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Wednesday, August 29, 2018

बेहतर है सच स्वीकार करें राहुल

बेहतर है सच स्वीकार करें राहुल
लंदन में राहुल गांधी ने 1984 के सिख विरोधी दंगे के बारे में जो कुछ कहा वह  कांग्रेस द्वारा सच पर पर्दा डालने की कोशिश थी । राहुल गांधी को यह उम्मीद नहीं थी इस बयान के बाद इतने सवाल खड़े हो जाएंगे इतनी तीखी प्रतिक्रिया आएगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण  है कि सिख विरोधी दंगा जो दिल्ली, कानपुर और कई अन्य जगहों पर हुआ वह भारतीय समाज पर हुए अतीत में आघातों से थोड़ा हल्का था। हमारे समाज ने इसके पहले भी  अपने ऊपर कई और बड़े प्रहार झेले हैं। जरनैल सिंह भिंडरावाला द्वारा पंजाब में किया गया खून खराबा इसका उदाहरण  है। इन घटनाओं को लोग  भूल गए। इसमें जितना खून बहा था और जितनी बर्बादी हुई थी उससे कम खून सिख विरोधी दंगे में बहा ।1975 में गुरु तेग बहादुर की शहादत मनाने के लिए बहुत बड़ा जलसा हुआ। उसमें इंदिरा गांधी भी शामिल हुई थीं और दमदमी टकसाल के तत्कालीन नेता भी । इसके बाद ही जरनैल सिंह भिंडरांवाले और खालिस्तान आंदोलन प्रकाश में आया। कांग्रेस ने 1978 के शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव में भिंडरावाला के उम्मीदवारों का समर्थन किया। भारत के पूर्व राष्ट्रपति और उस काल में कांग्रेस के नेता ज्ञानी जैल सिंह ने  दल खालसा नाम के उस  अलगाववादी संगठन की आरंभिक बैठकों को धन भी   दिया था। अप्रैल 1980 में निरंकारी नेता बाबा गुरबचन सिंह को दिल्ली में गोली मार दी गई थी।
      इस सिलसिले में पहली झड़प अमृत धारियों और निरंकारियों के बीच 1978 में हुई थी जिसमें हिंदू और सिख दोनों मारे गए थे। कुलदीप नैयर ने अपनी जीवनी में लिखा है कि संजय गांधी और जैल सिंह ने भिंडरावाला को बढ़ावा देने की नीति अपनाई थी ताकि अकालियों पर लगाम लगाई जा सके।  इसके बाद पंजाब में भयानक खून खराबा आरंभ हो गया । कुलदीप नैयर के अनुमान के अनुसार 1970 के बाद पंजाब में 1993 के मध्य तक लगभग 20 हजार लोग मारे गए । पंजाब में निर्णायक युद्ध "ऑपरेशन ब्लू स्टार" के माध्यम से लड़ा गया। बताया जाता है कि ज्ञानी जैल सिंह ने कथित रूप से इस ऑपरेशन की सूचना जरनैल सिंह भिंडरावाला को दे दी थी। इसके बाद भी ऑपरेशन हुआ और भारी संख्या में लोग मारे गए । स्वर्ण मंदिर के भीतर से  भिंडरावाला सहित 42 लोगों के शव मिले। लाइब्रेरी जल गई थी। भारतीय सेना के 321 जवान शहीद हो गए थे। 6 महीने के बाद इंदिरा जी को उनके दो सिख अंग रक्षकों ने गोली मार दी। इसके बाद दंगा शुरू हो गया। बताया जाता है की कांग्रेस कार्यालय में नारे लग रहे थे "खून का बदला खून" से लेंगे। हालांकि, बाद में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नारे लगाने वालों की निंदा  की । कई क्षेत्रों में निर्दोष सिख  मारे गए और उन्हें लूट लिया गया। कई लोग बताते हैं इस दंगे को भड़काया था कांग्रेस नेता एच के एल भगत ने । लेकिन कभी उससे पूछताछ नहीं हुई, क्योंकि वे कथित रूप से मानसिक व्याधि से पीड़ित थे। जब दंगा भड़का था तो पुलिस अधिकारी , फायर ब्रिगेड के लोग और अन्य सरकारी कर्मचारी  तथा कांग्रेस के कार्यकर्ता किनारे हो गए थे । निर्दोष सिखों को काटा जा रहा था। सिख विरोधी दंगा कहे जाने से पंजाब में मारे गए 20 हजार लोगों का प्रश्न गुम हो जाता है। इस दौरान कई सिख नेता खालिस्तानियों के हाथों मारे गए । इनमें संत हरचंद सिंह लोंगोवाल ,सीपीआई के विधायक अर्जुन सिंह मस्ताना ,जाट सिख नेता दर्शन सिंह कनाडियन  इत्यादि  शामिल थे । कभी इस हकीकत की जांच नहीं हुई। मामला अदालत में गया ही नहीं । कांग्रेस को अतीत पर पर्दा डालने से बेहतर है कि वह सच्चाई को स्वीकार करते हुए खेद जाहिर करे।

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