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Friday, August 3, 2018

बिना पते - ठिकाने के 40 लाख लोग

बिना पते - ठिकाने के 40 लाख लोग
राजनीतिक  रूप में भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।पर इस देश में चालीस लाख  लोग ऐसे हैं जिन्हें कहीं की  नागरिकता नहीं है। यह स्थिति महाभारत काल के  राजा उशिनारा की याद दिलाती है , जो हमें बताती है कि शरणागत की रक्षा कैसे की जाय। कथा में शरणागत एक निरीह पक्षी की बाज़ से रक्षा के लिए राजा ने अंगदान कर दिया था।  1971में बांग्लादेश युद्ध के दौरान वहां से पलायन कर रहे लोगों का हमने  स्वागत किया था। इसमें  हिन्दू और  मुसलमान दोनों थे । हमारे लिए वे  सब मनुष्य थे और भारत में शरणागत थे। आज सफाई अभियान आरंभ हुआ है। इसका उद्देश्य है  कि असम में केवल भारतीय रह सकते हैं। आज वहां आज वहां 40 लाख लोग ऐसे हैं जिनका तकनीकी तौर पर हमारे देश में कोई वैध स्तर नहीं है।  30 जुलाई को नागरिकता रजिस्टर (एन आर सी) का अंतिम ड्राफ्ट जारी हुआ। इसमें असम में 3 करोड़ 29 लाख 91 हजार 385 आवेदकों में से 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को असम में रहने के काबिल पाया गया और उनके नाम एनआरसी में दर्ज किए गए बाकी 40 लाख सात हजार 708 लोगों के नाम अंतिम मसौदे से बाहर कर दिए गए। हालांकि सरकार ने असम में अवैध निवासियों की पहचान की प्रक्रिया पर बहुत तेजी से अमल किया लेकिन इस  प्रक्रिया के कारण भारी आतंक व्याप्त गया । इस कदम ने पूरे राज्य को और यहां के निवासियों को दहला दिया है।
      बेशक ऐसे लोग हैं जो पिछले कुछ दशकों  में बांग्लादेश से अवैध तरीके से घुस आये हैं। असम में बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है जो कामकाज के लिए इधर से उधर जाकर बस गए हैं या फिर बाढ़ से बचने के लिए एक जगह से दूसरी जगह चले गए हैं । उनके लिए अपनी नागरिकता के दस्तावेज पेश करना बड़ा कठिन हो गया है और इसके कारण यह भी कठिन हो गया है कि वह खुद को सही भारतीय नागरिक प्रमाणित कर सकें। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है सीमा मनुष्यों की बनाई हुई है साथ ही नागरिकता भी। सब लोग इस धरती पर जन्म लेते हैं और आजीविका के लिए या प्राण रक्षा के लिए वे एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं या एक देश से दूसरे देश में जाते हैं ,पहाड़ों को लांघकर नदियों को पार करके।
      कोलकाता दिल्ली और मुंबई के स्लम्स सरकार ने नहीं बनाया। बाहर से लोग इन शहरों में कामकाज के लिए आए और बस गए। शहरों में एक बहुत बड़ी आबादी है जिनका कोई पता ठिकाना नहीं है। ये लोग शहरों में सभी तरह के काम करते हैं और हमारा जीवन आसान बनाते हैं ।लेकिन उन्हें बदले में क्या मिलता है बदबूदार संकरी गलियां और झोपड़े ,जिसमें सफाई, रोशनी और पानी का कोई बंदोबस्त नहीं। यही नहीं किसी विकास के नाम पर इस आबादी को उन झोपड़ों से बाहर फेंक दिया जाता है।
      यहां प्रश्न है कि संबद्ध विभाग को इसके लिए क्यों नहीं जिम्मेदार बनाया जाए? क्योंकि पहली बात कि ऐसे झोपड़े बनते ही क्यों है? ऐसी झोपड़ियों को बनने क्यों दिया जाता है ? जब भी कुछ लोग आते हैं किसी  देश से आते हों या  किसी व्यापार के लिए आएं या  काम काज के लिये शहर शहर आएं  तो क्यों नहीं उन्हें रोका जाता ? उस समय तो संबद्ध अधिकारी आंखें बंद किए रहते हैं। बाद में राष्ट्र सेवा के नाम पर इन्हें अवैध घोषित कर दिया जाता है । सीमा को महफूज रखना अच्छी बात है । घुसपैठ रोकना जरूरी है। इसके लिए एक पूरा सिस्टम है और अगर यह सिस्टम नाकामयाब होता है तो दोषी कौन होगा ? यह जरूरी है कि घुसपैठियों को रोका जाए ।लेकिन तब क्या होगा जब हम अपने ही लोगों को अपने ही देश में अवैध करार देने लगेंगे? कई मामले ऐसे होते हैं - जैसे शादी- विवाह, विस्थापन ,काम के चलते एक जगह से दूसरी जगह जाकर बसना पड़ता है और अशिक्षा के कारण या जानकारी नहीं होने के कारण  कि कौन से कागजात जरूरी हैं या फिर जाति ,धर्म या भाषा के आधार पर किसी को कागजात नहीं देना ऐसे कई कारण हैं जो अपने देश के नागरिकों के समक्ष कई बार आते हैं ,तो क्या उन्हें अपने देश में ही अवैध घोषित कर दिया जाएगा और उनकी नागरिकता समाप्त कर दी जाएगी? किसी सरकार को किसी भी नागरिक की नागरिकता समाप्त करने नहीं दी जानी चाहिए ।
      विस्थापित आबादी या प्रवासी लोग सब जगह हैं। इनमें विश्व कप जीतने वाली फ्रांस की टीम के लोग भी हैं तो फिर श्रीलंका के तमिल भी।  प्रवास एक हकीकत है। हमें चाहिए उनसे इंसानियत और सम्मान का बर्ताव करें । वह भी मनुष्य हैं। सभी प्रवासी अपराधी नहीं होते और नाही सभी नागरिक नियम कानून और संविधान के प्रावधानों को मानकर कदम बढ़ाते हैं । एनआरसी ने सीमावर्ती राज्य में भय पैदा कर दिया है । ऐसे में गृह युद्ध को हवा देने से बेहतर होगा कि इस समस्या के समाधान के लिए हम कोई सम्मानजनक और जिम्मेदार तरीका तलाश करें । जी हां सरहदों को महफूज रखें। घुसपैठिए और प्रवासी हवा से नहीं पैदा लेते। हमें यह समझना होगा कि इस तरह के घुसपैठियों को रोकने के लिए कौन जिम्मेदार हैं और उन्हें क्यों नहीं इसके लिए जवाबदेह बनाया जाता है?

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