सरकार सुरक्षा को लेकर उदासीन क्यों?
2019 के अंतरिम बजट में सुरक्षा पर 3.05 लाख करोड़ का प्रावधान है। साधारण अंकगणित के नजरिये से देखा जाए तो यह पिछले साल के 2. 95 लाख करोड़ से सिर्फ 3.38 प्रतिशत ज्यादा है। अगर सही मायने में देखा जाए तो सुरक्षा बजट में कमी कर दी गई है । पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष 4.74% मुद्रास्फीति हुई है इससे रुपए की कीमत पर गिर गई है। अब हमारे अधिकांश सुरक्षा संयंत्र और हथियार विदेशों से आयात होते हैं। रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले कम होने से जो राशि दिख रही है वह खरीदारी में कहां पहुंचेगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है । पिछले साल जनवरी में डॉलर की कीमत 64 रुपए थी इस वर्ष यह 71.25 रुपए हो गई है। इस आधार पर अगर देखें तो पिछले साल से इस साल 11% कम आवंटन हुआ है। इसका अर्थ है कि पिछले वर्ष से कम इस बार आयात होगा। इस वर्ष 1.03 लाख करोड़ रुपयों का ज्यादा आवंटन बहुत कम है। खास करके ऐसे समय में जब वस्तुएं बहुत महंगी होती जा रही हैं। इसका मतलब है कि इस बार जब रक्षा जरूरतों की खरीदारी होगी उसमें बहुत किफायत बरतनी होगी और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में सही नहीं होगा।
वित्तीय वर्ष 2018- 19 में कुल बजट का 12. 10 प्रतिशत सुरक्षा बजट था। इस वर्ष रक्षा बजट कुल बजट का 10. 96% है । अब प्रश्न है कि सरकार सच में चाहती क्या है? भाजपा या अन्य दक्षिणपंथी दलों के लिए कभी भी सुरक्षा प्राथमिक नहीं रही। हालांकि, वह सुरक्षा का राजनीतिक इस्तेमाल बखूबी करती है। रक्षा के मामले को हमेशा भुनाने वाली सरकार ने पिछले 5 वर्षों में लगातार सुरक्षा बजट को कम किया है। बार-बार कहा गया है की सेना में फौजी ज्यादा होते हैं और बजट में कमी से राष्ट्रीय सुरक्षा पर आंच आने का खतरा रहता है। फौज में दो तरह के बड़े खर्चे हैं ।पहला सैनिकों पर और दूसरा साजो सामान पर । साजो सामान पर ज्यादा ही खर्च होता है। अब देश में जो सामान पर होने वाला खर्च है वह और सैनिकों पर होने वाला खर्च लगभग बराबर होते जा रहा है और इससे ऐसा लगता है की सैनिकों की कमी हो रही है। साजो सामान खास करके तकनीक पर खर्च बढ़ता जा रहा है। भारत में लगभग 10 लाख सैनिक हैं। सैनिकों तथा साजो सामान में खर्च का अनुपात 40 और 60 का है लेकिन यह धीरे धीरे कम होता जा रहा है । अंतरिम बजट में यह राशि लगभग 1 लाख 33हजार 80 करोड़ है जो कुल सुरक्षा बजट के 34% से थोड़ा कम है। हालांकि यह पिछले साल के रक्षा बजट में सैनिकों पर होने होने वाले खर्च से थोड़ा ज्यादा है । उस वर्ष सैनिकों पर 33% खर्चे का प्रावधान था। पिछले साल सैनिक साजो सामान पर जो आवंटित किया गया था वह पूरा नहीं खर्च हो सकता था लेकिन इस बार लगता है कि वह पूरा खर्च किया जा सकेगा। लेकिन इससे क्या होता है ? तीनों सेनाओं के लिए जो अलग-अलग खर्च आवंटित किए गए हैं वह चिंताजनक हैं। थल सेना को अभी भी आधुनिक हथियार जैसे राइफल इत्यादि और तोपें नहीं मिली हैं। वायु सेना युद्धक विमानों और हेलीकॉप्टरों के लिए तरस रही है। यही हाल नौसेना का भी है। वहां युद्धपोत ,पनडुब्बियों और माइनस्वीपर का भारी अभाव है। भारत में अभी भी उच्चस्तरीय सैनिक साजो सामान नहीं बनते हैं और उसे आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। आयात का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है।
सुरक्षा मंत्री ने जब संसद में यह बताया कि भारतीय सुरक्षा पर 3 लाख करोड़ के ऊपर आवंटित किया गया है तो वहां लोगों ने हर्ष ध्वनि की लेकिन इससे क्या होता है? इसके सही प्रभाव की गणना जरूरी है। रिटायर्ड सैनिकों की पेंशन पर 1,12 हजार 79 करोड़ खर्च होंगे । यह राशि साजो सामान के लिए आवंटित राशि से कहीं ज्यादा है और भविष्य में रिटायर्ड सैनिकों को पेंशन का खर्च बढ़ता जाएगा। यह कहा जा सकता है कि भारतीय सेना का भविष्य पैसों के लिए कारण तनावपूर्ण है और यह निकट भविष्य में खत्म होने वाला नहीं है।
0 comments:
Post a Comment