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Tuesday, January 30, 2018

प्रभावित हो सकता है भारत का विकास दर

प्रभावित हो सकता है भारत का विकास दर

सोमवार को सरकार ने संसद में 2018 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। सर्वेक्षण में कहा गया है कि यह वर्ष विकास के तौर पर  धीमा रहा पर अगले देश के आर्थिक विकास की दर 6.75% रही पर अगले साल इसमें सुधार हो सकता है और यह बढ़कर 7% से 7.5% तक हो सकता है।

विकास दर बढ़ने का कारण है नोटबंदी और सरकार द्वारा उठाए गए अन्य सुधारात्मक कदम। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद  सुब्रमण्यम ने आर्थिक सर्वेक्षण में कहा है कि सरकार अर्थव्यवस्था में समुचित मांग पैदा कर रही है। नरेंद्र मोदी की सरकार आर्थिक सुधारों  को लाकर विकास गति दे रही है। साथ ही , सर्वेक्षत में चेतावनी दी गई है कि वैश्विक जोखिम बढ़ रहा है ,जैसे तेल की  कीमत और पूंजी का देश से बहिर्गमन। इससे ऋणात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में कर चुकाने वाली आबादी में  18 लाख नये करदाता जुड़े हैं। यह जीएसटी और नोटबंदी का प्रभाव है। हलांकि यह यह संख्या कुल करदाताओं के 3% ही है लेकिन संख्या बढ़ी तो है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकारी उपायों से भारत अस्थाई तौर पर ही सही एशिया के तीसरे सबसे बड़े अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। हालांकि यह आंकड़े 2016 के नोटबंदी के उथल पुथल वाले वक्त के हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि जो  कर दाता बढ़े हैं उनमें अधिकांश निचले टैक्स स्तर( स्लैब ) के हैं।
वित्त मंत्री द्वारा संसद में 2019 वित्त वर्ष के बजट पेश किए जाने के 3 दिन पहले प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में मुख्य आर्थिक सलाहकार ने यह भी कहा है कि सरकार की नीतियां निवेश को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए। अभी निवेश में प्रोत्साहन को दोबारा  लाना बहुत जरूरी है सर्वे में बताया गया है कि मैक्रो आर्थिक व्यवस्था को स्थाई किया जाना चाहिए और एयर इंडिया की बिक्री प्राथमिकता में रखनी चाहिए। सर्वेक्षण में आगे कहा गया है सरकार लाभ नहीं कमाने वाले बैंकों को बंद कर दे। हाल में सरकार ने बैंकों के लिए एक लाख करोड़ की पूंजी का बंदोबस्त किया था, लेकिन इसका उपयोग कैसे होगा इसकी कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई थी, ना ही बैंकों के विलय की योजना बनाई गई थी।  मध्य अवधि के लिए सर्वे में कहा गया है कि रोजगार शिक्षा और कृषि पर ध्यान दिया जाना चाहिए। निर्यात के बारे में सर्वेक्षण में कहा गया है कि इसमें प्रतियोगिता का अभाव हो गया है और यह हाल के वर्षों से बढ़ा नहीं है । जिसका नतीजा हुआ कि भारत के निर्यात में कमी आई और उत्पादन क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में से हिस्सा घट गया। 2 वर्षों तक निर्यात ऋणात्मक रही है लेकिन अब 2016 -17 में उसमें धनात्मक गति देखी जा रही है और आशा है कि 2017 -18 में तेजी से बढ़ेगी। सुब्रमण्यम स्वामी ने सर्वेक्षण में इस वर्ष के लिए भारतीय कृषि विकास को 2.1 प्रतिशत बताया है। इसके पहले साल यह 4.2% था ।सर्वेक्षण में चेतावनी दी गई है कि सरकार  किसानों की आय को 2022 तक  दोगुना करने की जो बात कह रही है उसके लिए वह समुचित कदम उठाने होंगे। खासकर लक्ष्यहीन सब्सिडी बंद करनी होगी और तकनीक में सुधार कर सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था करनी होगी।  सर्वेक्षण में चेतावनी दी गई है कि वातावरण और पर्यावरण का कृषि प विकास पर प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। इससे कृषि आय में 20 से 25% तक कमी हो सकती है। इसलिए पर्यावरण में सुधार जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होगा तो कृषि अर्थ व्यवस्था में कमीआएगी। सर्वे में जहां सरकार की पीठ ठोंकी गई है वहीं कई चेतावनियां भी दी गयीं हैं।इन चेतावनियों पर अगर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाला समय कष्टदायक हो सकता है।

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