गांधी आज भी मौजूद हैं
आज महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है। बेशक गांधी जी की हत्या हुई और इससे उनका शरीर खत्म हो गया। लेकिन, इसके बाद भी गांधी हमारे बीच हैं और उनकी मौजूदगी तो हमें एहसास होता रहता है। मृत्यु के बाद गांधी भारत और दक्षिण अफ्रीका के रहकर पूरे विश्व के हो गए। हैरत होती है दूर कि दूर अमरीका और इंग्लैंड में स्कूली बच्चे गांधी पर लेख लिखते हैं। कभी बातें होती हैं तो वे गांधी के बताए हुए सबक के बारे में जानने को इच्छुक दिखाई पड़ते हैं। बच्चे पूछते हैं कि गांधी जी ने क्या सबक दिया? गांधी अक्सर कहा करते थे कि" मेरी जिंदगी प्रेम और सत्य के लिए ही है।" सत्य और प्रेम से ही हिंसा और नफरत खत्म होती है ,बदले की भावना समाप्त होती है और प्रेम बढ़ता है। आज पूरा विश्व नफरत की आग में झुलस रहा है। आए दिन अखबारों में देखने को मिलता है कि किसी देश में या किसी स्थान पर फसाद हो गए दर्जनों लोग मारे गए या आहत हो गए। अजीब सी वितृष्णा हो जाती है। क्या कारण है? मनोवैज्ञानिक युद्ध से सत्य पराजित होता दिखता है। हमारे ही देश में भी दिलों में नफरत पाले हुए लोग गांधी को इनकार करने में लगे हैं। वे नहीं सोचते कि गांधी का मरना अहिंसा की हत्या थी। जो ज्ञानगुमानी हैं वे इसी में लगे हैं कि गांधी को मारा नारा किसने? किसने मारा इस बात की विवेचना से अलग यह जानना जरूरी है कि गांधी के मरने से क्या मर गया? गांधी कहा करते थे कि "आंख के बदले आंख लेने की भावना गलत है। " क्योंकि अगर यह भावना जारी रही तो जल्द ही एक ऐसा समय आएगा सब लोग अंधे हो जाएंगे। अब से लगभग 15 साल पहले अमरीका में एक संगठन बना था "ग्लोबल इंटरफ़ेस पीस।" इस संगठन के लोग बगदाद जाकर वहां के निर्दोष नागरिकों की हिफाजत में जुटे हुए थे। इस तरह की भावनाएं विभिन्न देशों में भी देखने को मिलती हैं। जब इराक युद्ध चल रहा था तो न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर दी थी कि" सैकड़ों कार्यकर्ता लंदन से इराक के लिए रवाना हुए हैं जो वहां जाकर निर्दोष नागरिकों के लिए मानव कवच की तरह काम करेंगे।" इसका आयोजन "ह्यूमन शील्ड इराक" नामक संगठन की ओर से किया गया था। ये लोग गांधी के समर्थक थे या विरोधी मालूम नहीं पर ये हिंसा के विरोधी थे। बहुत से जानते होंगे कि उस युद्ध में 80% मारे गए या घायल लोग निर्दोष महिलाएं और बच्चे थे, सैनिक नहीं थे। लंदन में अध्यापनरत एक मित्र ने बताया, केवल लंदन विश्वविद्यालय में सौ से ज्यादा छात्र गांधी पर शोध कर रहे हैं।
कई शहरों से खबरें आती हैं, ये शहर भारत के ही नहीं विदेशों के भी हैं ,जहां व्यापारिक तौर पर गांधी के नाम और चित्र का इस्तेमाल व्यापारिक लाभ किया जाता है। कुछ दिन पहले लंदन में एक टी-शर्ट आई थी जिसका नाम गांधी टी-शर्ट था और कहा जाता था कि अब फुटबॉल के मैदान में अहिंसा को बढ़ावा देने का प्रयास शुरू किया गया है। यही नहीं गांधी पर कई कार्टून भी बनाए गए हैं जिसमें उनका मजाक उड़ाया गया है। जितने मुंह इतनी बातें होती हैं। अगर मनोवैज्ञानिक रूप में देखें तो पाएंगे कि गांधी अधिकांश लोगों के मन में मौजूद हैं और इनका सबके लिए कोई न कोई विशेष महत्व है। आज उनकी पुण्यतिथि है और उम्मीद की जाती है कि लोग कुछ क्षण रुक कर गांधी के बारे में सोचेंगे । गांधी की अहिंसा को अगर सोचें तो एक बात सामने आएगी ।
बिजली बनके थी शमशीर चली
पर आप आप ही मुकर गई
कहते हैं गांधी के सीने में जाकर तलवार स्वयं ही टूट गई।
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