और अफवाहों के माध्यम से नफरत और गुस्सा फैलाया जाता था और उसके फलस्वरूप मारकाट मच जाती थी। पर यह बहुत सीमित दायरे में होता था। उसका नया रूप जल्दी ही सामने आने वाला है जो बहुत विस्तृत दायरे में यहां तक कि देशव्यापी दायरे में होगा । वाट्स एप , फेसबुक और व्यवस्था ने हाथ मिलाया है और इनके सहयोग से " डिजीटल प्रोपगैंडा " के लिये तैयार हो रही जमात देश में हिंसा पैदा करेगी। यह आतंकवादवाद का स्पष्ट नमूना है। क्योंकि सत्ता पाने के लिये किसी व्यक्ति या समूह द्वारा आतंक या हिंसा का उपयोग ही आतंकवाद है। यह आतंकवाद एक विदेशी कम्पनी द्वारा देश की व्यवस्था के साथ हाथ मिलाकर देश में हिंसा फैलाने की साजिश है। देश के कई बड़े राजनीतिज्ञ, खिलाड़ी, अर्थशास्त्री , अभिनेता , पत्रकार, लेखक अफवाहों और भ्रांति पूर्ण समाचारों के शिकार हो चुके हैं। समाज की सोच को विकृत करने की यह एक बेहद खतरनाक शुरूआत है। इस बात को रोका जाना जरूरी हे लेकिन शायद इसे रोका न जा सके क्योंकि इसके लिये सबसे आवश्यक है कि पहले सरकार स्वीकार करे कि ऐसा कुछ हो रहा है। सियासी कारणों से यह स्वीकार करना संभव नहीं है।
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