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Wednesday, February 6, 2019

गरीबों को ही क्यों मोहरा बनाते हैं यह राजनीतिज्ञ

गरीबों को ही क्यों मोहरा बनाते हैं यह राजनीतिज्ञ

सभी राजनीतिक दलों द्वारा तरह-तरह की आर्थिक घोषणाओं से यह स्पष्ट हो गया कि कोई भी जीते या हारे अर्थव्यवस्था खस्ताहाल होने वाली है। इसका मतलब यह नहीं है कि अर्थव्यवस्था डूब जाएगी और आशा रहित हो जाएगी। राजनीतिज्ञों की अर्थव्यवस्था को दिवालिया करने की लाख कोशिशों के बावजूद संभवत ऐसा नहीं होगा।  राजनीतिक वर्ग और सरकारी मशीनरी ऐसा नहीं होने देगी। लेकिन अर्थव्यवस्था  एक ऐसे मुकाम पर पहुंच चुकी है जहां चलते रहने का इसका स्वभाविक आवेश धीमा हो गया है। कोई भी जो ऐसा सपना देखता है कि भारत बहुत तेजी से विकसित होगा उसका सपना साकार नहीं हो सकता। नरेंद्र मोदी 2014 में जब लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार थे तो उन्होंने वादा किया था कि वह लोगों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर , कई तरह के विकास और सुधार लाकर भारत की जनता को जड़ता से मुक्त कराएंगे । लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे पूरा नहीं किया और वे भगवा समाजवाद में लग गए। यह नहीं कहा जा सकता है कि मोदी जी ने कोई बहुत बड़ा कदम नहीं उठाया। उन्होंने कई बड़े सुधार किए जैसे जीएसटी, दिवालिया कानून इत्यादि कई महत्वपूर्ण सुधार थे। कुछ श्रमिक और अन्य सुधार भी किए गए। सरकार संस्थानिक उलझन में उलझी रही और उसमें इतना उलझ गई कि विकास रुक गया।  महत्वाकांक्षी "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम बहुत बड़ा विचार था। लेकिन कोई क्यों "मेक इन इंडिया" चाहेगा जब यहां इतनी बड़ी दिक्कत है। अगर किसी को मुश्किलात का सामना करना हो तो वह कारखाना लगाए। भारत में बनाने से ज्यादा सरल और सस्ता चीन से आयात कर लेना है। उस व्यापारी से पूछिए जो सरकारी वसूली का शिकार हो चुका है वह बताएगा कुछ नहीं बदला। अभी भी उन्हें धमकाया जा रहा है और उन्हें "देना" पड़ रहा है चाहे वह जितना भी कानून का पालन करे। व्यापार के जो कानून बने हैं वह तो इतने जटिल हैं कि उनका पालन करना  एक तरह से असंभव है। अगर किसी तरह से हो  जाता है तब भी मुक्ति नहीं मिलती। व्यापारियों के साथ अपराधियों की तरह बर्ताव किया जाता है। हर राजनीतिज्ञ ,हर अफसर यहां तक इंस्पेक्टर भी कुछ निचोड़ लेना चाहता है । लेकिन कोई भी उनके साथ जुड़ना या उनके साथ खड़ा होना नहीं चाहता।
        भारत में अगर किसी को भारत रत्न दिया जाना चाहिए तो वह हमारे उद्यमी हैं क्योंकि वे हर कठिनाइयों के बीच अड़े हैं । मोदी सरकार ऐसा कुछ नहीं कर पाई जिससे व्यापारी या समाज का उत्पादक वर्ग कुछ प्राप्त करे सके। सरकार के लिए रुपया बनाने वाले और रोजगार देने वाले यह लोग एक तरह से सोने के अंडे देने वाली मुर्गियां है या अगर उसे हिंदुत्व का बाना पहनाना है तो कामधेनु है जो जब चाहो दूध दे देती है। एक छोटा सा सच जो यह सारे राजनीतिज्ञ अनदेखा कर देते हैं वह है की रोजगार के अवसर पैदा करने के उनके वादे को अगर कोई पूरा कर सकता है तो वह देश का व्यावसाई वर्ग है उसे कुछ सुविधाएं दी जाएं। अब अगर सरकार उन पर अंकुश लगाए गी या उनको नहीं छोड़ेगी तो मतदाताओं को रिझाने के जो तरीके बचते हैं उनमें आरक्षण और मनरेगा जैसे उपाय हैं। सच तो यह है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम  को बेकार बना देने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे ही कांग्रेस के आर्थिक ढांचे का  प्रतीक मानते हैं।
         मोदी सरकार की आर्थिक विफलता की एक और निशानी है कि वह अब रोजगार के अवसर उत्पन्न करने और किसानों तथा मजदूरों की  समृद्धि के बल पर नहीं बल्कि जाति तथा सांप्रदायिक मसलों पर मतदाताओं को एकजुट कर रही है। पार्टी समग्र विकास की बात करती है  आर्थिक विकास 7% से ज्यादा होने की बात करती है लेकिन शायद ही कोई है जो इस पर यकीन करता हो। इस अवधि में सबसे ज्यादा किसानों को तकलीफ हुई है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। रोजगार के अवसर लगभग शून्य हो गए हैं। स्पष्ट है कि वह पुराना जुमला नहीं चलेगा। अबतक जितनी सरकारें आई हैं वह लगभग बार-बार एक ही बात करती आई है और बदलने की उम्मीद दिलाती आई हैं। लेकिन, सोचिए  ऐसा करने के लिए वायदे नहीं काम करने पड़ेंगे । किसानों से वादा किया जाता है कि उनके कर्ज माफ कर दिए जाएंगे । उन्हें रोजगार दिए जाएंगे या आमदनी की गारंटी दी जाएगी, लेकिन  अवसर पैदा करने के विचार तो उन्होंने नहीं बताया।  दुख तो यह है कि केवल एनडीए सरकार ने नहीं यूपीए भी यही करती आई है । आज देश "भक्तों" के शिकंजे में है और यह एक नेता को सही ठहराने के लिए तरह-तरह की दिमागी मशक्कत करते आ रहे हैं। इसलिए अगले चुनाव में चाहे जो जीते भारत उसी अनुत्तरदायित्व पूर्ण आर्थिक नीतियों के फंदे में फंसा रहेगा।
        यह  एक ऐसे मुल्क में होगा जो सभ्यता के नजरिए से या संस्कृति के दृष्टिकोण से महान था और यहां धन को लक्ष्मी कह कर पूजा जाता था । उस देश में यह सब चल रहा है । गरीबों के नाम पर जो नीतियां बन रही हैं वह गरीबी को और बढ़ा रही हैं । नरेंद्र मोदी ने 2014 में चुनाव इसलिए जीता कि उन्होंने देश के लोगों की उत्पादन क्षमता को बेलगाम कर देने का वादा किया। 5 साल के बाद वह ऐसा कुछ नहीं कर सकेंगे और बस वही करेंगे जो कांग्रेस ने अब तक किया । अब उनके प्रतिद्वंदी चांद ला देने का वादा कर रहे हैं लेकिन इसके लिए रुपए कहां से आएंगे? इसके लिए एक ही तरीका बचा है कि सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को मार दिया जाए या कामधेनु को ही समाप्त कर दिया जाए। अब जून में चाहे जो होगा लेकिन जनता को आर्थिक फंदे में फंसने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

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