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Sunday, November 4, 2018

सरकार और रिजर्व बैंक में आखिर हरदम रस्साकशी क्यों? 

सरकार और रिजर्व बैंक में आखिर हरदम रस्साकशी क्यों? 


सरकार और रिजर्व बैंक में हमेशा कुछ ना कुछ चलता रहता है। वह कुछ कुछ अक्सर संघर्ष का रूप ले लेता है। बीच में यह चर्चा थी कि सरकार अगर हमेशा रिजर्व बैंक को हुक्म देती रही तो हो सकता है गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे देंगे। वैसे  सरकार को रिजर्व बैंक को हुक्म देने का कानूनी हक है लेकिन इस हक को मीडिया ने इतना ज्यादा उछाल दिया है कि लगता है कि यह संविधान की वही धारा है जिसके तहत केंद्र सरकार देश में आपात स्थिति लगा सकती है। लेकिन फिलहाल सरकार और आार बी आाई में वह रस्साकशी टल गयी जिसके तहत उर्जित पटेल के इस्तीफे का इम्कान लगाया जा रहा था। पटेल का कार्यकाल एकसाल से भी कम बचा है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों  हर गवर्नर के कार्यकाल में रिजर्व बैंक से मामला फंस ही जाता है। ऐसा लगता है मौद्रिक नीति तय करने की आजादी को गवर्नर अपनी खुद की आजादी मान लेते हैं और जैसे ही सरकार कोई देती है तो उन्हें नागवार लगने लगता है और वे समझते हैं कि सरकार उनकी आजादी में दखल दे रही है। 1920 के बाद 24 साल तक बैंक ऑफ इंगलैंड के गवर्नर रह चुके मॉन्टेग्यू नार्मन ने कहा था कि सरकार और बैंक में मियां - बीबी की तरलह रिश्ता होना चाहिये। बैंक सरकार सलाह तो दे सकता है पर इस बात के लिये सरकार पर यह कभी दबाव नहीं दे सकता कि उस सलाह को मान ही लिया जाय। रिजर्व बैंक की स्थापना के बाद उसके गवर्नर बने थे सर ए स्मिथ। वे पहले इंम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया के चेयर मैन हुआ करते थे और दिल्ली की गद्दी को अक्सर ठेंगे पर रखते थे। यही बैंक आजादी के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बना।स्मिथ जब आर बी आई के गवर्नर थे तो उस समय जॉन ग्रिग वायसराय के कौंसिल में फाइनेंस के सदस्य थे। यह पद ठीक वश ही है जैसा इन दिनों वित्त मंत्री का होता है। मुद्रा की दर यानी एक्सचेंज की रेट और टैरिफ की दर को लकर दोनों में सदा टकराव चला करता था। करेंसी की वैल्यू को लकर दोनों कभी सहमत नहीं हुये। स्मिथ ने इन मुद्दों कभी ग्रिग की सलाह नहीं मानी, क्योंकि उन्हें लगता था कि ऐसा करने से महंगाई दर और बढ़ेगी , इसलिये वे बैंक की दर भी कम ही चाहते थे। उधर इन दोनों का राजनीतिक असर गंभीर था और इसलिये सरकार ने उसे कभी नहीं माना। इससे दोनों के बीच जोर आजमाइश बढ़ी। उधर , स्मिथ अपने अक्खड़पने के चलते कई ऐसी बातें कह जाते थे जो उन्हें नहीं कहनी चाहिये थी। स्मिथ का मानना था कि सरकार को यह मुगालता था कि " बैंक  सरकार  में कोई विभाग नहीं वल्कि खुदमुख्तार संस्था है और वे कभी सरकार का फरमान नहीं मानेंगे। कइग्ॡ् और मामले थे जिसपर सरकार और रिजर्व बैंक में तानातानी थी। एक बार का वाकया है कि ग्रिग भारत से सोना इंगलैंड भेजना चाहते थे और स्मिथ ने उसका विरोध किया। इसपर दोनों में पंजा लड़ाने जैसी िस्थति आ गयी थी। इसी बीच, स्मिथ ए डी श्रॉफ को डिप्टी गवर्नर नियुक्त करना चाहते थे तो ग्रिग ने उसका विरोध किया। ब्रिटिश नौकरशाही स्मिथ से इसलिये नाराज थे कि वह भारतीय व्यवसायियों में लोकप्रिय थे जो सरकार को सुहाता नहीं था। जब स्मिथ ने अपने पद से इस्तीफा दिया तो इंेडियन चेंबर ऑफ कामर्स ने उसका लिखित विरोध किया था। कांग्रेस ने मामले का ससच जनता को बताने की मांग की लेकिन सरकार ने चुप्पी साधे रखी। उस समय से आज तक सरकार और बैंक के बीच रिश्ता वही है।        

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