नापाक विचारों को पराजित करना होगा
कश्मीर में तनाव बढ़ता जा रहा है। 23 फरवरी को सरकार ने अलगाववादियों की धरपकड़ के दौरान 150 लोगों को हिरासत में लिया। जिसमें अधिकांश जमाते इस्लामी जम्मू और कश्मीर के सदस्य थे। इसके अलावा कई और प्रशासनिक कदम उठाए गए हैं, जिसे लेकर कश्मीर में भारी आशंका व्याप्त हो गई है और लोग खाने पीने के सामान भंडार करने लगे हैं। शक है कि कहीं जंग ना हो जाए। हालांकि, पुलिस ने इसे रूटीन कार्रवाई बताया है। इधर पूरे देश में पुलवामा हमले को लेकर भारी गुस्सा व्याप्त है और देशवासी तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। अधिकांश लोग तो कह रहे पाकिस्तान के साथ युद्ध होना ही चाहिए। इसकी पृष्ठभूमि की घटनाएं और ज्यादा डर पैदा कर रही हैं। अगर भीड़ के गुस्से का समाज वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो लगता है कि यह भारत के अभिमान पर आघात से उपजा गुस्सा ज्यादा है और पुलवामा में मारे गए जवानों की शहादत का शोक कम है। यही नहीं , इसमें सबसे चिंताजनक बात यह है कि हमारे राजनीतिक नेता जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि इस हमले के बाद से पाकिस्तान भारी पड़ रहा है और उसकी 'मरम्मत' होनी चाहिए। पाकिस्तान के विरुद्ध गुस्सा जायज है। लेकिन फिलहाल जो लोगों में दिख रहा है अपनी 'हीनता ' से उत्पन्न आवेग ज्यादा है और सही गुस्सा कम है। एक ऐसी स्थिति बनती जा रही है जिसमें आम जनता किसी समाधान पर नहीं सोच रही है बल्कि किस पर आरोप लगाया जाए और उस आरोप के आधार पर उसे कैसे दंडित किया जाए यह सोच रही है । पुलवामा हमले का सबसे दुखद पक्ष यह नहीं है कि हमारे जवान मारे गए बल्कि उससे भी दुखद पक्ष है कि हम समझते हैं पाकिस्तान ने हमें चोट पहुंचाई है और वह हम पर भारी पड़ रहा है। पाकिस्तान भारी पड़ सकता है क्योंकि वह ऐसे काम करता रहता है। उस पर कोई अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं पड़ता, कोई कूटनीतिक जवाबदेही नहीं है और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे हमले उसे सबक सिखाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। आत्म घात पर आमादा मुल्क का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अफगानिस्तान में अमरीका की नाकाम कोशिशें इस बात की सबूत हैं। इस समस्या का कोई आनन-फानन में हल नहीं हो सकता। पाकिस्तान इसलिए नहीं भारी पड़ जाता है कि हम में क्षमता नहीं है। हम उस पर हमला कर कुचल सकते है और अपने लोगों की इच्छा पूरी कर सकते हैं। लेकिन कटु सत्य यह है कि हमने परंपरागत युद्ध जैसे हालात से निपटने के लिए खुफियागिरी ,गोपनीय कार्रवाई और तकनीकी क्षमता का विकास नहीं किया है। यह क्षमताएं रातोंरात नहीं विकसित होतीं। बहुत लंबा समय लग सकता है। यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि भारतीय उदारवादी समुदाय के पास सुरक्षा समरनीति नहीं है। इसके लिए बहुत भारी सोच और समझ की जरूरत पड़ती है । हमारी सरकार की सबसे बड़ी मजबूरी है कि वह जहां बहुत जरूरत होती है वहां हर बार रुपया