विकास दर धीमी पर उम्मीद कायम है
सकल घरेलू उत्पाद नये वित्तीय वर्ष में कितना रहेगा , सरकार के सांख्यिकी और क्रार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने इसका अनुमान जारी कर दिया है। यह इस वर्ष 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि पिछले साल यह 7.1 प्रतिशत था। तमाम सरकारी आश्वासनों के बावजूद जो साल बीता उसमें सकल निजी व्यय कम हो कर 6.33 प्रतिशत हो गया जो पिछले साल 8.7 प्रतिशत था। खर्च में कमी का रिकार्ड और विकास में कमी का अनुमान अगल वर्ष की झलक साफ दे रहा है कि आने वाले साल में ना केवल महंगायी बढ़ेगी बल्कि आम जनतमा की माली हालत भी खस्ता रहेगी और आय के प्रति जनता आशंकित रहेगी। ये आंकड़े राष्ट्रीय आय के बारे में पहला अग्रिम अनुमान हैं। विकास दर घट रहा है और विपक्ष लगातार कह रहा है कि इसका कारण सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियां हैं , लेकिन सरकार बार- बार आश्वासन दे रही है कि विकास दर बढ़ेगी। हालांकि अन्य आंकड़े बता रहे हैं कि विकासस हो रहा है तो सवाल है कि इसके बावजूद विकास दर के आंकड़े कम क्यों कर के दिखाये जा रहे हैं। उधर रिजर्व बैंकन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये दर शुरूआती झटके हैं जिनका असर अगले 6 महीनों तक रह सकता है। बीते मानसून में बम्पर अनुमान हुआ था। आंकड़े बताते हैं कि मानसून की फसल लगभग 13.50 करोड़ टन हुई थी जो पिछले साल की तुलना में 23 प्रतिशत ज्यादा थी और यही नहीं विगत 2010 के बाद के वर्षो की तुलना में यह खरीफ का सर्वाधिक उत्पादन रहा है। ऐसा लगता है कि इसका कारण नोटबंदी से हुई रोजगार की हानि और खुदरा व्यापार की क्षति को देखते हुये यह अनुमान लगाया है। सरकार ने कालेधन को समाप्त करने की गरज से नोटबंदी की घोषणा की थी और बाद में उसके उद्देश्य बदलते गये थे। दिलचस्प तथ्य यह है कि सरकार के पास अब तक यानी नोटबंदी के दो साल के बाद तक सरकार को यह नहीं मालूम चल सका कि देश में कितना काला धन है। आर बी आई की वार्षिक रिपोर्ट में के अनुसार नोटबंदी के बाद 16 लाख करोड़ रुपये वापस नहीं आ सके। यही नहीं नोटबंदी का असर किसानों और छोटे व्यापारियों पर पड़े ओर विकास दर धीमी होने लगी। क्योंकि छोटे व्यापारियों ने बाजार से व्याज पर कर्ज लिये और उधहर किसानों को अपने चेक के भुगतान में दो - दों महीनों तक इंतजार करना पड़ा जिससे उनपर भी व्याज बढ़ गया। आंकड़ों के अनुसार 2017 में किसानों के कर्ज महज 9 प्रतिशत ही लौटे जबकि पिछले साल यह 70 प्रतिशत था। नतीजा हुआ कि व्यक्तिगत व्यय में कमी आई आयी ओर जिससे विकासदर बाधित होने लगा। यही नहीं 27 अक्टूबर 2017 को जारी रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय 16.35 लाख करो़ड़ रुपये मूल्य के नोट चलन में डाल दिये गये थे जबकि 2016 में 4 नवम्बर को 17. 97 लाख करोड़ रुपए संचालन में थे। 19 दिसम्बर 2017 को राज्यसभा में वित्तमंत्री अरूण ने बताया कि आयकर विभाग ने नवम्बर 2016 से मार्च 2017 तक 900 समूहों से लगभग 900 करोड़ रुपयो की अचल सम्पति और नगदी जब्त की है। अगर औसत देखें तो एक समूह पर एक करोड़ रुपये की मामूली रकम पकड़ी गयी है। यह इतनी बड़ी अर्थ व्यवस्था में कुछ नहीं है। विपक्ष का आरोप है कि इस अघोषित धन को खोजने में सरकार को उससे ज्यादा खर्च करने पड़े हैं। दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने इसी अवधि के दौरान 8239 छापे मार कर अज्ञात माध्यम से जमा किये गये 6745 करोड़ रुपये जब्त किये गये। जीएसटी एक एकीकृत कराधान प्रणाली के रूप में शुरू किया गया था।केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क के अनुसार 9 करोड़ 90 लाख करदाता जीएसटी के तहत 25 दिसम्बर 2017 तक पंजीकरण करा चुके हैं। वित्त मंत्रालय से 26 दिसम्बर 2017 को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार 25 दिसम्बर तक 80.808 करोड़ रुपये एकत्र किये जा चुके हैं। सरकार के आंकड़े बताते हैं कि शुरूआती दर में बेशक विकास दर धीमा रहा है पर आगे चल कर इसमें गति आ सकती है। सकारात्मक नजरिया इस हकीकत को कितना बदलेगा यहा नहीं कहा जा सकता है पर उम्मीद तो कायम हो सकती है।
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