जहां मन भय से मुक्त हो
कल हमारे देश की आजादी की 71वीं वर्षगांठ है और इस बीच कई राजनीतिक उथल पुथल हुए। कई पार्टियों की सरकारें बनी। आपात स्थिति लागू हुई और भी कई बदलाव हुए। आरंभिक काल से ही हमारे देश में गिने चुने लोग ही राजनीति में हिस्सा लेते रहे हैं और लेते आ रहे हैं। इसी लिए, महात्मा गांधी ने कहा था कि जब तक किसानों मजदूरों को हम आंदोलन में शामिल नहीं करेंगे तब तक असली आजादी नहीं मिलेगी। जो लोग राजनीति में हिस्सा लेते हैं वे चाहते हैं अन्य लोग या सामान्यजन इससे दूर रहें और इसलिए उन्हें हतोत्साहित किया जाता है। दूसरी तरफ जो विद्वान हैं वे जॉर्ज बर्नार्ड शॉ की बात कि " राजनीति गुंडों की अंतिम शरणस्थली है " का अनुसरण करते हुए राजनीति को निराशाजनक और अशिष्ट कहते हैं । जिसके कारण समर्पित नागरिकों को भी सरकार के प्रति निराशा होती है। सब यह कहते हैं कि जो भी आएगा ऐसा ही करेगा या फिर पिछले वाला दोषी था यह सही है। जितनी गड़बड़ी हुई थी पिछली सरकारों ने की थी । आज भी हमारे देश में ऐसा ही है और आम आदमी चुप है। हम क्यों चुप रहें? कहीं दलितों के नाम पर दमन हो रहा है, तो कहीं गोरक्षा के नाम पर मारकाट मची हुई है, कहीं से बलात्कार की खबरें आती हैं तो कहीं आश्रय गृहों में भूखी लड़कियों से दबंग अपनी देह की भूख मिटाते हैं। आम आदमी चुप रहता है। कोई नहीं सोचता कि जो आज दूसरों पर जुल्म ढा रहा है वह कल हम पर भी वही करेगा।
आज हमारे पूर्वजों ने जो देश हमें दिया है जो आजादी हमें दी है हमने कभी सोचा है उसके बारे में ? हम दुनिया के केवल 40% ऐसे लोगों में शामिल है जो आजाद हैं और लोकतंत्र में रह रहे हैं। दुनिया के 55 देशों के लोग आंशिक रूप से आजाद है इन 55 देशों में 1.72 अरब लोग रहते हैं। बाकी 51 देशों में जहां 2.6 अरब लोग निवास करते हैं वे आजाद नहीं हैं। ऐसे में अगर आम आदमी खासकर हर भारतीय जो राजनीतिक रुप में सक्रिय नहीं होगा तो इस देश की रक्षा नहीं हो पाएगी। यह इसलिए जरूरी है कि हमारे पसीने की कमाई दांव पर है। सरकार सदा अलग-अलग टैक्सों और शुल्कों इत्यादि के जरिए हमसे अधिक से अधिक टैक्स वसूलना चाहती है। सरकार यह नहीं देखती की औसत भारतीय जिसकी कमाई 1.2 लाख रुपए सालाना या उससे भी कम है वह कैसे जीवन यापन करता है। हम यह नहीं जानते कि हम जो छोटी से छोटी चीज खरीदते हैं उस पर टैक्स देते हैं। यदि हम सक्रिय नहीं हुए तो हमारी गाढ़े पसीने की कमाई ये राजनेता और नौकरशाह इसी तरह अपने उपभोग के लिए हमें लूटते रहेंगे।
भारत आज भी एक अमीर राष्ट्र है लेकिन आम भारतीय गरीब है। हम नहीं जानते कि हमारे पास कितनी दौलत है। क्योंकि ,उसके बहुत बड़े हिस्से पर सरकार का कब्जा है। हर भारतीय चाहे वह अमीर हो या गरीब सार्वजनिक संपत्ति पर बराबर का हकदार है। मसलन ,जमीन ,सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, खनिज इत्यादि। सार्वजनिक संपत्ति की वापसी से देश समृद्ध हो सकता है और हमारी गरीबी दूर हो सकती है। राजनीतिक रूप में सक्रिय होने से ही हम इस संपत्ति की मांग कर सकते हैं।
हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। यदि हम इसमें अपनी भूमिका नहीं निभाते तो हमें प्राप्त विशेषाधिकार समाप्त हो जाएंगे। एक वोट या एक सवाल उठाने से काफी फर्क पड़ता है। प्लेटो का कहना था कि "राजनीति में भाग नहीं लेने का एक दंड यह भी है कि हम अशिष्ट लोगों से शासित होते हैं।" अगर हम सूचित रहेंगे इंफॉर्मड रहेंगे तो जागरुक मतदाताओं के कारण नेता जवाबदेह बन सकते हैं। ऐसा कई बार हुआ है कि भ्रष्ट नेता चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों ना हो जेल गया है । क्योंकि, हमारी और आपकी तरह के लोगों ने उसके खिलाफ आवाज उठाई है।
महान विचारक पेरिकल्स का मानना था कि "अगर आप राजनीति में रुचि नहीं लेते इसका यह मतलब नहीं है कि राजनीति आपके लिए कोई दिलचस्पी नहीं लेगी ।" आप और हम सब जानते हैं कि सत्ता पर आसीन लोग हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। हमारे भविष्य और हमारे वर्तमान के बारे में फैसला करते हैं । यदि हम चाहते हैं कि यह फैसला सही हो और हमारे अनुकूल हो तो हमें राजनीति में सक्रिय रुप से भाग लेना पड़ेगा। सच को सच कहने का साहस रखना पड़ेगा। अन्यथा , सत्ता के दुरुपयोग कर ये नेता अपने चमचों - भक्तों के बल पर हम पर राज करेंगे। गलत नीतियों को लागू होने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका है कि उन्हें बनने से रोका जाए । यह तभी संभव है जब हम सक्रिय और जागरूक रहेंगे । अगर हम नहीं जानते कि सरकार क्या कर रही है कौन सी नीति बना रही है तो हम उसे कैसे रोक सकते हैं ? स्वतंत्र भारत के इतिहास में गलत नीतियों का अभाव नहीं है। अगर हम राजनीतिक रूप से सक्रिय होकर इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं इन नीतियों में बदलाव आता है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो गरीबी में ही सिसकते रहेंगे। हमें यह पता लगाना चाहिए कि क्या हो रहा है। कौन सी नीतियां हमें लाभ देती हैं और कौन सी नहीं । तभी हमारे पूर्वजों द्वारा देखा गया सपना पूरा होगा। कवि गुरु रविंद्र नाथ ठाकुर ने लिखा था
जहां मन भय से मुक्त हो
और सिर सम्मान ऊंचा हो
जहां ज्ञान स्वतंत्र हो
जहां दुनिया क्षुद्र स्वार्थों के
टुकड़ों में ना बटी हो
जहां विचार सच्चाई की गहराई
से उपजते हों
वैसे ही स्वतंत्रता के स्वर्ग में
हे परमपिता मेरे देश को जागृत कर दें
Monday, August 13, 2018
जहां मन भय से मुक्त हो
Posted by pandeyhariram at 6:01 PM
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