सेहत से सियासत
कई वर्षों से यह चर्चा खबरों में थी कि मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया (एम सी आई) अपना काम या कहें अपना कर्त्तव्य का ठीक से निर्वाह नहीं कर रही है। इसलिये , एम सी आई को रद्द कर एक नयी संस्था का गठन किये जाने की जरूरत महसूस की जा रही थी। अतएव 2016 में नेशनल मेडिकल कौंसिल का सिद्धांत बना। उद्दश्य था कि मेडिकल शिक्षा के गिरते स्तर को सुधारा जाय और डाक्टरी पेशे में भ्रष्टाचार तथा निजी मेडिकल कॉलेजों के " सिंडीकेट" कोश् खत्म किया जा सके। लेकन जब नेशनल मेडिकल कौंसिल के गठन सम्बंधी विधेयक बना और जब उसकी समीक्षा की गयी तो लगा कि आगे चल कर मॉडर्न मेडिसिन की प्रेक्टिस का सत्यानाश कर देगा। इस नये विधेयक में कई खामियां हैं और मेडिकल पेशे से जुड़े लोग इसके विरोध में हैं। इस विधेयक में सबसे बड़ी खामी है कि आयुष (आयुर्वेदीय) डाक्टरों को एक मामूली " ब्रिज कोर्स " करने के बाद एलोपैथिक मेडिसिन की प्रक्टिस करने की इजाजत मिल जायेगी। हालांकि देश भर में अभी अल्टरनेटिव मेडिसिन की प्रेक्टिस करने वाले डाक्टर धड़ल्ले से मार्डन मेडिसिन की दवाइयां लिखतें हैं पर यह गैर कानूनी है। अब यह अचरज की बात है कि कोई ऐसा आदमी जिसने आयुर्वेद या यूनानी या होमियोपैथ के लिये शिक्षा ली हो वह कैसे मॉडर्न मेडिसिन की दवाइयां लिख सकता है, और अब इसे जायज बनाया जा रहा है। एक तरफ तो सरकार चाहती है कि भारतीय चिकित्सा शैली यानी आयुर्वेद का विकास हो और वह अपने शुद्ध्तम स्वरूप में उभर कर आये और वह र्द
सरी तरफन डाक्टरों को प्रोतसाहित कर रही है कि वे आयुर्वेद को छोड़ कर मार्डन मेडिसिन के आधे अदाहूरे ज्ञाान के आधार पर ही इलाज शुरू कर दें। चिकित्सा की हर साखा का अपना वैज्ञानिक नजरिया होता है और सरकार प्ोत्साहित कर रही है कि आधे अधूरे ज्ञानवाले डाक्टर रोग बिगाड़ने का लाइसेंस लेकर बाजार में दौड़ पड़ें।पहले ही क्या कम थे डिग्री का खौफ ओर रोगों का भय दिखा कर लूटने वाले कि अब और बाजार में भेजे जाने की तैयारी हो रही है। अगर यह कहा जाय कि ऑटो रिक्शा चलाने वाले लाइसेंसशुदा ड्राइवरों को एक छोटा सा ब्रिज कोर्स कराकर हवाई जहाज उड़ाने की अनुमति दे दी जाय तो क्या होगा? एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीी ने एक विज्ञाान सममेलन में कहा कि भगवान शिव सबसे बड़े प्लालस्टिक सर्जन थे। उन्होंने गणेश का सिर कटने का बाद उनकी गर्दन से हाथी का सिर जोड़ दिया था। या, फिर देश के ग्रामीण इलाकों खस्ता हाल स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने का यह प्रयास हो सकता है। अगर ऐसा है तो गांवों के चिकित्सा केंद्रों में या प्रखंड के टूटे फ्टे अस्पतालों में पैरासीटामोल लिख कर सरकारी डाक्टर बने इतराते फिरेंगे और रोग बिगाड़ने की प्रक्टिस करते रहेंगे। गांवों में चिकित्सा सुविधा मुहैय्या कराने के दोष से सरकार मुक्त हो जायेगी।
इसके बाद हैरत नहीं होगी देश का एक मशहूर योग गुरू देश में सबसे ज्यादा आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज खोल दे और सबसे ज्यादा दवाइयां बनाने लगें। अब कुछ पैसे देकर हर लल्लू पंजु डाक्टर बन जाय और ब्रिज कोर्स करकने डाक्टरी करने लगे। तब एम बी बी एस में कठिन एंट्रेंस परीक्षा व्यर्थ हो जायेगी और उस कठोर कोर्स को कोई पूछने वाला नहीं रहेगा। यही नहीं एम बी बी एस की परीक्षा पास करने वालों को अब प्रेक्टिस शुरू करने से पहले उनहें लाइसेशियेट परीक्षा पास करनी होगी। ... और जो विदेश से डिग्री लेकर आयेंगे उन्हें हतोत्साहित करने के लिये नेशनल मेडिकल कौंसिल " विवेकाधीन " अधिकारों का उपयोग कर उनकी योग्यता को खारिज भी कर सकती है। कौंसिल को और भी कई अधिकार हैं जिसका उपयोग कर वह उन डाक्टरों को मेडिसिन या सर्जरी की प्रक्टिस की अनुमति दे सकते हैं जिन्होंने लाइसेशियेट परीक्षा नहीं पास की है। अब सोचिये कि अपवाद स्वरूप छूट,भारी कन्फ्यूजन और अनिश्चितता का माहौल भ्रष्टाचार के पनपने और फैलने का पूरा अवसर प्रदान करेगा। यही नहीं , कौंसिल का ढांचा भी कुछ अजीब है। इसके 25 सदस्सयों में से महज पांच ही निर्वाचित प्रतिनिधि होंगे और वेश्भी अस्थाई तौर पर। इसकी चार टीयर प्रणाली होगी और जिसके अंतर्गत सलाहकार समीतियां होंगी और सर्वोच्च तल पर कौंसिल होगी जिसमें प्रमुख रूप से सरकार नियुक्त सदस्य होंगे। अब इसमें डाक्टरों का प्रतिनिधित्व बहुत कम होगा। डाक्गें ने अपील की थी कि डाक्टरों का प्रतिनिधित्व ऐसा हो कि वे बिना किसी डर या दबाव के काम कर सकें, पर इसे माना नहीं गया।
निजी मेडिकल कालेजों में सीटें खुल्लम खुल्ला बिकती हैं पर नये कालेज खोलने या सीटों को बड़ाने के मामले में काफी कड़ाई थी , इस विधेयक में वह सब दूर हो गया। अब निजी मेडिकल कालेजों में 40 प्रतिशत सीटें ही प्रतियोगिता से बरी जायेंगी और बाकी की 60 प्रतिशत सीटें सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं। अब इनमें नामांकन के लिये कितना पैसा लिया जायेगा या कितनी फीस ली जायेगी इसकी कोई सीमा नहीं है। यह विधंयक देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिये भारी संकट पैदा करेगी। देश की आम जनता की जान से इतना बड़ा खिलवाड़ किस दूरदृष्टि का परिणाम है कहा नहीं जा सकता है पर यह तो तय है कि देश की जनता की सेहत को लेकर यह सियासत जानलेवा होगी।
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