CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, February 13, 2019

आना प्रियंका गांधी का

आना प्रियंका गांधी का

सोमवार को लखनऊ में प्रियंका गांधी का पहला रोड हुआ। एक तरह से यह उनकी औपचारिक राजनीतिक शुरुआत थी।औपचारिक इसलिए कि उत्तर प्रदेश का, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपे जाने के बाद वह पहली जनसभा थी। उसी दिन सवेरे उन्होंने टि्वटर भी ज्वाइन किया और शाम को उनके समर्थकों की गिनती लाख पहुंच गई । जबकि उन्होंने कुछ भी ट्वीट नहीं किया। सड़क पर और साइबरस्पेस में उनका आना लगभग एक साथ हुआ। सड़क पर जो प्रदर्शन हुए उसके आयोजकों और सोशल मीडिया में उनके प्रबंधकों में लगता बहुत अच्छी तालमेल है। खबरों को अगर मानें तो लखनऊ में दृश्य बड़ा ही खुशनुमा था ।  हवाई अड्डे से लेकर शहर तक लोगों की कतार लगी थी। इसके पहले विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी या अखिलेश यादव के रोड शो की इससे  तुलना करना उचित नहीं होगा। दोनों के समय और संदर्भ में फर्क है। प्रश्न पूछा जा सकता है कि क्या 2014 में यह ज्यादा था जब मोदी की लहर चल रही थी या 2017 में प्रियंका गांधी ने बेशक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रचार का नेतृत्व किया था तब इन अभियानों में जो हुजूम या जितने लोग एकत्र हुए थे उनकी संख्या से ज्यादा थी। इन सब की तुलना व्यर्थ है।  भीड़ हमेशा वोट में नहीं बदलती और जब तक वोट के परिणाम ना आ जाएं कोई भी तुलना उचित नहीं होगी । यह सही है कि डूबती हुई कांग्रेस में प्रियंका गांधी के प्रवेश ने नया जोश भर दिया। कांग्रेस समर्थक मीडिया में भारी उल्लास और उन्माद देखा गया। इनमें से कुछ लोग गुलाबी लिबास में "प्रियंका सेना" के सदस्यों से ज्यादा उत्साह में दिख रहे थे । यहां सवाल है कि इस तरह की उत्साह पूर्ण खबरें प्रियंका गांधी को या कांग्रेस को कितनी मदद कर सकती हैं । खास करके अभी जो स्थिति है उसमें इसका विश्लेषण दिलचस्प होगा।
       हालांकि राहुल गांधी मोदी जी के खिलाफ राफेल के गोले दाग रहे हैं । प्रियंका गांधी को फिलहाल इस मामले में  आरक्षित कुमुक की तरह रखा गया है।  उनका इस्तेमाल परमाणु बटन दबाने जैसा हो सकता है । यह तभी होगा जब परिवार की प्रधान सेनापति सोनिया गांधी आशीर्वाद का हाथ उठाएं। परंतु ऐसी स्थिति में सिर्फ पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित होना मुश्किल हो जाएगा। इसका असर अन्य क्षेत्रों के राजनीतिक मैदान पर भी पड़ेगा।   प्रियंका गांधी को उतारना एक तरह से किसी भी गठबंधन में कांग्रेस का प्रथम स्थान के दावे का संकेत है। यह कांग्रेस का स्पष्ट संकेत है कि हमारी अपील सभी विपक्षी दलों के मुकाबले सबसे ज्यादा है और इसका अर्थ है कि मोदी के खिलाफ कोई भी वोट कांग्रेस के पक्ष में होगा ।  विपक्षी दलों की तरफ से इसका क्या उत्तर मिलेगा या अभी कहना मुश्किल है। अभी जो हालात हैं उससे कांग्रेस को अपनी स्थिति और ताकत  बताने के लिए या अपनी स्थिति का दावा करने के लिए एकमात्र तरीका है कि लोकसभा चुनाव में उसे कितने वोट मिलेंगे या कितनी सीटें मिलेंगी।  उत्तर प्रदेश में खास करके उसे अपनी सीटें बढ़ानी होंगी। यह सब सपा और बसपा की कीमत पर होगा। कुछ लोग कह सकते हैं प्रियंका गांधी भाजपा के सवर्णों के वोट काट सकती हैं । सपा और बसपा के वोटो का कुछ नहीं बिगड़ेगा। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है कि कोई जादुई ताकत ही प्रियंका गांधी को मायावती और अखिलेश पर भारी पड़ने देगी। चुनाव तो आते जाते रहते हैं लेकिन क्षेत्रीय नेताओं की रोजी-रोटी तो उनका राज्य ही है और वह अपनी थाली प्रियंका के आगे नहीं परोस देंगे। कांग्रेस एक और विकल्प अपना रही है वह है प्रियंका का अन्य राज्यों में भी उपयोग किया जाए।  इससे उत्तर प्रदेश पर जो उनका फोकस है वह कम हो जाएगा और फिर उनका प्रभाव भी घट जाएगा । क्योंकि वह चुनाव के पहले बहुत कम उत्तर प्रदेश में दिखाई पड़ेगी। दूसरी तरफ चंद्रबाबू नायडू और स्टालिन उनको शायद प्रभावशाली  नहीं होने देंगे यही हाल बंगाल में भी हो सकता है। इसमें सबसे बड़ा जोखिम  है कि इस दौड़ में कहीं राहुल गांधी न पिछड़ जाएं। लखनऊ की भीड़ देखकर संभवत प्रियंका गांधी वाराणसी भी जा सकती हैं। हो सकता है फिलहाल वे लहर का अंदाजा लगा रही हों क्योंकि उत्तर प्रदेश में जो संगठन है उसे देखते हुए या मोदी जैसे लोकप्रिय नेता के खिलाफ जनसमर्थन जुटाने के लिए पहले  तैयारी  जरूरी होती है। इसमें कोई शक नहीं है कि बनारस का रोड शो लखनऊ के मुकाबले ज्यादा कठिन होगा और बड़ा भी होना चाहिए। यद्यपि राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बनारस में मोदी जी की लोकप्रियता थोड़ी घटी है, लेकिन 2014 और 17 दोनों के परिणाम बताते हैं कि ऐसा बहुत ज्यादा नहीं हुआ है अथवा यह कह सकते हैं कि हुआ ही नहीं है। ऐसे में अगर प्रियंका गांधी के मैंनेजरों की टीम कांग्रेस को स्थापित करना चाहती है तो कुछ करिश्मा जरूरी है। यह विश्लेषण और अंकगणित से नहीं हो सकता। देखना यह है कि आने वाले दिनों में उनका प्रचार क्या रंग लाता है। अगर वह अपनी दादी इंदिरा गांधी की भांति सारे डायनामिक्स को नियंत्रित करना जानती हैं या कर सकेंगी तो कुछ चमत्कार हो सकता है। ऐसा करने के लिए पार्टी के भीतर और पार्टी के बाहर दोनों जगह  संतुलन बनाए रखने की जरूरत है। 2019 का चुनाव प्रियंका गांधी के जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण होगा। लोग प्रियंका को देखकर संभवतः इंदिरा जी को याद कर सकते हैं।  जहां तक हकीकत का प्रश्न है प्रियंका से ज्यादा सोनिया जी ने इंदिरा जी से सीखा है कि कैसे राजनीति में वापस आया जा सकता है। मौजूदा समय कुछ गूढ़  संकेत दे रहा है । मोदी जी को कांग्रेस मुक्त भारत का   अपना विचार अभी थोड़े दिन के लिए स्थगित करना पड़ेगा।

0 comments: