CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, January 7, 2018

लालू को सजा : खेल अभी खत्म नहीं हुआ

लालू को सजा : खेल अभी खत्म नहीं हुआ

चारा घोटाले में बिहार के सट्रांगमैन लालू प्रसाद यादव को साढ़े तीन साल की सजा हुई है। यह चाराा घोटाले के 6 मामलों में से दूसरे मामले में सजा हुई है। लालू इस निर्णय के विरुद्ध हाई कोर्ट में जाने की तैयारी में हैं। बेशक लालू इस सजा के बाद चुनावी राजनीति में नहीं जायेंगे , ले​किन राजनीति के द्वार उनके लिये बंद नहीं हुये हैं। लालू आधुनिक जमाने की भारतीय राजनीति के लिये एक उदाहरण हैं। उन्होंने अपने सियासी सफर में कई दुर्गम और अलंघ्य मंजिलों को पार किया है। 2013 के चाइबासा ट्रेजरी घोटाले मे सजा के बाद राजनीति के कई पंडितों ने उन्हें " खत्म " करार दे दिया। चारा घोटाले के 6 मामलों में यह पहला मामला था। लालू की लोकसभ सीट चली गयी और लगा कि वे खेल से बाहर हो गये। हालांकि , 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जब भाजपा के विजय का दौर चल रहा था तो उन्होंने साबित कर दिया कि ना उनकी प्रासंगिकता खत्म हुई है और ना उनका मतदाताओं का आधार खत्म हुआ है। आज दुश्मन बन गये दोस्त कने साथ मिल कर उन्होंने बिहार में भाजपा की खाट खड़ी कर दी।दोनों दलों का अंतर व्यापक था। उनहोंने साबित कर दिया कि वे राजनीतिक रूप से अभी भी प्रासंगिक हैं। महागठबंधन के लिये समय खराब था और इसमें जल्दी ही दरारें दिखने लगीं। कुछ दिन तक तो महागठबंधन चला बाद में नीतीश कुमार ने भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने के लिये लालू यादव को किनारे कर दिया। लालू यादव और उनके परिजनों के खिलाफ भ्रष्टाचार का पहला मुकम्मल मामला सबके सामने आया। इसके बाद दूसरे मामले में फैसला सामने आया। राजद के इस खलीफा के खिलाफ यह प्रचंड आघात था। लालू यादव की पार्टी के लोग बिहार के मुख्य मंत्री पर इसके लिये निशाना साधने लगे। इनमें लालू जी के सुपुत्र भी शामिल थे। लालू जी के नौ बच्चे हैं उनमें तीन ने तो साफ तौर पर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जाहिर कर दी है। तेजस्वी यादव तो इनमें सर्वमान्य थे। बाकी के दो तेज प्रताप यादव और मीसा भारती उनसे सहयोग करते रहे। यकीनन , लालू प्रसाद यादव परदे के पीछे रहेंगे और अपने वारिसों को तैयार करेंगे। वे सोशल इंजीनियरिंग की निगरानी करेंगे। यह सोशल इंजीयिरिंग बिहार में उनका अनोखा प्रयास था। 

लालू यादव अन्य लोगों की तरह शुद्दा नेता नहीं हैं। उनके भदेस किस्म के हाव भाव इत्यादि अजीब हैं। तब भी वे कामयाब होते थे। उनकी कामयाबी का राज क्या था? उनपर आरोप लगता है कि उनहोंने समाज को बांट दिया। लेकिन ये आरोप सही नहीं हैं। लालू के पहले भी बिहार में भयानक जाति पांति चलती थी और अब भी चलती है। जाति पांति के भाव से  बिहार पूरी तरह ग्रस्त रहा है और है। लालू के समाजिक आंदोलन के पहले बिहार की ऊंचीजिाति कलिोग पिछड़ी जाति के लोगों को नीच समझते थे। यह लालू पहले इंसान थे जो ऊंची जातियों की  चौखट पर खड़े होकर ललकारा। उनके चलते लाखों लोगों ने अपना वजूद समझा, उनकी बात सुनी गयी। बिहार के वे पहले राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने वहां के मुसलमानों के पक्ष में आवाज उठायी। उन्होंे अल्पसंख्यकों के लिये एक सियासी और सामाजिक जगह तैयार की। उन्होंने लालू जी के पक्ष में वोट डाल कर उनके प्रति अपना समर्थन जाहिर किया था। बिहार से कई राजनीतिक नेता निकले हैं पर लालू वंचितों के लिये जंग लड़ने के कारण सदा याद किये जायेंगे। बिहार के अल्पसंख्यक और यादव सदा उन्हें अपने रक्षक के रूप में याद करेंगे। उनसे बहुत उम्मीद है। हालांकि शासन में वे इतने सफल नहीं रहे जितने राजनीति में हैं। उनके शासन काल में बिहार अविकसित रहा क्योंकि वहां सरकार पर ऊंची जातियों का कब्जा हुआ करता था। राजनीतिक समर्थन का व्यापक आधार होने के बावजूद उन्हें कीमत चुकानीऱ्ं पड़ी। उनके खिलाफ कुछ ठोस तो ज्यादा अस्पष्ट भ्रष्टाचार के आरोप फैलने लगे। दिलचस्प तथ्य यह है कि भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार कभी बहुत बड़ा मसला नहीं रहा है। नरेद्र मोदी ने 2014 के अपने  चुनाव अभियान में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया। हालांकि वे प्रधानमंत्री बने पर देश से भ्रष्टाचार मिटा नहीं और ना ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में खत्म होगा। लालू यादव बिहार के एकमात्र ऐसे नेता  नहीं हैं जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। वे इस जमात में शामिल नेताओं में से एक है। वे फिलहाल सत्ता में नहीं हैं। ना ही 2010 या 2012 वाला उनका रुतबा है। उनके समर्थकों की तादाद घटी है। हालांकि इनमें से बहुसंख्यक अभी बीऱ्ं उएनके साथ हैं। उनकी सेहत बिगड़ती जा रही है। लेकिन इन सबके बावजूद उन्हें नकार देना सरल नहीं है ओर अभी उनका खेल खत्म नहीं हुआ है।

0 comments: