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Friday, August 24, 2018

नया पाकिस्तान पुरानी चाल

नया पाकिस्तान पुरानी चाल
पाकिस्तान में इमरान खान की नई सरकार ने एक नारा दिया है "नया पाकिस्तान।" वह सब कुछ फिर से शुरू करना चाहते हैं। एक नई शुरुआत। कुछ दूर तक तो इसपर विश्वास करने की इच्छा होती है लेकिन जब से वे प्रधानमंत्री बने यानी 18 अगस्त से अब तक उनकी सरकार की ओर से जो संदेश आ रहे हैं उन पर पुराने पाकिस्तान या पाकिस्तानी व्यवस्था के निशान मौजूद हैं। प्रधान मंत्री इमरान खान ने राष्ट्र को अपने संदेश में अपना भाषण घरेलू मसालों तक ही सीमित रखा। उन्होंने भारत-पाकिस्तान या कश्मीर का जिक्र नहीं किया। जबकि उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने आश्वस्त किया कि भारत-पाकिस्तान नीति के महत्वपूर्ण पहलू गलत नहीं है। कुरैशी कुछ इस तरह बात कर रहे थे मानो वह पहले दिन के भाषण के लिए तैयार ही नहीं थे।  एक देश के विदेश मंत्री ने अपना पहला भाषण दिया और उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के खत का जिक्र तब किया जब विदेश सचिव तहमीना जंजुआ ने पुर्जा बढ़ाया। क्यों नहीं उन्हें भाषण देने जाने के पहले इस महत्वपूर्ण तथ्य की जानकारी दी गई। इसका कारण यह है कि उन्होंने भाषण दिए जाने के पहले अपने विदेश कार्यालय के अफसरों से इस मसले पर बात ही नहीं की, न जानकारी ली। मजे की बात है कि उनका भाषण पहले से तयशुदा नहीं था। इमरान खान प्रशासन की तरफ से आई पहली अत्यंत संवेदनशील खबर को लापरवाही से भरा पाया गया। कुरैशी कोई लापरवाह नौजवान नहीं थे । उन्हें भारत पाकिस्तान संबंधों को लेकर बहुत सावधानी पूर्वक बातें करनी चाहिए थी।  जब बात बिगड़ गई तो वे लोग भारतीय मीडिया पर आरोप लगा रहे हैं कि वह बेवजह का विवाद  पैदा कर रही है।
      भारत और पाकिस्तान को अपनी चिंताओं और सम्वेदनाओं को समझने से ज्यादा यह समझना  जरूरी है कि कहां तक आगे बढ़ने की उनकी  सीमा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के अन्य नेताओं की तरह उन्हें बधाई संदेश भेजस और सकरात्मक बातचीत के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर की। लेकिन पाकिस्तान ने इसे बातचीत शुरू करने का संकेत समझा। भारत और पाकिस्तान की गाथा हमेशा चालों और दुविधा पूर्ण विचारों में उलझी रहती है। लेकिन इसके लिए पाकिस्तान द्वारा नवजोत सिंह सिद्धू को मोहरा बनाना गलत था। उन्हें अधिकृत पाकिस्तान के राष्ट्रपति सरदार मसूद खान के बगल में बैठा कर कश्मीर मसले की वैधता बताने की कोशिश करना अक्खड़पन कहा जाएगा । संदेशों की कई परतें होती हैं। अगर पाकिस्तान एक लोकतंत्र है तो पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने करतारपुर सीमा को खोलने का संदेश सिद्धू को क्यों दिया ? यह संदेश कोई असैनिक अधिकारी भी दे सकता था।
       स्पष्ट कहा जाए तो सिद्धू और जनरल कमर बाजवा के गले मिलने कि घटना के बहुत अर्थ निकाले गए हैं और  उस पर बहुत राजनीति हो चुकी है । लेकिन ,हकीकत यह है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लाहौर जा चुके हैं वह भी पाकिस्तानी वायुसेना के विमान से रायविंड गए और वहां मोदी नवाज गले मिलन हुआ । जिसकी बहुत चर्चा हुई। तो फिर इस गले मिलन पर इतनी चर्चा क्यों? क्योंकि, मोदी शायद इसे  ना मानें। लेकिन जिस दिन उन्होंने लाहौर जाने का निर्णय किया उसी समय पठानकोट का हमला भी हुआ था। जहां तक  सिद्धू का सवाल है तो वह भले कहें कि वे एक निजी नागरिक की हैसियत से वहां गए थे। पर वे निर्वाचित नेता हैं। उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र को जवाब भी देना पड़ेगा।  हो सकता है वह निर्वाचन क्षेत्र पाकिस्तान के हाथों कभी पीड़ित भी हुआ हो और वहां के लोग सिद्धू से सवाल भी कर सकते हैं। वह एक राजनीतिज्ञ हैं और इसके परिणाम उन्हें स्वीकार करने पड़ेंगे। यह एक जोखिम है जिस के नतीजे मुनाफे और घाटे दोनों रूपों में आ सकते हैं। जब जब बात भारत-पाकिस्तान की आती है तो जो हम उम्मीद करते हो कभी नहीं हुआ, और जिसकी हम  उम्मीद  नहीं करते वह जरूर होता है। जब हम लापरवाह होते हैं तो बहुत बुरा होता है। यह वक्त है जब हम सच्चाई को जानें। इमरान खान ने भारत की निंदा करके यह चुनाव जीता है और मोदी को भी 2019 में चुनाव जीतना है। इस मुकाम पर हम यह सोच सकते हैं कि एक दूसरे की संभावनाओं पर विचार किए बिना आगे कदम बढ़ाना लगभग असंभव है। चुनाव के पहले मोदी सरकार को इस दिशा में बहुत कुछ सोचना होगा और बहुत सी अनहोनी के लिए तैयार रहना पड़ेगा।

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