आई एस आई क्यों मदद करता है आतंकियों की
पुलवामा हमले के बाद भारत-पाकिस्तान सीमा पर हालात तेजी से बदलते जा रहे हैं। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को खुली छूट दे दी है वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि वह इस हमले की जांच करवाने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके पक्के सबूत मिलने पर कि यह हमला पाकिस्तान करवाया है।उन्होंने इस बात से इंकार किया है इस मामले में पाकिस्तान की कोई भूमिका थी।
बीते दिसंबर में इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बलोच छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत में मुसलमानों के साथ जिस तरह बर्ताव होता है उससे यह यकीन होता है कि पाकिस्तान क्यों बना । पुलवामा में फिदायीन हमले के पूर्व जारी वीडियो की भाषा को देखें तो उसमें पता चलेगा कि वह कश्मीरियों के लिए नहीं बल्कि भारत के मुसलमानों के लिए एक संदेश था। ऐसे में अगर इमरान खान की बात के परिप्रेक्ष्य में इस संदेश को देखिए तो सबूत की कोई जरूरत नहीं रह जाती है कि पाकिस्तान ने इस हमले के लिए उकसाया था। यहां यह काबिले गौर है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री 71 वर्ष पहले की घटना को आज उचित साबित करना चाहते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि पाकिस्तान के पास पहचान का संकट है और इस संकट को खत्म करने के लिए वह किसी दुश्मन पर दोष थोपना चाहता है । यह दोषारोपण स्थाई रूप से आतंकवाद को समर्थन देने के रूप में सामने आता है । किसी जमाने में पाकिस्तानी नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी भारत के साथ हजार साला जंग की बात कही थी। हर पाकिस्तानी को भारत विरोध उसके जन्म के साथ घुट्टी में दी जाती है। इमरान खान की बात नई नहीं है। शुरू से ऐसा होता रहा है। इस तरह के जितने भी हमले होते हैं उसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई सक्रिय भूमिका होती है। सबकुछ पोशीदा तौर पर होता है। अब कुछ लोग जरूरत से ज्यादा खुद को ज्ञानी समझते हैं, वह सवाल पूछ रहे हैं और यह सवाल अंतरराष्ट्रीय हल्के में भी घूम रहा है कि भारत पर आतंकी हमले से पाकिस्तान को क्या मिलता है। स्पष्ट उत्तर है कि उसे रणनीतिक लाभ मिलते हैं। लेकिन किसलिए? भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद का उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि दोनों देशों में शांति नहीं रहेगी। जब भी दोनों देश बातचीत के लिए शुरुआत करने को होते हैं या करीब आते रहते हैं तो एक खास किस्म का आतंकवादी हमला हो जाता है। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक पाकिस्तान पहुंच गए और उनके लौटने के ठीक 1 सप्ताह के बाद जैश ए मोहम्मद ने पठानकोट पर हमला कर दिया। 2008 के 26 नवंबर को मुंबई पर हमला जब हुआ था तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री दिल्ली में थे और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी एक बयान देने वाले थे की परमाणु शास्त्रों का पहले उपयोग नहीं करेंगे जैसा कि भारत ने किया है। 1999 में जब दोनों देशों के बीच बहुत उम्मीद के साथ लाहौर समझौता हुआ था उसी समय कारगिल हमला हो गया। इससे साफ जाहिर होता है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने के पक्ष में नहीं हैं। उसे यह मालूम है कि अगर आतंकी हमला होता है तो आंतरिक दबाव के चलते भारत द्विपक्षीय समझौते पर बातचीत नहीं कर सकता है। वहां की सरकार यह जानते हुए भी खुफिया एजेंसियों का ही समर्थन करती है।
पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां फौज का भी शासन चलता है। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने ब्रिटिश सेना का एक तिहाई भाग हासिल कर लिया लेकिन उसके संसाधन महज 17% थे और इसके चलते वहां फौज का वर्चस्व कायम हो गया। वहां की राष्ट्रीयता की परिभाषा फौज ही गढ़ती है। कई बार वहां नागरिक या असैनिक शासकों ने भी अपना वर्चस्व कायम करना चाहै है और उन्हें नीचा दिखाने के लिए पाकिस्तानी सेना अपनी प्रासंगिकता प्रदर्शित करती रही है। ऐसा होने के लिए भारत को हमेशा पाकिस्तान से दुश्मनी का दिखावा करना होगा। लेकिन ,भारत ऐसा नहीं कर सकता और पाकिस्तान भी खुलकर ऐसा नहीं करता । वह पारंपरिक युद्ध में नहीं उतरता बल्कि यह उद्देश्य आतंकवाद के माध्यम से पूरा करता है। अब सोचिए पाकिस्तानी सेना व्यावसाय भी करती है। यह दुनिया की पहली सेना है जो सीमेंट ,कपड़े इंश्योरेंस इत्यादि बेचती है। प्राइम स्टेट उसका वास्तविक धंधा है। अगर किसी असैनिक के पास सेना से ज्यादा संसाधन हो जाते हैं तो वह संकट में पड़ जाता है। अपने 72 साल के वजूद में पाकिस्तान पर 33 सैनिक शासकों ने शासन किया। वह चाहते हैं कि पाकिस्तान में शासन जिसका भी हो वह सेना के हाथ की कठपुतली बनी रहे।
पाकिस्तान में शायद ही कोई ऐसा आदमी मिलेगा जो बांग्ला देश को आजाद कराने में भारत की भूमिका को लेकर नाराज हो। सभी पाकिस्तानियों के दिमाग में है कि पूर्वी पाकिस्तान से सत्ता में भागीदारी नहीं करने के कारण यह घटना घटी या सेना अपनी साजातिक राष्ट्रभक्ति थी जो यह घटना घटी भारत तो केवल उस घटना को गति देने वाला था। दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना इसे अपना अपमान मानती है । कोई माने या ना माने, 1971 की घटना ने पाकिस्तानी सेना की साइकी और भारत के बारे में उसके विचार को प्रभावित किया था और यही कारण है कि कश्मीर में पाकिस्तानी सेना 1971 के अपमान का बदला लेना चाहती है।
पिछले हफ्ते तीन मुल्कों ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया था कि वह उन पर आतंकी हमले करता है। ये तीन मुल्क थे भारत, ईरान और अफगानिस्तान। पाकिस्तान का आतंकवादी ढांचा वैश्विक है। यह सोवियत संघ को पराजित करने के लिए अमरीका के इशारे पर मुजाहिदीन को प्रशिक्षित करने से आरंभ होता है और वहां से चलता हुआ कश्मीर तक आता है। इतिहास दोहरा रहा है। अमरीका अभी भी अफगानिस्तान में जमा हुआ है और नतीजतन कश्मीर में आतंकवाद बढ़ता जा रहा है।
कश्मीर को आजाद कराना पाकिस्तान के राष्ट्रवाद का प्रमुख अंग है । कश्मीर को मुक्त कराने का पाकिस्तानी सैनिक प्रयास 1965 में और कारगिल में 1999 में असफल हो गया। अब उसके पास आतंकवाद ही एकमात्र उपाय है । आज पाकिस्तान के पास कश्मीर ही भारत विरोध का एक बहाना है। पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां ओसामा बिन लादेन बड़े आराम से रह रहा था और पाकिस्तान बराबर इंकार करता रहा था। आज भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इंकार कर रहे हैं। हर भारतीय उसकी हकीकत समझ सकता है।
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