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Thursday, August 23, 2018

2019 में यह संतुलन बना रहे तब तो !

2019 में यह संतुलन बना रहे तब तो !

फिलहाल भाजपा ने अमीरों और गरीबों के बीच अपना सियासी संतुलन बना लिया है। लेकिन सवाल है कि यह कब तक कायम रहेगा? जिन्होंने इतिहास पढ़ा होगा उन्हें यह मालूम होगा की महात्मा गांधी की वर्तमान  कांग्रेस 1885  में बनी थी। उस समय गांधी कहीं दृष्टि में नहीं थे । जब वह राजनीति के क्षितिज पर उभरे और कांग्रेस का नेतृत्व शुरू किया तो धीरे-धीरे कांग्रेस अखिल भारतीय पार्टी बन गई। समाज के लगभग सभी तबकों में इसकी पैठ  हो गई। इनमें कई ऐसे भी तबके थे  जिनके स्वार्थ और हित आपस में टकरा रहे थे  । कांग्रेस एक ऐसी पार्टी बन गई जिसमें अमीर भी शामिल थे और मजदूर और गरीब भी शामिल थे ।  गरीबों का सपना था कि कांग्रेस उनकी गरीबी दूर कर देगी । अमीरों को उम्मीद थी कांग्रेस उनके फूलने फलने में मददगार होगी। यह सिलसिला आजादी के बाद भी चलता रहा। कांग्रेस अमीरों के पक्ष में नीतियां बनाती रही और गरीबों में गरीबी दूर करने की उम्मीद जगाती रही । कांग्रेस में सवर्ण हिंदुओं और दलितों - हरिजनों सब का समावेश था। नेता बदले ,समय बदला और कांग्रेस ने समाज सुधार सम्मेलनों को धीरे-धीरे बंद कर दिया । पार्टी पर सवर्ण  नेताओं का वर्चस्व हो गया और उन्हें सामाजिक ढांचे में परिवर्तन की बात नागवार लगने लगी। जिस  पार्टी ने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था और जातिभेद तथा समाज सुधार के प्रश्न को दरकिनार रखा था वही कांग्रेस भीतर ही भीतर जातिभेद का समर्थन करने लगी। जब तक कांग्रेस ब्राह्मण ,दलित और मुस्लिम समीकरण पर अमल करती रही तब तक उसकी सत्ता बनी रही वह चलती रही।
        नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा भी 21 वीं सदी में वही कर रही है जो कांग्रेस कर रही थी। नरेंद्र मोदी खुद स्वीकार करते हैं कि उद्योगपतियों के साथ खड़े होने में कोई दिक्कत नहीं है। विपक्ष आरोप लगाता है कि भाजपा की नीतियों से  अमीरों को फायदा हुआ  है । आंकड़े भी बताते हैं कि भाजपा के शासनकाल में अमीरों द्वारा लिया गया ज्यादातर बैंक कर्ज डूब गये या उनके डूबने की आशंका बनी हुई है । विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का उदाहरण सबके सामने है । राफेल का सौदा ,कहते हैं कि ,एक औद्योगिक घराने को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है।
       लेकिन यह  भाजपा की एकमात्र  छवि नहीं है। इस तस्वीर का एक और पहलू है। ऐसा लगता है कि भाजपा गरीबों की झोली में भी कुछ डाल रही है और कुछ नहीं तो उनके भीतर उम्मीद की उर्जा भर रही है। जन धन योजना और मुद्रा योजना इसका उदाहरण हैं। उज्ज्वला योजना ही काफी वाहवाही हुई। 4 करोड़ परिवारों को पहली बार गैस कनेक्शन मिला । यही नहीं स्वास्थ्य बीमा योजना से लगभग 50 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचने की उम्मीद है । इसी तरह से कई और योजनाएं हैं जो गरीबों में जीवन के प्रति उम्मीद जगा रही है।  नोटबंदी की सब जगह आलोचना हो रही है लेकिन गरीबों में यह विश्वास है कि चलो इससे अमीरों का कालाधन तो खत्म हो गया । सारी आलोचनाओं के बाद भी वह खुश है। क्योंकि उनके घाव पर इससे मरहम लगा है। इसमें कितनी हकीकत है जिसका आज अनुमान नहीं है लेकिन बात छवि की है और भाजपा ने इस मामले में अपनी छवि बना ली है।
