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Wednesday, August 8, 2018

अब बरखा में  कजरी नहीं गाते लोग

अब बरखा में  कजरी नहीं गाते लोग
कुछ साल पहले या यूं कहें लगभग दो दशक पहले बरखा के दिनों में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई कजरी बजाती थी या भीमसेन जोशी कजरी गाते थे ,झूले लगते थे और तरह-तरह के कार्यक्रम होते थे। क्योंकि बरखा भारतीय कृषि संस्कृति में बीज रोपने या समृद्धि की ओर कदम बढ़ाने का अवसर थी। लेकिन  आज ऐसा नहीं है। आज बरखा या बारिश डर भी पैदा करती है । क्योंकि बरसात इन दिनों खुशियां नहीं बाढ़ लाती है। भारतीय अतीत की जलतत्व संस्कृति अब दुखद हो गई है और भविष्य में पता नहीं और क्या होगा ?  आज बारिश होती है तो डर लगता है कि कहीं बाढ़ ना आ जाए। आज जल प्रलय या बाढ़ से होने वाली हानि सामान्य बात हो गई है। बारिश के दिनों में भारत में हर साल बाढ़ आती है और परिणाम स्वरुप औसतन देश  के भौगोलिक हिस्से का 12% भाग या कहें 80 लाख हेक्टेयर जमीन बाढ़ में डूब जाती है।  इससे लगभग 655 अरब रुपए की हानि होती है। इस दिशा में किए गए कई अध्ययन से पता चलता है कि आने वाले दिनों में बारिश और बढ़ेगी और इससे भारत के भविष्य का क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। नदियों के तल लगातार ऊंचे होते जा रहे हैं और पानी शहरों - गांव में प्रवेश करता जा रहा है । अनुसंधानकर्ताओं का अनुमान है कि 2030 तक देश की 40% आबादी शहरों में रहने लगेगी जबकि 2011 में यह अनुपात 30% था। ऐसे में बड़े शहरों में आने वाली बाढ़ अर्थव्यवस्था तथा शहरी ढांचे के लिए चुनौती होगी एवं इसका असर वहां बसे लोगों पर भी पड़ेगा । शहरी बाढ़ का सबसे अच्छा उदाहरण कोलकाता और मुंबई है । कम अवधि की बरसात  शहर कोलकाता के प्रमुख स्थलों पर पानी जमने का कारण बन जाती है। मुंबई की बाढ़ तो ऐतिहासिक है । 2005 की बाढ़ एक तरह से  चेतावनी थी।  3 दिनों तक पूरा शहर ठप हो गया था, लगभग 30 अरब रुपयों का नुकसान हुआ था और सैकड़ों लोग मारे गए थे। शहर कोलकाता और मुंबई में बाढ़ के कारणों का "द एनर्जी रिसोर्सेज ऑफ इंडिया (टेरी)" ने जल वैज्ञानिक और स्थानिक अध्ययन किया। उसने बाढ़ के कारणों का उत्स शहर के भीतर ही पाया। इसके सुझाव को सरकार को सौंप दिया गया। लेकिन, कुछ नहीं किया जा सका। कोलकाता और मुंबई को छोड़कर देश में कई और शहर हैं जैसे बंगलुरु, चेन्नई , गुवाहाटी ,हैदराबाद,सूरत ,अहमदाबाद, गुड़गांव इत्यादि जो शहरी बाढ़ का शिकार हो रहे हैं । इसका प्रमुख कारण है शहरों का बिना किसी योजना के विकास , नाजायज ढंग से फुटपाथ या जल निकासी प्रणाली  और झीलों- तालाबों पर कब्जा। अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था शहरी जमीन का दुरुपयोग इत्यादि।
      शहरी बाढ़ के खतरे से निपटने के लिए पहले शहर के भीतर स्थानीय स्तर पर बाढ़ के कारणों को ढूंढ कर उन्हें समाप्त करना पड़ेगा और बाढ़ प्रबंधन योजना बनानी होगी। इसके लिए तीन चीजें समझनी आवश्यक है। पहली, नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र और बाढ़ की प्रणाली, मौसम की निगरानी और सामाजिक आर्थिक प्रक्रिया। जरूरी है कि बाढ़ आपदा प्रबंधन कि समझने की तैयारी की जाए जिसमें बाढ़ के फैलने के तौर-तरीकों का आकलन कर उसे रोकने की व्यवस्था की जाए । वर्षों से सब कुछ  चला आ रहा है लेकिन हम बाढ़ के जोखिम विस्तृत अध्ययन नहीं कर पाए। ना ही स्थानीय स्तर पर ना क्षेत्रीय स्तर पर बाढ़ के पूर्वाभास की दिशा में काम किया गया।  मतलब बाढ़ की पूर्व चेतावनी इत्यादि, जैसा उड़ीसा और असम में महानदी तथा ब्रह्मपुत्र की बाढ़ समय होता है। लेकिन, देशभर में ऐसा नहीं हो रहा है। कई राज्यों  में बाढ़ आपदा प्रबंधन अधिकारी वैज्ञानिकों से इस बारे में बातें कर रहे हैं और जानना चाह रहे हैं कि कैसे सुधार किया जाए। जो कुछ भी हो रहा है वह बाढ़ के आतंक को या बाढ़ के प्रभाव को कम करने के लिए बहुत ही मामूली है। वक्त आ गया है कि इस दिशा में विस्तृत और प्रभावशाली काम किया जाए। ताकि बाढ़ प्रबंधन योजनाओं को लागू किया जा सके और हम फिर मानसून या बरखा के मौसम में कजरी गा सकें।

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