खुशफहमी का कोई कारण नहीं
अभी दो दिन पहले अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान को कहा कि उसने आज तक उसे धोखा और फरेब ही दिया। इसके बाद ट्रम्प पाकिस्तान को दी जाने वाली सैनिक मदद में कटौती कर दी। यह मामला सबको हैरत में डाल देंने वाला नहीं है। ट्रम्प प्रशासन ने पाकिस्तान के प्रति निी नाराजगी को छिपाया नहीं है और पहले से ही उसके लक्षण दिख रहे थे। दरअसल पिछले अगस्त में जब पाकिस्तान ने नयी अफगान नीति की घोषणा की तबसे ही वह ट्रम्प प्रशासन की निगाह पर चढ़ गया था। नये वर्ष के ट्रम्प का इस मामले में ट्वीट तो एक तरह से उसी नाखुशी की अभिव्यक्ति थी। इसके बाद जैसा कि सबको अंदाजा था पाकिस्तान ने अमरीकी राजदूत को अपने विदेश मंत्रालय में बुलाया और जानना चाहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प की नाखुशी का कारण क्या है? हालांकि पाकिस्तान के मामले में राष्ट्रपति ट्रम्प क्या सोच रहे हैं यह तो अभी साफ नहीं है पर अमरीका पाकिस्तान को जो अफगानिस्तान के मामले में मदद देता था उसे उसने बंद कर दिया। अमरीका अफगानिस्तान में अपनी सेना को रसद और कुमुक पहुंचाने में सुविधा के लिये पाकिस्तानी सेना को भारी आर्थिकन मदद दिया करता था। इसके बदले पाकिस्तान अमरीका को लॉजिस्टिक की मदद के अलावा अफगानिस्तान स ड्रोन हमले के लिये अल कायदा आतंकियों को खत्म करने के लिये अफनी जमीन का उपयोग करने देता था। 2011 में ओसामा बिन लादेन को यहीं खत्म किया गया था। इधर भारत में कुछ लोग हैं जो इस ताजा हालत से यह समझने लगे हैं कि उनकी बात का दुनिया भर में उनकी बात सुनी जा रही है और उसे महत्व दिया जा रहा है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है और ना ही यह खेल को बदलने वाला है। अभी वह मुकाम नहीं आया है जो पाकिस्तान को बदलने के बाध्य कर दे। क्योंकि यह तो फकत फंड है जिसमें अमरीका ने कटौती कर दी। इससे बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला। इसके पहले भी आंबामा ने 30 करोड़ डालर की मदद बंद कर दी थी। पिछले साल जुलाई में भी ट्रम्प ने 35 करोड़ डालर कटौती कर दी थी। पाकिस्तान सब्कुछ छोल गया। आज भी मौका पड़ने पर अमरीका ही पाकिस्तान की मदद करेगा। वैसे बी चीन भी उसकी मदद के लिये आगे आ चुका है। ओ बी ओ आर परियोजना पर चीन पहले से ही पाकिस्तान को 50 अरब डालर दे चुका है। अतएव पैसा ही एकमात्र हथियार नहीं है जिससे अमरीका पाकिस्तान को झुका सके। दरअसल पाकिस्तान एक ताकतवर देश को अपनी काली करतूतों में मददगार बना रखा है और इसी बल पर दुनिया की महाशक्ति को ठेंगे पर रखता है। अभी कुछ लोग हाफिज सईद पर पाकिस्तान की कार्रवाई को लेकर खुशी जाहिर कर रहे हैं। यह भी गलत है क्याोंकि यह पहली बार नहीं है। एक बार दबाव घटेगा तो फिर सबकुछ वैसा ही हो जायेगा जैसा पहले था। हाफिज सईद पाकिस्तानी सेना का एा एक बहुत खास हथियार है और उसे इतनी जल्दी थोड़े ही पाकिस्तान छोड़ेगा। अब यह पाकिस्तान को कैसे प्रभावित करेगा? क्या भारत को पाकिस्तान के प्रति आक्रामक रूग अपनाना चाहिये? क्या भारत को नियंत्रण रेखा पार कर उसके आतकी शिविरों पर हमला कर देना चाहिये? नहीं, इससे बात नहीं बनेगी। जबतक पाकिस्तान भारत पर कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं करता है तबतक सैनिक हस्तक्षेप जैसी कोई बात नहीं हो सकती है। इस्लामाबाद भारतीय हमले को भुनाना शुरू कर देगा और अमरीका से भारत के रिश्ते कुछ दूसरी तरह के हैं। इधर भारत को खुशफहमी है कि उसकी कूटनीति काम कर ही है ओर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ रहा है। अमरीका और पाकिस्तान का यह टंटा जारी रहेगा आने वाले कुछ दिनों तक और फिर सबकुछ ठीक हो जायेगा। लेकिन उस समय तक पाकिस्तानी सेना भारत के साथ सम्बंध नहीं सुधार सकती। नयी दिल्ली को पाकिस्तान से मिलने वाले संकेत स्पष्ट नहीं हैं। भारत को अपनी सुऱक्षा को पुख्ता बनाये रखना चाहिये और इस खुशफहमी में नहीं रहना चाहिये कि हमारी लड़ाई कोई दूसरा लड़ेगा।
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