मोदी जी अपराजेय प्रतीत होते हैं पर ......
इस समय राजनीतिक पंडितों में चर्चा है कि 2019 के चुनाव में मोदी को भारी कठिनाई आएगी । इस निष्कर्ष का आधार कुछ राजनीतिक नेताओं का व्यक्तिगत विश्लेषण है और कुछ कल्पना । जो विश्लेषक ऐसा सोचते हैं शायद वह गलती कर रहे हैं क्योंकि राजनीतिक नेताओं के विचार का आधार मोदी से नफरत या मोदी को नापसंद किया जाना है। इस नापसंदगी का कारण है मोदी जी किसी भी राजनीतिज्ञ से सत्ता का बंटवारा नहीं करते। लेकिन मतदाता अभी भी मोदी के लेकर सम्मोहन की स्थिति में हैं। क्योंकि, मोदी अभी भी उन्हें उम्मीद दिलाये हुए हैं । अपने भीतर परिवर्तन की ऊर्जा का प्रदर्शन कर हैं । कांग्रेस का अनुमान है कि अगर उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में महागठबंधन बना दिया जाए तो मोदी को पराजित किया जा सकता है। उधर, मायावती - अखिलेश गठबंधन को भी खेल का रुख बदलने वाला समझा जा रहा है। उम्मीद की जा रही है 2019 में यह मोदी को यूपी में भारी आघात पहुंचाएगा । भाजपा के कई सांसद निजी बातचीत में यह कहते सुने जा रहे हैं कि सरकार संकट में है। अब स्थानीय स्तर पर गणित बेशक ऐसा काम करे लेकिन समग्र रूप से मोदी की केमिस्ट्री अभी भी पूर्ववत है।
इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस समारोह को संबोधित करते हुए मोदी जी ने वस्तुतः सफलता का मूल सूत्र बयान किया । उन्होंने अपने लाजवाब भाषण में यह दिखाया कि वह अभी भी व्यवस्था विरोधी राजनीतिक क्रांतिकारी हैं और व्यवस्था में सुधार के लिए बेचैन हैं। मोदी जी खुद को ऐसा प्रदर्शित कर रहे हैं जैसे वह बदलाव लाकर ही रहेंगे । वस्तुतः यही उनकी ताकत है । 2014 और 2019 में फर्क यही है कि उस वक्त वह चुनौती देते हुए से लग रहे थे और इस समय हुए व्यवस्था में है । जब वे अपनी स्टाइल में लाल किले से यह बता रहे थे कि वह परिवर्तन के लिए बेचैन हैं तो अच्छे दिन के वायदे से जिन मतदाताओं का मोह भंग हो गया था उन्हें एक तरह से विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे थे। जब उन्होंने कामदार ( दिहाड़ी मजदूर) बनाम नामदार (खानदान) की तुलना कर रहे थे तो वस्तुतः वह जनता के समक्ष 2013 और उसके पहले की सरकारों के कामकाज से अपनी तुलना कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे एक निर्णायक नेता हैं। जब उन्होंने स्वास्थ्य से लेकर विद्युतीकरण तक अपनी सरकार की की सफलताओं बताना शुरू किया एक समा बांध दिया । वे आशाओं का एक नया तूफान खड़ा करना चाहते हैं और मत दाताओं को नए सपने दिखाना चाहते हैं । इस दुनिया में इस बात पर बहस के लिए कोई जगह नहीं है कि लक्ष्य पूरे हुए या नहीं या बजट मे जो प्रावधान थे वह सही थे या नहीं। मोदी जी की बातों में नकारात्मकता कहीं नहीं थी । यही कारण था कि उन्होंने अपने भाषण में नफरत जनित अपराध या पीट-पीटकर मार डालने की घटनाओं का जिक्र नहीं किया। जब उन्होंने यह कहा कि वह व्यवस्था को दलालों से मुक्त करना चाहते हैं तो जोरदार तालियां बजी। वह यह दिखाना चाहते थे कि वे अपने ही पार्टी के नेताओं पर आघात करना चाहते हैं । क्योंकि, चर्चा है कि अब भाजपाई नेता भी धनिकों से मेलजोल बढ़ा रहे हैं और भ्रष्टाचार की ओर कदम बढ़ा रहे हैं । यह बड़े कौशल से तैयार की गई एक ऐसे प्रधानमंत्री की छवि है जो ईमानदार और कर्म योगी की तरह दिखता है। यह पिछले 4 वर्षों में कांग्रेस द्वारा मोदी जी के भ्रष्टाचार और सूट बूट की सरकार जैसे जुमलों के दुष्प्रचार को नकार रहा है।
यही कारण है कि जितने ओपिनियन पोल आ रहे हैं सब में मोदी जी की अपील सबसे ज्यादा है। क्योंकि ,वह अपने शत्रुओं से वाकिफ हैं । जरा स्वतंत्रता दिवस पर भाषण पर गौर करें। उन्होंने कितनी बार "किसान "और "गरीब " शब्द का उल्लेख किया। यह एक तरह से कृषि आपदा से उपजे गुस्से को खत्म करने की कोशिश थी। इसका एक कारण मीडिया भी थी ,खासकर टेलीविजन, जिसने ऐसा मौका ही नहीं दिया कि कोई मोदी जी जादू को खत्म करने की कोशिश कर सके। यह विपक्ष की स्थिति को भी दिखाता है। क्योंकि भ्रष्टाचार की कालिख से कोई मुक्त नहीं है। कांग्रेस भी कभी खास लोगों को मुनाफा दिलाने के लिए बदनाम रही है । यही कारण है कि 2019 के चुनाव को मोदी बनाम राहुल की तरह प्रचारित किया जा रहा है और इसमें मोदी की स्थिति मजबूत दिख रही है। हालांकि, यह बहुत स्पष्ट नहीं है । लेकिन सोचिए क्या कारण है कि मोदी जी की आलोचना राष्ट्रविरोधी मानी जा रही है। इसलिए यह आसान नहीं है कि विपक्ष उन्हें कठोर चुनौती दे सके ।
लेकिन सबके बावजूद हमारे सामने 2004 के आम चुनाव का उदाहरण है जब अटल बिहारी बाजपेई "शाइनिंग इंडिया " का नारा लेकर आए थे और उन्हें पराजित करना मुश्किल लग रहा था। लेकिन, वह हार गए। परिस्थितियों के बावजूद आने वाले समय में क्या बदलाव आएगा यह कह पाना कठिन है। खासकर अगर क्षेत्रीय दलों का महागठबंधन बना तो मोदी जी के लिए भारी कठिनाई आ सकती है और उन्होंने जो जादू किया है वह तिलिस्म भी टूट सकता है । मोदी जी पराजित भी हो सकते हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हैं।
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