भारत अमीर हो रहा है लेकिन भारतीय देश छोड़ रहे हैं
जैसे-जैसे भारत अमीर होता जा रहा है इसके बाशिंदे देश छोड़कर बाहर जा रहे हैं । एक अनुमान के मुताबिक 2017 में लगभग एक करोड़ 70 लाख भारतीय विदेशों में रह रहे थे। राष्ट्र संघ के आर्थिक मामलों के विभाग के मुताबिक 1990 में यह संख्या केवल 70 लाख थी यानी 27 वर्षों में यह संख्या 143% बढ़ गई। इसी अवधि में भारत की प्रति व्यक्ति आय 522% बढ़ी और इससे अधिक से अधिक लोगों के रोजगार के लिए विदेश जाने के अवसर बढ़े। दिलचस्प बात यह है कि इस अवधि में विदेश जाने वाले अकुशल श्रमिकों की संख्या घटी है । एशियन डेवलपमेंट बैंक आंकड़ों के मुताबिक 2017 में तीन लाख 91 हजार लोगों ने रोजगार के लिए देश छोड़ा। इसका यह मतलब नहीं है की भारत छोड़ने वाले इस तादाद को प्रतिभा का पलायन मान लिया जाए । यह मान लिया जाए कि अधिक कुशल लोग अपना देश छोड़कर जा रहे हैं। यह आंकड़े अकुशल मजदूरों के हैं और इनके लिए इमीग्रेशन चेक अनिवार्य (ईसीआर ) ईसीआर पासपोर्ट्स भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा उन लोगों को जारी किए जाते हैं जो रोजगार के उद्देश्य से देश से बाहर मध्य पूर्व या दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में जाते हैं ।सरकार की नीतियों में परिवर्तन के कारण ज्यादा से ज्यादा लोग नन ईसीआर पासपोर्ट पर विदेश जा रहे हैं। इसलिए यह संख्या कम दिखाई पड़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के यूरोपीय संघ भारत सहयोग के तकनीकी अधिकारी के अनुसार एक आंतरिक समायोजन के बाद बहुत लोगों को गैर ईसीआर पासपोर्ट दिया जाने लगJ इससे जो आंकड़े हासिल हुए उसमें यह लगा कि रोजगार की तलाश में विदेश जाने वालों की संख्या घट गई है । ऐसे में यह कहना कठिन है की क्या अति कुशल लोग जा रहे हैं। हां यह बात है की सभी क्षेत्रों में कुशल लोगों की संख्या बढ़ी है और ऐसे में इस तरह के लोगों का जाना प्रतिभा पलायन कहा जा सकता है। पर विदेश जाने का संबंध खुशहाली से होता है। क्योंकि विदेश जाने के लिए अधिक से अधिक लोगों के पास अब संसाधन उपलब्ध हैं ।यह उस समय कम हो जाता है जब कोई देश उच्च मध्यवर्गीय आय वर्ग में शामिल हो जाता है ।स्थानीय रोजगार मे श्रमिकों को शामिल नहीं किए जाने के कारण भी प्रवास बढ़ता है। पूरी दुनिया में लगभग 73% लोग हैं जो अपने अतिथि देश में प्रवेश कर रहे हैं। भारत में काम करने की उम्र हर महीने 13 लाख के अनुपात में बढ़ रही है रेलवे में 90000 नौकरियों के लिए दो करोड़ अस्सी लाख लोगों ने आवेदन किया था ।1990 से 2017 के बीच के तीन दशकों में बड़ी संख्या में भारत से काम करने वाले लोग विदेश गए। मध्य पूर्वी अरब के देश कतर में रहने वाले भारतीयों की संख्या 1990 से 2017 के 27 वर्षों में 2738 से 22 लाख हो गई। 2015 से 17 के बीच के 2 वर्षों में कतर में भारतीयों की संख्या 3 गुनी हो गयी। ओमान में यह संख्या 628% बढ़ गई जबकि संयुक्त अरब अमीरात में यह अनुपात 622% बढ़ा। जबकि इसी अवधि में सऊदी अरब और कुवैत में भारतीय आबादी क्रमशः 110 और 78% बढ़ी। यह आंकड़े बताते हैं कि खाड़ी के देशों में विस्तृत होती अर्थव्यवस्था के प्रति भारतीयों का रुख क्या है । विदेश मंत्रालय की 2016 -17 की रिपोर्ट के अनुसार हाल की वैश्विक मंदी के कारण भारत से इस क्षेत्र में जाने वाले मजदूरों की संख्या कम हो गई है।
इटली गैर अंग्रेजी भाषा देश है ,लेकिन 1990 के बाद से यहां बहुत बड़ी संख्या में भारतीय रहने लगे हैं और यह इसे यूरोप में सबसे बड़ी भारतीय आबादी का देश बना दिया है। इसका मुख्य कारण है इन देशों में विदेशियों के रहने की सुविधाएं बढ़ी हैं। नीदरलैंड ,नॉर्वे और स्वीडन में 2010 से 2017 के बीच 7 वर्षों में 66, 56 और 42% भारतीयों की संख्या बढ़ गई है ।इंग्लैंड में कुछ ऐसे कानून बन गए हैं जिससे इन लोगों को बहुत ज्यादा सुविधा नहीं मिल रही है या इनका रहना कठिन हो गया है। यही नहीं भारत से लोग बाहर ही नहीं जा रहे हैं बल्कि भारत में भी बहुत बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं ।यह लोग एशियाई देशों के निवासी हैं।