      सामाजिक स्तर पर भाजपा वही दोहरा रही है जिसने कांग्रेस के लिए करिश्मा किया था।  राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर भाजपा के नेतृत्व में सवर्ण हिंदू ही शामिल हैं और यह उन्हीं द्वारा संचालित होती है । अधिसूचित जाति, जन जाति और अन्य पिछड़े वर्ग नेता प्रकोष्ठों में ही नजर आते हैं । बड़े पदों पर सवर्णों का ही दखल है । केंद्रीय मंत्रिमंडल में आधे से ज्यादा सवर्ण हैं। दलित ,आदिवासी और मुसलमान गिने चुने हैं। लेकिन जैसे ही भाजपा जिला ,ब्लाक और ग्राम स्तर में आती है तो बदल जाती है। वह ओबीसी की ओर ध्यान दे रही है। इन दिनों विभिन्न ओबीसी संगठनों का सम्मेलन भी करवा रही है। आदिवासी इलाकों में वनवासी कल्याण आश्रम बन रहे हैं और भी कई संगठन काम कर रहे हैं ।खुद नरेंद्र मोदी अपने पिछड़ी जाति की पृष्ठभूमि का कई बार जिक्र कर चुके हैं। वे सामाजिक गोलबंदी पर लगे हैं और पार्टी खुलकर खेल रही है।
      हमारे प्रधानमंत्री अपने पिछड़े होने का ढोल तो पीटते हैं लेकिन जब नेतृत्व  संरचना की बात आती है तो पिछड़े नजरअंदाज हो जाते हैं । दरअसल भाजपा भी वही कर रही है जो फॉर्मूला कांग्रेस ने अपनाया था। कांग्रेस की तरह इस के भीतर  दो भाजपा काम कर रही है। एक तरफ वह  कारपोरेट घरानों और सवर्णों के साथ है दूसरी तरफ़ गरीबों और अन्य जातियों को साधने  में लगी है । यहां कांग्रेस और भाजपा की रणनीति में थोड़ा अंतर है । कांग्रेस जब कर रही थी तब आजादी के तुरंत बाद का वक्त था। राष्ट्र निर्माण का दौर चल रहा था । कांग्रेस ने  दलितों और पिछड़ी जातियों का मुकद्दर बदलने के लिए कुछ नहीं किया लेकिन राष्ट्र निर्माण का झंडा इतना बुलंद था कि उसके पीछे सारे सवाल ढक गए। लेकिन , बीजेपी के पास वह अवसर नहीं है। उसके पास भी एक झंडा है लेकिन वह हिंदुत्व का है । इस झंडे के पीछे भाजपा जातियों के अंतर्विरोध को छिपाने की कोशिश कर रही है लेकिन कोई साथ सफलता नहीं मिल रही है। अंबेडकर ने अपनी पुस्तक "एनिहिलेशन ऑफ कास्ट " में लिखा है कि "दंगों के वक्त ही विभिन्न जातियां हिंदू बन जाती हैं, बाकी समय वह अपने बिलों  में रहती है।"
        भाजपा हिंदुओं और मुसलमानों के अंतर्विरोध को बढ़ा रही है लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि दलितों और पिछड़ों के उभार के इस दौर में हिंदुत्व का नारा कितना कामयाब होगा। नारे के शोर में भाजपा पिछड़ों और वंचितों की आवाज को कहां तक दबा सकती है । भारतीय राजनीति का यह महत्वपूर्ण पहलू होगा और वही वर्तमान की सियासत की राह तय करेगा । देखना है भाजपा अगले चुनाव में इस संतुलन को कितना साध सकती है।
   

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