पाक के मन में भारत का डर जरूरी है
जब से पुलवामा हमला हुआ है और उसमें पाकिस्तान की शह की खबर मिली है तबसे लगातार विमर्श हो रहा है। कोई कहता है पाकिस्तान के दांत खट्टे कर देने चाहिए, कोई कहता है उसकी कमर तोड़ देनी चाहिए। जितने मुंह उतनी बातें। यहां तक कि जब इमरान खान ने कहा एक मौका दीजिए तो उसे इस तरह प्रचारित किया गया इमरान खान गिड़गिड़ा रहे हैं भारत के सामने।
मंगलवार को भारतीय वायुसेना के विमानों ने नियंत्रण रेखा पार कर जैश ए मोहम्मद के आतंकी शिविरों पर हमला किया तो भारत में खुशी की लहर दौड़ गयी। उधर इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के समक्ष "शेम शेम" के नारे लग रहे हैं। वहां से तरह तरह की खबरें आ रहीं हैं। लेकिन यह तो साफ पता चल रहा है कि पाकिस्तान की टांगें कांप रहीं हैं।
कुछ लोग जो सामरिक विशेषज्ञ हैं उनका मानना है कि हमला तब किया जाए जब मामला ठंडा हो जाए ,मजा तभी आता है। भारत ने कुछ ऐसा ही किया है। यह अफगानियों की रणनीति है । 18 वीं सदी में फ्रांसीसियों ने भी इसका इस्तेमाल किया था । लेकिन अफगानियों के लिए इसे ज्यादा मुफीद माना जा सकता है। क्योंकि बदला लेना उनके जीवन का अंग है। वे बदले के लिए कई पीढ़ियों तक लड़ते रहते हैं। 1971 में पराजय का बदला लेने के लिए पाकिस्तान ने कई पीढ़ियों से युद्ध किया मगर उसे क्या मिला ? उसकी अर्थव्यवस्था ,उस की राजव्यवस्था और उसका पूरा समाज बर्बाद हो गया। क्योंकि वह बदले के साथ प्रतिकार करना नहीं सीख सका है। मंगलवार का हमला उसी बदले के साथ प्रतिकार का उदाहरण है।
प्रतिकार एक प्रबुद्ध दिमाग उपज होती है। प्रधान मंत्री लगातार वायदे कर रहे हैं, आंसुओं की एक एक बूंद का हिसाब लिया जाएगा। सब लोग सहमत हैं कि कुछ किया जाना चाहिए । लेकिन कब थोड़ा रुक कर इसी लिए उन्होंने यह जिम्मा सेना को सौंप दिया।
कौटिल्य या कहें चाणक्य यह कथा याद आती है । एक बार एक कटीली झाड़ियों से फंस कर उनकी धोती फट गई उन्होंने कुछ नहीं किया। उलझी धोती को निकाल दिया और थोड़ी देर के बाद मट्ठा लेकर आए और झाड़ियों में डालने लगे । लोगों ने पूछा की जिन झाड़ियों ने ने आपकी धोती फाड़ी है उसे आप मट्ठा दे रहे हैं । चाणक्य ने कहा अगर मैं इसे काट देता तो दोबारा झाड़ी पनप जाती मट्ठे के लोभ में सैकड़ों चीटियां आएंगी और झाड़ी को खा जाएंगी। वह फिर कभी नहीं पनपेंगीं।
अपने इतिहास को देखें । 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था। उसका मकसद क्या था ? भारत की जमीन पर कब्जा करना नहीं बल्कि भारत के मन में खौफ पैदा करना था। इसके बाद चीन ने पाकिस्तान को अपना कारिंदा बना लिया। विगत 50 वर्षों से चीन भारत के खिलाफ एक छोटे से देश पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है। वह कम लागत पर डर पैदा कर रहा है।
1971 की मिसाल है। पश्चिम से पाकिस्तान ने हमला बोला । उस समय भी इसी तरह जनमत था लेकिन वह शांति 9 महीने तक इंतजार कीं। उन्होंने सेना को तैयार किया अमरी का और चीन को रोकने के लिए रूस से संधि की। पाकिस्तान के खिलाफ दुनिया भर में माहौल बनाया। चारों तरफ से इतना शिकंजा कसा गया कि याहिया खान छटपटाना लगे और तब दिसंबर में युद्ध शुरू हुआ और पाकिस्तान को धूल चाटनी पड़ी। इसके बाद पाकिस्तान ने भारत को अस्थिर करने के लिए फौज के इस्तेमाल करने के बारे में कभी नहीं सोचा। उल्टे उसने आतंकवाद और आत्मघाती भाड़े के तत्वों को तैयार किया और छोटे-छोटे युद्ध शुरू करने लगा। भारत चाहे तो इन भाड़े के तत्वों को मार डाले पाकिस्तान को क्या फर्क पड़ता । आज हालात यह हैं कि हम अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह सक्षम हैं। यहां वहां इसमें कुछ बदला भी लेते रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान को रोक नहीं पा रहे हैं। आगे क्या होगा? एक मात्र विकल्प यह है कि हम पाकिस्तान को उसे चुनौती दें कि वह हमारा मुकाबला करे और इस तरह खुद को भीखमंगा बना ले । मंगलवार को नियंत्रण रेखा के पार जाकर आतंकी शिविरों को नेस्तनाबूद कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यही नीति अपनाई। यही नहीं पाकिस्तान इस चुनौती के जाल में फंस गया है।वह भारतीय नियंत्रण रेखा लांघने की कोशिश में अमरीका से भीख में मिला अपना एक विमान गवां बैठा। उसकी बर्बादी अब शुरू हो चुकी है।
कुल मिलाकर दुश्मन में डर पैदा करना जरूरी है।
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