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Thursday, February 7, 2019

बाल अपराध को रोकना जरूरी 

बाल अपराध को रोकना जरूरी 

केंद्र एक बार फिर अपराध का केंद्र बन गया। दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष 11 खून और 22 बलात्कार सहित 92 घृणित अपराध हुए । 2011 से अब तक दिल्ली में 15,536 बलात्कार की घटनाएं हुईं। 2015 से लगातार इन घटनाओं में वृद्धि हो रही है। यहां तक कि निर्भया कांड के बाद भी दिल्ली में 2018 तक 12,258 बलात्कार की घटनाएं हुईं। हालांकि अपराधिक घटनाओं की लगातार गणना के बाद यह पता चलता है कि 2018 में 2017 के मुकाबले कम बलात्कार हुए हैं या कहें महिलाओं के प्रति कम अपराध हुए हैं। राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो (एन सी ई आर बी) के आंकड़े बताते हैं के देश के 19 महानगरों में दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक शहर है। 20 लाख से ज्यादा आबादी वाले नगरों में आलोच्य अवधि में महिलाओं के प्रति कुल 4,935 अपराध हुए। जिनमें सबसे ज्यादा 1996 बलात्कार की घटनाएं दिल्ली में हुईं। 712 बलात्कार की घटनाएं मुंबई में  और पुणे में 354 घटनाएं हुईं। 
     इसके कई कारण हैं। जिनमें बाहर से आकर बसने वालों की बढ़ती संख्या ,पड़ोसी राज्यों से अपराधियों की उन तक पहुंच इत्यादि कुछ कारण है जिन से अपराध बढ़ रहे हैं। लेकिन एक ऐसा अपराध भी  भी है जिस पर सोचा जाना जरूरी है। वह है बाल अपराध में वृद्धि खासकर बलात्कार जैसे अपराधों में किशोरों का जुड़ा होना। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 19 महानगरों में 6,645 ऐसे अपराध हुए जिसमें किशोर शामिल हैं। इन अपराधों में दिल्ली सर्वोच्च है,जहां 2016 में 2,368 बलात्कार की घटनाएं हुयीं। 2014 में सूरत में सबसे ज्यादा यह घटनाएं हुई लेकिन बाद में इसमें बहुत तेजी से कमी आई लेकिन दिल्ली में 2014 से 16 के बीच घटनाएं बढ़ती रहीं। दिल्ली में 2016 में 2,368 मामलों में 3,610 किशोरों को गिरफ्तार किया गया । 19 महानगरों में बलात्कार की 281 घटनाएं हुई जिनमें 324 किशोरों को गिरफ्तार किया गया। यह संख्या अन्य बड़े अपराधों की तुलना में ज्यादा है। इनमें 2% अपराधी 16 से 18 वर्ष की उम्र के हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में जिन किशोरों गिरफ्तार किया गया उनमें 41% बच्चे प्राइमरी तक शिक्षा पाए थे और अपने मां बाप के साथ रहते थे।
       हमारे  समाज में पुरानी विचारधारा है कि जो लोग या कहे जो बच्चे मां बाप के साथ नहीं रहते हैं और गरीब  पृष्ठभूमि के हैं वे आपराधिक घटनाओं से जल्दी जुड़ जाते हैं। लेकिन जो आंकड़े बताते हैं वह बहुत कटु सत्य की ओर इशारा करते हैं। जो बच्चे पकड़े गए उनमें 93.7% ऐसे थे जो अपने मां बाप या अभिभावकों के साथ रहते थे जबकि बेघर बार के बच्चे महज 6.3% थे । अब सवाल उठता है कि आखिर वह कौन से कारण हैं जिन्होंने इन बच्चों को अपराधी बनाया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण कारण था कि बच्चों को संचार तकनीक ,मीडिया ,इंटरनेट और दूसरों से ऑनलाइन बातचीत की सुविधाएं उपलब्ध हैं। कई मामलों में पाया गया है कि ऐसे बच्चों के मां-बाप दोनों अच्छे जीवन यापन  के लिए कमर तोड़ मेहनत करते हैं और  बच्चे अकेले रहते हैं । कोई उन पर ध्यान देने वाला नहीं रहता है ना ही उन्हें सही दिशा बताने वाला रहता है यह अकेलापन उन बच्चों को घृणित अपराधों की ओर आकर्षित करता है। शुरू शुरू में यह तो  थ्रिल या रोमांच की तरह लगता है । इसके अलावा सोशल मीडिया की अबाध पहुंच और बच्चों की जरूरतों के प्रति अभिभावकों की लापरवाही इन बच्चों के अपराधी बनाने के प्रमुख कारणों में से एक है। ऐसे में हमारे समाज और बुनियादी संस्थाओं को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। यह तो सत्य है अब हमारे देश की बहुत ही प्रतियोगिता पूर्ण हो गई है और बच्चों को नैतिक मूल्यों तथा नैतिकता के बारे में शिक्षा देने की ओर कम ही ध्यान दिया जाता है।  यही कारण है कि बच्चों में जीवन के प्रति चिंता और दया की भावना नहीं बन पाती। बच्चों में सामाजिकता कम होती जाती है। दोस्तों और परिवार का दबाव घटता जाता है तथा इन बच्चों के लिए व्यक्तिगत जोखिम नाम की कोई चीज नहीं होती है। इस इस कारण बच्चों में अपराध प्रवृति बढ़ती जाती है। परिवारों को जीवन और समाज के प्रति सकारात्मक नजरिया रखना चाहिए बच्चों के मां-बाप और उनके बड़े  भाई-बहनों को बच्चों को सकारात्मक मूल्यों, नियमों और मानदंडों की ओर प्रवृत्त करना चाहिए।  बच्चे के लिए  परिवार  रोल मॉडल और  आचरण का  मॉडल होता है । सरकार को चाहिए, जो गरीब परिवार हैं उन्हें मदद करे ताकि वे अपने आर्थिक हालात को सुधार सकें। अभिभावकों को भी चाहिए वह बच्चों को कानून की इज्जत करना सिखाए और यह बताएं कि सार्वजनिक सुरक्षा के लिए जो कानून बनाए गए हैं उनको भंग करने से क्या क्या हो सकता है। दूसरी तरफ जो लोग बच्चों को देखभाल में लगे हैं या कहिए उनके माता-पिता उनमें प्रगतिशील विचारों का अभाव रहता है। वे  लड़कियों को निर्भीक जैसे कार्यक्रमों शामिल नहीं करते। इन कार्यक्रमों में लड़कियों को व्यक्तिगत हमले से बचाव करना इत्यादि सिखाया जाता है। वक्त आ गया है कि समाज को यह जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी और इस बात पर कड़ी नजर रखनी पड़ेगी कि हमारे समाज के बच्चे अपराधी ना बनें।  माता-पिताओं को भी इस बात के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे अपने बच्चों में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना पैदा करें।  बच्चों को स्कूल स्तर पर महिलाओं के प्रति सम्मान की बात सिखाई जानी चाहिए।

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