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Friday, August 3, 2018

कांग्रेस को अनुभूति की जंग जीतनी होगी

कांग्रेस को अनुभूति की जंग जीतनी होगी

राजनीति में अनुभूति से ताकतवर कुछ नहीं होता । अनुभूति के माध्यम से लोग चुने जाते हैं और सरकारें बदल जाती हैं। यह एकमात्र हकीकत है और परिवर्तन का वाहक है। इसके माध्यम से आम आदमी पार्टी की तरह की पार्टी सत्ता में आ सकती है और कांग्रेस जैसी सत्ता से जा सकती है । लोग जैसा देखते हैं उसी पर भरोसा करते हैं और  लोग राजनीतिक दलों को वैसे ही अनुभूत करते हैं।
       कांग्रेस की तरह ताकतवर दल को अपने प्रति जनता में व्याप्त अनुभूति को बदलना होगा वरना उसके अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है।  चंद वास्तविक घटनाओं या स्थितियों के परिणाम स्वरुप अनुभूतियां बनती हैं और उससे तैयार वातावरण को विपक्ष चारों तरफ फैलाता है। कांग्रेस पार्टी को अपने चारों तरफ व्याप्त दुष्प्रचारों का मूल्यांकन करना होगा और यह देखना होगा कि हानि कहां से शुरू हुई और उसे खत्म करने की कोशिश करनी होगी। देशभर में सत्ता का परिवर्तन इस बात का संकेत देता है कि कांग्रेस को अनुभूति की सांकेतिक जंग जीतनी होगी । मैदान में उसके विरुद्ध भाजपा है, जिसके पास बहुव्याप्त प्रचारतंत्र है। आजादी के वक्त कांग्रेस पार्टी हिंदू पार्टी के नाम से जानी जाती थी । राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस ने हिंदू मतदाताओं को एक तरह से छोड़ दिया और भाजपा ने उसे अपना लिया। उसने बड़ी चालाकी से स्थिति का उपयोग किया। यह समय वह था जब राम जन्म भूमि आंदोलन चल रहा था और इसी कारण उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पराजित हो गई तथा सर्वदा के लिए हिंदू प्रदेशों से उस के अधिकांश वोट खत्म हो गए । यूपीए के 10 साल के शासन काल में तो यह समाप्त ही हो गयी। जिस पार्टी का 1980 के चुनाव में 42.69 प्रतिशत वोट था वह 1984 में बढ़कर 49.10 प्रतिशत हो गया लेकिन यहीं से गिरावट भी शुरू हुई और 1989 में यह 39. 53 प्रतिशत ,1991 में 35.66 प्रतिशत, 1996 में 28. 80 प्रतिशत और 1998 में 26.24 प्रतिशत हो गया। आंकड़े बताते हैं कि 1991 के बाद कांग्रेस के वोट बढ़े ही नहीं लगातार घटते गए।  1999 के चुनाव में कांग्रेस के वोट मामूली तौर पर बढ़कर 28.30 प्रतिशत हो गए बाद में 2004 में यह फिर गिरे ।लेकिन, फिर उम्मीद की किरण दिखी । 2009 में वोट प्रतिशत बढ़कर 28.55 हो गया। लेकिन ,अंत में 2014 में सार्वकालिक पतन में दिखा। इस साल इसका वोट 19. 52 प्रतिशत हो गया । कांग्रेस का कटा हुआ वोट सीधे भाजपा के झोली में गया और इसके उत्थान का कारण बना। असल में कांग्रेस  में वामपंथियों और अस्तित्ववादियों के प्रवेश से वह हिंदू समुदाय से विमुख होने लगी। अब अगर राम और अयोध्या के बारे में बात होती थी तो कांग्रेस में शामिल वामपंथी उन लोगों को संघी कहते थे। ए के एंटोनी के रिपोर्ट के मुताबिक अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण कांग्रेस के पराजय का कारण बना।
