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Friday, January 5, 2018

दिलचस्प होगी भविष्य की रस्साकशी

दिलचस्प होगी भविष्य की रस्साकशी

देश में लम्बे समय से धीमी पड़ती जा रही अर्थ व्यवस्था क्या 2018 में राजनीति की दिशा बदल देगी? अगर वर्तमान रुझान कायम रहा तो यकीन करें भारतीय मध्य वर्ग का सम्पनन तबका पीढ़ियों  के ध्रुवीकरण उलझ जायेगा। यह अपने तरकिा पहला ध्रुवीकरण होगा। जो साल बीता हे वह वह अर्थ व्यवस्था के मामले में कुछ चिंताजनक सवाल और कुछ र्हैरान कर देने वाले विरोधाभास छोड़ गया है, इसका असर 2019 पर पड़ सकता है। संभवत: ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि भारत आर्थिक तौर सुरक्षित तथा आर्थिक तौर अरक्षित आबादी में विभाजित हो जाय। यह विभाजन  भारत की  आबादी और उसके भूगोल में शुरू हो चुका है। बर्टेंड रसल का मानना था कि " आर्थिक शक्ति समाज के डायनामिक्स की चाभी है।वह ताकत समाज की गति की दिशा को नियंत्रित ओर निर्देशित करती है। " लेकिन इस समय जो अर्थ व्यवस्था का फिनोमिना दिख रहा है वह निर्देशक नियंत्रक नहीं विभाजक के रूप में दिख रहा है। प्रोटोटाइप के तौर पर गुजरात को देखें। वहां का अमीर और सम्पन्न तबके ने एक मुश्त भाजपा को वोट दिया। यही हाल देश के अनय शहरों में भी दिखा। उदारीकरण के बाद हुई तेज आर्थिक वृद्धि को साधुवाद कि उसके काल में शहरी मध्य वर्ग कमोबेश आत्मनिर्भर हो गया। लेकिन अब भाजपा के सांस्कृतिक और धार्मिक नारों से यह वर्ग मुश्किल में पड़ गया महसूस कर रहा है। यही नहीं, देश की नौजवान आबादी वक्त की अर्थ व्यवस्था से असुविधा महसूस कर रही है। आर्थिक उदारीकरण के ठीक बाद जो मध्यवर्ग उबरा है वह विगत 20 वर्षों में एक परिवर्तन के दौर ससे गुजरा है। इस पीढ़ी ने भारत में मकानों की बढ़ी कीमतों के गिरने की शुरूआत देखी है। खपत में तेज वृद्धि देखी है और उसके बाद बचत की ताकत भी देखी है। आर्थिक विकास , सामाजिक गतिशीलता और तीव्र शहरीकरण के मिलेजुले स्वरूप ने असे आर्थिक तौर पर सुदृढ़ कर दिया। 

    यह सब 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्तारूढ़ होने के पहले की बात है। जिन्होंने सन 2000 के आरंभिक दिनों में  सम्पन्न जीवन के लिये प्रयास आरंभ किये  वे कुछ पीड़ादायी विरोधाभास से दो चार हो रहे हैं। मजे की बात है कि 2014 में स्थायीतव और विकास की उम्मीद में  दोनो ने कांगेस को पछाड़ने के लिये हाथ मिलाये थे। अब् यह विचित्र रस्साकशी भारतीय परिवारों में दिखने लगी है। प्रौढ़ आबादी  सांस्कृतिक अतीत की कल्पना से भावतात्मक तौर पर आवेशित हैं तो अगली पीड़ी के लोग अपने भविष्य के प्रति आशंकित हैं। 2018 की मुख्यधारा में मतदाताओं की नयी पीढ़ी सामने आयेगी जो विभिनन चिंताओं की छाया में  अपेक्षाऔं से लबालब होगी। इन दो पीढ़ीयों की जोर आजमाइश ही इस चुनाव की राजनीतिक बहस का केंद्र विंदु होगी। भारत में उम्मीद से ज्यादा चली आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप देश में जनसांख्यिक आर्थिक विभाजन का खतरा बढ़ता जा रहा है। मोदी सर्वागीण रोजगारमूलक अर्थव्यवस्था विरासत में नहीं मिली है। अभ्ाी जो आर्थिक मंदी है वह दरअसल 2011-12 में शुरू हुई थी। जब मोदी सत्ता में आये तो भारतीय अर्थव्यवस्था की तीन रफ्तार थी। दो अंकों वाला विकास उस वर्ग के लिये था जिस वर्ग में ई - कामर्स, पर्यटन और स्टॉक मार्केट थे।  जबकि उद्योगो विकास एक अंकीय था और इस पिरामिड के निचले सतह पर थी कृषि जिसका विकास ऋणात्मक था। इस विकास को दुरूस्त करने की बजाय सरकार ने जी एस टी और विमुद्रीकरण लागू कर दिया और यह एंटी क्लाइमेक्स साबित हो गया। आर्थिक विकास दो तीन साल पीछे चला गया। निर्यात और औद्योगिक गतिविधि के हाल के आंकड़े देखने पर एक विचित्र तथ्य सामने आया कि  जिन उद्योंगों  में श्रमिकों की​ ज्यादा जरूरत होती है जैसे कपड़ा, वस्त्र, चमड़ा, कागज , रबर, प्लास्टिक उत्पाद, फर्नीचर, छपाई, मीडिया, दस्तकारी की वस्तुएं, खेल के सामान , जूते, रत्न और जेवरात इत्यादि अभी तक जीएस टी के झटके से उबर नहीं पाये हैं। वित्तीय सुरक्षा और अरक्षा में विभाजन  देश के आर्थिक भूगोल में काफी मुखर है।  2008 से 2014 के बीच उपभोक्ता वस्तऔं की कीमतें काफी ऊंचाई पर थीं। जबकि भारतीय ग्रामीण अर्थ व्यवस्था मुद्रासंकोच और समर्थन मूल्य की न्यूनता के बीच पिस रही है। अभी शहरी रोजगार बाजार में कहीं सांत्वनामूलक दृश्य नहीं है दूसरी तरफ ग्रामीण मध्यवर्ग आर्थिक भविष्य को लेकर चिंतित है। ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का ध्यान रखने के राजनीतिक बड़बोलेपन के बावजूद हकीकत तो यह है किन शहरी अर्थव्यवस्था ने नीतियों के विघटन के मध्य ने अपना स्वार्थ साध लिया।  

   1991 से अबतक देश में किसी भी पार्टी ने कभी भी  देश के 75 प्रतिशत भूभाग पर शासन नहीं किया। इस ​िस्थति के आलोक में मोदी जी का 2019 का चुनाव किसी एक व्यवस्था परिवर्तनकनामी समूह से न हो कर 19 समूहों से होगा। अब देखना है कि वे इससे केसे निपटते हैं? एक तरफ "तीन तलाक" जैसा अल्पंख्यक संवेदन मामला लेकर भाजपा खड़ी होगी तो दूसरी  तरफ देश भर में आर्थिक संघर्ष को विपक्ष हथियार बनायेगा। आनेवाला समय काफी दिलचस्प होगा।   

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