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Thursday, August 9, 2018

सबसे बड़े दोषी तो हम हैं

सबसे बड़े दोषी तो हम हैं
मुजफ्फरपुर कांड के बाद उत्तर प्रदेश में भी ऐसी घटना घटी है। मुजफ्फरपुर कांड को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा इससे वह शर्मिंदा हैं। इसके बाद बिहार विधानसभा मैं विपक्ष के नेता ने भी कहा कि उनका माथा शर्म से झुक गया है। अभी यह बात फ़िज़ा में गूंज ही रही थी कि उत्तर प्रदेश के देवरिया में एक ऐसी ही घटना होने की खबर आई। इस घटना के बाद केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भय जाहिर किया कि कहीं देशभर में ऐसी घटना नहीं घट रही हो।  इसकी मुकम्मल जांच होनी चाहिए। मेनका जी का डर गलत नहीं है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसी की राय दी थी कि "लगता है इस तरह की घटनाओं में सरकार की शह है, क्योंकि ऐसे शेल्टर होम्स को पैसा कौन देता है?" सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की हर जगह महिलाओं से बलात्कार किया जा रहा है। न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने एन सी आर बी के आंकड़ों के हवाले से  कहा कि देश में हर 6 घंटे में एक महिला के साथ बलात्कार होता है। अदालत ने बड़ी बेबसी से कहा ,क्या किया जाए हर जगह लड़कियों और महिलाओं से बलात्कार हो रहे हैं ? 
        लेकिन सवाल उठता है कि क्या मुजफ्फरपुर  बालिका गृह ही एकमात्र ऐसी जगह है जहां बच्चियों का शोषण हो रहा है? एनजीओज की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार बिहार में ऐसे 15 संस्थान हैं जिन्हें सरकार धन देती है और शक है कि वहां बच्चियों से गलतकारी होती है। लेकिन इतने घिनौने अपराध के बावजूद राजनीति करने से हमारे नेता चूकते नहीं हैं। उत्तर प्रदेश की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने कहा इस तरह के मामलों में पिछली सरकार दोषी है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों ने पलटवार किया और कहा कि जिन लोगों ने सब कुछ चौपट किया है वही लोग आज नारी उत्पीड़न के नाम पर या महिला सुरक्षा के नाम पर हाथों में मोमबत्तियां लिए दिखावा कर रहे हैं। इस पर राजनीति  कर रहे हैं।  राजनीतिज्ञ चाहे जो करें या जो कहे लेकिन माथा तो उन राज्यों की जनता का शर्म से झुकता है।
        अब यह देखना होगा कि ऐसी घटनाओं के कारण आम लोगों को शर्मसार करने का  कसूरवार कौन है? यह किसकी जिम्मेदारी है? यह सही है कि ,अगर पुलिस ने अपनी ड्यूटी सही ढंग से और ईमानदारी से निभाई होती तो इन आश्रय गृहों में बच्चियों के आंसू नहीं बहते। कोई बृजेश ठाकुर आंसुओं के कारण नहीं बन पाता।  कोई भी सफेदपोश भूख से बिलबिलाती इन बच्चियों से अपनी देह की भूख मिटाने के लिए उनकी तरफ नहीं देखता। लेकिन क्या करें जब सरकार ही मान रही है कि पूरा सिस्टम ही नकारा है ,असफल है तो बात आती है कि  सिस्टम को नकारा बनाने के लिए जिम्मेदार कौन है? दरअसल इस में हमारे नेताओं की ही भूमिका है। चुनाव के वक्त जब दबंगों और बाहुबलियों को खुले हाथों से चुनाव लड़ने का टिकट दिया जाता है उसी समय इस कहानी की  इबारत लिख दी जाती है। उदाहरण के लिए देखें बिहार विधानसभा के 2015 के चुनाव में 3479 उम्मीदवारों में से 1043 उम्मीदवार ऐसे थे जिन पर फौजदारी मामले चल रहे थे और इनमें से 58 ऐसे लोग चुनकर कर आए हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। सोचिए, 243 विधायकों में से 58 विधायक गंभीर अपराधी हैं । यूपी की हालत भी बिहार से अच्छी नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 18% ऐसे उम्मीदवार थे जिन पर गंभीर आपराधिक मुकदमे थे। जीतकर सदन में पहुंचने वाले 403 विधायकों में 36% ऐसे हैं जिन पर अपराधिक मुकदमे हैं और 27% ऐसे हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं। पूरे देश का हाल जानने के लिए जरा लोकसभा में माननीय सांसदों की सूची देखें। इनमें 34% ऐसे हैं जिन्होंने अपने हलफनामे में कबूल किया है कि उन पर फौजदारी मुकदमे चल रहे हैं । इसका मतलब साफ है, जिनसे हम अपनी हिफाजत की उम्मीद लगाए बैठे हैं उनमें एक तिहाई लोग गंभीर अपराधों में खुद शामिल हैं। ऐसे सिस्टम में शर्मसार होना ही हमारा मुकद्दर है।
       इतना ही नहीं इसके लिए सिस्टम को दोषी बनाना पूरी तरह ठीक नहीं है। चुनाव के समय अपराधियों के नाम के आगे वाले बटन को दबाने का पाप तो जनता ही करती है। सामाजिक जिम्मेदारी नहीं निभाने और चुप रहने से अपराध फलता-फूलता है। सोचिए इन आश्रय गृहों में जो कुछ भी हो रहा था क्या उसकी खबर पास पड़ोस के लोगों को नहीं थी? हमारे समाज की जो फितरत है उसके अनुसार तो आसपास के हर आदमी को या मोहल्ले के लगभग 40 से 50 घरों को तो इसकी पूरी खबर होगी ही। हमारे समाज का जो स्वभाव  है उसके अनुसार तो किसके घर में खाने में क्या बनता है या पति - पत्नी में क्या-क्या तू-तू-मैं-मैं होती है इसकी खबर पड़ोस के 40 - 50 घरों को हो जाती है। कम से कम यूपी-बिहार में तो ऐसा ही होता है। अब अगर इन आश्रय गृहों के आसपास के लोगों ने पुलिस को पूरी जानकारी दी होती और पुलिस ने किसी सफेदपोश के रसूख से अगर मामला दर्ज नहीं किया होता तो बात अलग थी तब कहा जा सकता था पूरा सिस्टम नकारा है। लेकिन, क्या कोई थाने में गया ? 
     यही नहीं अब जिनके हाथ में सिस्टम को ठीक करने का अधिकार है वही चारों तरफ घूम घूम के कह रहे हैं कि वे शर्मिंदा हैं। अब आप सोच सकते हैं कि रोग कहां तक फैल चुका है, और ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है। क्या उस समय हमारा सिर शर्म से नहीं झुकता जब हमारी संसद या  विधानसभाओं में कुछ प्रतिशत अपराधी भी चुन कर चले जाते हैं ? जब तक इनको नहीं रोका गया तब तक सिस्टम कुछ कर ही नहीं सकता है ।  यह जिम्मेदारी बुनियादी तौर पर जनता की है ,हमारी और आपकी है। जो कुछ भी हो रहा है सबकी जिम्मेदारी हमारी है। यानी , जनता की है। अगर आज नहीं चेते तो हो सकता है कल जो कुछ आश्रय गृहों में हो रहा है वह हमारे आस पास होने लगे और हम पछताने के सिवा कुछ न कर सकें।

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