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Sunday, August 5, 2018

एनआरसी को लेकर राजनीति का ध्रुवीकरण

एनआरसी को लेकर राजनीति का ध्रुवीकरण

नेशनल सिटिज़न रजिस्टर (एनआरसी) ने एक बार फिर भारतीय राजनीति को ध्रुवीकृत कर दिया है। मोर्चे खोले जा चुके हैं। सरकार और विपक्ष एक दूसरे से उलझ रहे हैं। दोनों वोट बैंक की राजनीति का आरोप लगा रहे हैं। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी  अवैध घुसपैठियों के बारे में अक्सर बात करती है और भारत से उनको हटाने की इच्छुक है लेकिन एनआरसी के अंतिम ड्राफ्ट को लेकर पार्टी थोड़े विभ्रम में है। जैसे एनआरसी का मसौदा बनाना सरकार से संबद्ध है  या नहीं ? क्या वे 40 लाख लोग अवैध निवासी हैं? उनके साथ क्या किया जाएगा ?क्या उन्हें बांग्लादेश वापस भेजा जाएगा?
30 जुलाई 2018 को संसद में  गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बलपूर्वक कहा कि "ड्राफ्ट तैयार करने में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है और यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किया जा रहा है। यही नहीं, ड्राफ्ट को प्रकाशित करने में भी सरकार की भूमिका नहीं है। सरकार पर विपक्ष का आरोप निराधार है।" जिन लोगों के नाम ड्राफ्ट में नहीं हैं उनके बारे में गृह मंत्री ने कहा कि जो लोग यह समझते हैं कि उनके नाम उस क्राफ्ट में शामिल होने चाहिए तो उन्हें आपत्ति करनी चाहिए और नाम शामिल करने के लिए दावा करना चाहिए। गृह मंत्री ने स्पष्ट कहा कि एनआरसी का मसौदा बनाने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है और उसने इस सम्बद्ध  लोगों से बातचीत की है और जिनके नाम उसमें नहीं है उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है इसमें संशोधन किया जाएगा।
     एक दिन बाद यानी 31 जुलाई 2018 को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सीना ठोकते हुए कहा " इसको अमल में लाने की हिम्मत नहीं थी हम में हिम्मत है।" अमित शाह ने कहा कि 2005 में कांग्रेस ने एनआरसी की प्रक्रिया आरंभ की थी। वे लोग इस पर कैसे आपत्ति उठा सकते हैं और वोट बैंक की राजनीति का आरोप लगा सकते हैं? " कांग्रेस में साहस नहीं था कि वह बांग्लादेशी घुसपैठियों को यहां से भगाए । उनके लिए वोट बैंक की राजनीति महत्वपूर्ण है, देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण नहीं है। भारतीयों का मानवाधिकार महत्वपूर्ण नहीं है।" कांग्रेस में साहस नहीं था इसलिए इसने एनआरसी 2005 में शुरू कर उसे बंद कर दिया । अमित शाह ने अस्पष्ट सुझाव दिया है कि यह भाजपा सरकार द्वारा किया जाएगा। उन्होंने खुलकर कहा है कि "कांग्रेस सरकार में हिम्मत नहीं  थी कि असम में अवैध घुसपैठियों  को हटाए।" अमित शाह की बात गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा  संसद में  दिए गए बयान  से बिल्कुल विपरीत है।
      केंद्रीय स्वास्थ्य और कल्याण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कांग्रेस सांसद प्रदीप भट्टाचार्य से सार्वजनिक बातचीत में  चिल्लाते हुए सुना गया कि " सभी बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर निकाला जाएगा।" कांग्रेस सांसद ने चौबे पर आरोप लगाया कि वे लोगों को गुमराह कर रहे हैं और गलत सूचना दे रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने बचाव करते हुए कहा जो भारतीय भारतीय बनकर रहेगा वही देश का नागरिक होगा । उन्होंने यह भी कहा कि चाहे वह हिंदू मुसलमान हो या नहीं हो अगर वह बंगलादेश से आया है तो उसे बाहर निकाला जाएगा।
       मामले को और गंभीर बनाते हुए तेलंगाना में भाजपा सांसद राजा सिंह को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि अगर यह रोहिंग्या या बांग्लादेशी अवैध घुसपैठिए हैं और इज्जत से भारत नहीं छोड़ते हैं तो उन्हें गोली मार दी जाएगी और यहां से बाहर निकाल दिया जाएगा, तभी हमारा देश सुरक्षित रह सकता है। उन्हें यह मालूम नहीं है कि अवैध घुसपैठिए कब भारत आए और 40 लाख लोगों के नाम एनआरसी में नहीं है उसमें क्या सब अवैध हैं? उन्होंने कहा कि 1971 के युद्ध में भारत ने बांग्लादेश का समर्थन किया और उसी समय बहुत बड़ी संख्या में बांग्लादेशी असम में आ गए और वहां 40 लाख ऐसे लोग रह रहे हैं।
        भाजपा के नेताओं के सार्वजनिक बयान यह  स्पष्ट कर देते हैं कि वे भारत को अवैध प्रवासियों से मुक्त कराना चाहते हैं लेकिन  इसमें सरकार की भूमिका के प्रति विभ्रम में है। वह कंफ्यूज है कि इनकी शिनाख्त में सरकार की क्या भूमिका है और यह बात भी मालूम नहीं है कि इतने सारे लोगों को उनके मूल देश में कैसे भेजा जाएगा।

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