      एक तरफ नरेंद्र मोदी 2002 से 2014 के बीच हिंदू हृदय सम्राट के रूप में विख्यात हो रहे थे और दूसरी तरफ हिंदुओं में यह अनुभूति हो रही थी कि कांग्रेस अल्पसंख्यक समर्थक पार्टी है और वह कांग्रेस से विमुख होते जा रहे थे । जब तक कांग्रेस पार्टी हिंदुओं से दूरी बनाए रखेगी और राम मंदिर के बारे में बातें नहीं करेगी कब तक वह अपनी हिंदू विरोधी छवि को खत्म नहीं कर सकती और हिंदुओं के दिल में जगह नहीं बना सकती । कोई भी राजनीतिक दल हिंदुत्व के विरुद्ध चल कर हिंदू मतों को हासिल नहीं कर सकता। केरल की मार्क्सवादी सरकार ने इसीलिए रामायण मास  मनाया । कांग्रेस तब तक अपनी छवि को दोबारा नहीं बना सकती जब तक वह धर्मनिरपेक्षता को उसके सच्चे अर्थों में नहीं अपनाए। इस साल पार्टी ने 2 वर्षों के बाद इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था और इसे इसी तरह सभी त्योहारों को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के लिए तैयारी करनी चाहिए। चाहे वह जन्माष्टमी हो या होली, दिवाली ,रामनवमी, गुरु पर्व या क्रिसमस जितने भी बड़े त्यौहार हैं सब को इसी स्तर पर मनाना चाहिए। अब समय आ गया है कि कांग्रेस यह प्रमाणित करे कि उसके लिए सभी धर्म समान हैं। इसी उद्देश्य से कांग्रेस ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात की लेकिन इस मुलाकात का एक गलत परिणाम यह हुआ कि चारों तरफ प्रचारित हो गया कि "कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है।" यद्यपि कांग्रेस ने इससे इंकार किया लेकिन जो  बिगड़ना था वह बिगड़ गया। इसके बदले कांग्रेस को अल्पसंख्यक सम्मलेन बुलाना चाहिए था और इसके अंतर्गत सभी अल्पसंख्यक समुदायों जैसे  बौद्ध,  पारसी जैन  , सिक्ख और इसाई समुदाय के बुद्धिजीवियों को आमंत्रित करना चाहिए था। इसका देशभर में एक सशक्त संकेत प्रसारित होता । लेकिन  , कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकी। कांग्रेस को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे हिंदू विरोधी बातें जाने अनजाने में फैले। आज कांग्रेस "हिंदू आतंकवाद"  , "भगवा आतंकवाद " जैसे जुमलों में उलझी हुई है । यही नहीं चुनाव के चंद महीनों पहले" हिंदू पाकिस्तान "और "हिंदू तालिबान " जैसे जुमले देश के बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की भावनाओं को आघात पहुंचा गए। यहां कुछ साल पहले  सोनिया गांधी की एक बात याद आती है। उन्होंने कहा था कि " भारत केवल इसलिए धर्मनिरपेक्ष है कि वह दर्शन और जीवन शैली में हिंदूवादी है।भारत की जीवन शैली " एकं सत्यम विप्रा बहुधा वदंति "के दर्शन पर टिकी हुई है। कांग्रेस को इस बात का ध्यान रखना होगा । क्या विडंबना है कि 132 वर्ष पुरानी पार्टी , जिसने देश के लिए संघर्ष किया उसे भाजपा ने राष्ट्रविरोधी बना दिया। इससे ज्यादा दुखद और क्या हो सकता है कि कांग्रेस इस U मशहूर अनुभूति को खत्म नहीं कर सकी।
      कितनी बड़ी विडंबना है कि कांग्रेस जिसने देश के विकास की दिशा तय की वह आज घोटाला लांछित और स्वार्थी पार्टी के नाम में बदनाम हो गई है । पिछले कई वर्षों से कांग्रेस के बारे में एक नकारात्मक अनुभूति लोगों में व्याप्त हो गई है और वह जनता में भरोसा पैदा नहीं कर पा रही है । हालांकि मोदी का तिलिस्म धीरे धीरे टूट रहा है फिर भी लोग कांग्रेस को विकल्प के रूप में अपनाने के लिए तैयार नहीं है । स्मरण रहे कि एक बार किसी की नकारात्मक छवि बन गई उसे ठीक करना बड़ा कठिन होता है। देश चुनाव की प्रतीक्षा में है अब देखना है कि अनुभूति की जंग कांग्रेस कैसे लड़ती है । यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है जिसके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।

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