घिनौना हमला
पुलवामा में गुरुवार को आतंकियों ने सीआरपीएफ जवानों से भरी एक बस पर कार बम से हमला कर 40 जवानों को मौत के घाट उतार दिया। पाकिस्तान के आतंकी समूह जैश ए मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। भारत ने इस हमले की तीव्र निंदा करते हुए पाकिस्तान पर आरोप लगाया है और कहा है कि "वह आतंकवाद से जुड़े लोगों तथा गिरोहों को समर्थन करना बंद करे। अपनी जमीन से इन गिरोहों को खत्म करे।" सरकार के साथ भारत के सभी राजनीतिक दलों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी हमले की तीव्र निंदा की है। साथ ही देश भर में इस घटना पर आक्रोश है। शुक्रवार की सुबह कैबिनेट की बैठक हुई और घटना की समीक्षा की गयी। कैबिनेट में हुए फैसले और तदनुसार निर्देशों को के साथ घटना के बाद स्थिति का जायजा लेने गृह मंत्री कश्मीर पहुंच चुके हैं। इधर कैबिनेट की बैठक के बाद अरुण जेटली ने मीडिया को बताया कि पाकिस्तान को प्रदत " मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले लिया गया है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि इस मामले में गुप्तचरी असफल रही है। सरकार ने इस मामले में कूटनीतिक रास्ता अपनाने का निर्णय किया है। नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी ने भी जांच शुरू कर दी है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वह भारत द्वारा बनाई गई आतंकियों की सूची का अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में समर्थन करें। भारत ने यह भी कहा है कि दुनिया पाकिस्तान पर दबाव डाले कि वह अपनी धरती से आतंकियों को काम करने से रोके।
अपराध शास्त्र के नजरिए से देखें तो आज के हमले की तैयारी गत 17 जनवरी को उस समय शुरू हो गई थी जब कश्मीर के राजबाग क्षेत्र में आतंकियों ने ग्रेनेड फेंका था और इसमें कई पुलिस वाले घायल हो गए थे। जिम्मेदारी भी जैश ए मोहम्मद ने ही ली थी। इस घटना के बाद श्रीनगर में दो और हमले हुए। 10 फरवरी को श्रीनगर के लाल चौक पर सीआरपीएफ के जवानों पर ग्रेनेड फेंके गए। इस घटना के चार दिन बाद पुलवामा वाली घटना हुई । यह कश्मीरियों द्वारा किया गया हमला नहीं था। कश्मीरी नौजवानों के हमले की विधि तथा उसके तरीके अलग होते हैं। ऐसे हमलों के लिए कई बार अभ्यास करने होते हैं। अफगानिस्तान में जैसे जैसे हालात बदल रहे हैं पाकिस्तान पागल आतंकियों को कश्मीर में झोंक रहा है। आने वाले दिनों में ऐसे और हमले हो सकते हैं । इसलिए अब समय आ गया है जब हमें अपनी फौज की पूरी ताकत और सर्वोत्तम संसाधनों के साथ सक्रिय हो जाना चाहिए। वरना पुलवामा की तरह और घटनाएं हो सकती हैं।
ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास दो ही विकल्प हैं। पहला कि यह सर्जिकल स्ट्राइक के नाम से मशहूर 2016 की तरह अधिकृत कश्मीर पर हमला करे या कूटनीति की राह अपनाए। सरकार ने कूटनीतिक राह अपनाने की बात की है। लेकिन इससे होगा क्या ? भारत पाकिस्तान की रिश्ते को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भारत पाकिस्तान पर ज्यादा दबाव नहीं डाल सकता। ज्यादा से ज्यादा भारत इस मामले को अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सामने उठा सकता है। ट्रंप ने भी 2017 में आतंकियों को शरण देने के कारण पाकिस्तान को डांटा था और इसके बाद अमरीका ने पाकिस्तान को सैनिक सहायता देनी बंद कर दी थी। पाकिस्तान को अमरीका ने पुनः मदद देनी शुरू कर दी है। अब हमारे पास सिर्फ चीन एक ऐसा मुल्क है जो पाकिस्तान को यह सब करने से रोक सकता है । लेकिन चीन ऐसा नहीं करेगा। यह याद होगा कि भारत ने राष्ट्र संघ में जैश ए मोहम्मद पर प्रतिबंध लगाने की बात उठाई थी और चीन ने उसका विरोध किया था। यहां तक की अप्रैल 2018 में मोदी और चीन के राष्ट्रपति की बैठक के बाद भी चीन ने अजहर मसूद के संगठन जैश ए मोहम्मद पर प्रतिबंध का विरोध किया था। अब नई दिल्ली अजहर मसूद पर प्रतिबंध की अपील कर सकती है । चीन को वीटो का अधिकार है और वह चेतावनी दे चुका है कि अगर अजहर मसूद पर प्रतिबंध के लिए राष्ट्र संघ में बात उठेगी तो वह वीटो भी तो लगा सकता है। 2018 के सितंबर में चीन के विदेश मंत्री वांग ई ने भारत के प्रयास का विरोध किया था जबकि अमेरिका फ्रांस और इंग्लैंड ने भारत का समर्थन किया था। वास्तविकता तो यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन को छोड़कर सभी देश अजहर को प्रतिबंधित करने के पक्ष में है । ऐसे में उम्मीद नहीं है कि चीन आगे भी कुछ सहयोग कर सकता है। पूरी आशंका है कि पाकिस्तान जैश ए मोहम्मद को बढ़ावा देगा और भारत पर भविष्य में और हमले हो सकते हैं। चीन के मंत्री ने का सबूत मांगा था और कहा था अगर पक्के सबूत मिलें तो इस्लामाबाद जरूर प्रतिबंध लगाएगा। चीन के विदेश मंत्री ने राष्ट्र संघ में घोषणा की थी कि "उनका देश सभी तरह के आतंकवाद के विरुद्ध है। पाकिस्तान ने भी अफगानिस्तान में अलकायदा की मदद करने की काफी कीमत चुकाई है।"
अब भारत के पास जो दूसरा विकल्प है वह है सर्जिकल स्ट्राइक की तरह एक दूसरा हमला। लेकिन यह बड़ा कठिन है सीमा पार होने वाले हमले बहुत ही कठिन होते हैं सर्जिकल स्ट्राइक्स को बड़ी सावधानी से अंजाम दिया जाता है । अगर इसमें बड़ी संख्या में आतंकी मारे जाते भी जाते हैं तो इसका आतंकवाद के शमन पर असर नहीं पड़ता है। क्योंकि पाकिस्तान यह कहता है इस तरह कोई हमला हुआ ही नहीं । इसके पहले भी जो सर्जिकल स्ट्राइक किया गया था उसका क्या लाभ हुआ। क्या पाकिस्तान को रोका जा सका? इस बार भी सरकार यदि वही फार्मूला अपनाती है तो प्रश्न उठता है कि क्या यह कारगर होगा ? क्या ऐसे कदमों से इस तरह से हमलों को रोका जा सकता है?
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