नहीं लगाती । पाकिस्तान इसलिए भी यह कर पा रहा है कि कश्मीर में कट्टरवाद है और वहां अलगाववाद व्याप्त है। हम भले ही इस खुशफहमी में रहें कि कायर पाकिस्तानी सैनिक अधिकारी जो यह सब करवा रहे हैं हम से युद्ध में नहीं जीत सकते। लेकिन यह भी सच है की भुजाएं फड़काने वाले हमारे राजनीतिज्ञ कभी भी शांति नहीं कायम कर सकते हैं। दूसरे पर गुस्सा उतारना आसान है लेकिन यह स्वीकार करना बड़ा कठिन है कि विगत 5 वर्षों में कश्मीर की हालत बहुत खराब हुई है।
मनमोहन सिंह का शासन काल एक भ्रम पूर्ण बहादुरी में खत्म हो गया। पाकिस्तान हम पर इसलिए भी यह सब कर पा रहा है कि हमें मोटे तौर पर पाकिस्तान की तरह ही जवाब देने पड़ रहे हैं। देश की राजनीति में बहुत दिनों से तनाव कायम था और वह अभी कायम है। राजनीतिक रुख या नागरिकता को धर्म के चश्मे से देखना तो पाकिस्तान की पुरानी आदत है लेकिन आज हमारे देश में भी कई राजनीतिज्ञ ऐसा ही कर रहे हैं । वे धार्मिक आधार पर समाज को विभाजित करने की कोशिश में लगे हैं। हम एक ऐसी संस्कृति को जन्म दे रहे हैं जो धर्म और जाति के ताने बाने से बुनी जा रही है । यहां तक कि फौज में भी जात - पांत की बात होने लगी है । पाकिस्तान ने जब जन्म लिया तभी से वह अपनी पहचान से आहत है । वह इसलिए भी यह सब कर पा रहा है कि हम अकेले हैं। यकीनन हमें उन देशों का इस्तेमाल करना चाहिए जो हमारी बात सुनते हैं और यह भी सही है कि पाकिस्तान के दोस्तों को हम अपने से ज्यादा करीब रखें दुश्मनों के मुकाबले । लेकिन कटु सत्य तो यह है कि हम जिओपॉलिटिक्स पर ध्यान नहीं देते। भारत और पाकिस्तान में विभेद दुनिया की अपनी नीति है और दुनिया के देश इस बात को समझते हैं। हमें इन मनोवैज्ञानिक जटिलताओं को समझना होगा। पाकिस्तान ऐसा देश है जिसकी जन संस्कृति भविष्य की अवास्तविकताओं की डोर से बंधी है। यह देश दूसरे पर बेवजह थूकने के प्रयास में अपनी ही नाक काट लेता है। भारत में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है। पुलवामा हमले के बाद जब से बहस शुरू हुई है उसमें संतुलन और अनुपात कहीं नहीं दिख रहा है ।इस समय भारत में जो गुस्सा है व विनाशक है और खुद को ज्यादा हानि पहुंचा सकता है। दक्षिणपंथी गिरोह कश्मीर पर बहस कर रहे हैं और जो इसके विरोध में है वह राष्ट्र विरोधी है। यह लोग अपने ही विचारों और हस्तक्षेप को पराजित होता हुआ नहीं बर्दाश्त कर सकते हैं। सच तो यह है कि पाकिस्तान को पराजित करने का विचार पाकिस्तानी शासन को पराजित करने जैसा नहीं है। बल्कि होना तो यह चाहिए की जो पाकिस्तानी विचार है जो सोच है उसको पराजित किया जाए। चिंताजनक की बात है कि पुलवामा के बाद जो पाकिस्तानी सोच है वह भारत को भी प्रभावित करने लगा है । भारत को इन विचारों से अछूता रखना नरेंद्र मोदी की वास्तविकताओं को सबसे बड़ी चुनौती है । उन्हें इस चुनौती को फतह करनी ही पड़ेगी । यह बताने के लिए कि नेहरू से उनके पूर्व तक सभी शासक कश्मीर में नाकाम रहे हैं। उम्मीद है नरेंद्र मोदी यह करेंगे।
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