मोदी डरते नहीं हैं पाकिस्तान जान ले
पाकिस्तान एक अजीब मुल्क है। वह कमोबेश आत्मघाती है। उसके बारे में एक कहावत मशहूर है कि वह ग्रेनेड के सेफ्टी कैच के लूप को पकड़कर सामने वाले से बात करता है और हमेशा यह कहता रहता है कि अगर उसकी बात नहीं मानी जाएगी तो खुद को उड़ा लेगा। अब प्रश्न है क्या पुलवामा में पाकिस्तान ने ग्रेनेड का सेफ्टी कैच खींच लिया। लगता है कि उसने ऐसा ही किया है।
अभी तक मीडिया में सब जगह प्रचारित किया जा रहा है कि यह एक स्थानीय आतंकी कार्रवाई थी। लेकिन अपराध शास्त्र की दृष्टि से ऐसा नहीं था। आत्मघाती हमलावर जरूर कश्मीरी था और भारतीय था। यह मानना बड़ा कठिन है कि इसकी साजिश भारत में रची गई होगी। सबसे पहली बात जैश ए मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी स्वीकार की है। यह पाकिस्तानी गिरोह है और आईएसआई इसकी आका है। दूसरी बात कि कट्टरपंथ का उकसावा जरूर स्थानीय सूत्रों से मिला होगा लेकिन अभी तक इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि इतनी बड़ी मात्रा में आरडीएक्स स्थानीय सूत्रों को कहां से उपलब्ध हुआ। यही नहीं विस्फोट के पहले जो वीडियो रिकॉर्ड किया गया वह अगर किसी ने ध्यान से देखा हो तो साफ पता चलेगा की वह आतंकवादी किसी बोर्ड पर लिखा कुछ पढ़ रहा है। उसकी भाषा में कश्मीरी असंतोष है या प्रतिशोध नहीं था या उतना ज्यादा नहीं था जितना भारत के मुसलमानों को उकसाने की कोशिश थी। सोचिए कि बाबरी मस्जिद और गुजरात का जिक्र कश्मीर में क्यों ? यह जो सोच है वह जैश ए मोहम्मद का ही है।
अब इसका मॉडस ऑपरेंडी देखें । चलिए शुरू करते हैं 2001 से। 2001 में कश्मीर विधानसभा पर हमला हुआ। यह हमला आत्मघाती था। वह हमला जैश ए मोहम्मद द्वारा करवाया गया था। उसी साल भारतीय संसद पर भी हमला हुआ। वह भी इसी की करतूत थी। इसके बाद पठानकोट- गुरदासपुर में भी हमले हुए । सबका मकसद एक ही था और वह था आतंक का कश्मीर से आगे विस्तार करना। बेशक लश्कर-ए-तैयबा के मुकाबले जैसे मोहम्मद एक छोटा संगठन है लेकिन वह अत्यंत साधन संपन्न है और आई एस आई उसे ट्रेंड कर इस लायक बना रहा है कि वह बहुत सोच-समझकर प्रभावी हमला करे। उसके साधनों का अंदाजा इसी बात से लगता है कि वह भारतीय विमान का अपहरण कर काठमांडू ले जाने में सफल हुआ और सौदा कर के मसूद अजहर को छुड़ा लिया। विमान लौटने तक हर चरण पर आई एस आई की नजर थी। आई एस आई के लिए जैश ए मोहम्मद और अजहर मसूद किसी भी आतंकवादी गिरोह से ज्यादा ताकतवर हैं। यही कारण है कि चीन लगातार उसका पक्ष लेता रहा है और बेशर्मी से उसका साथ देता रहा है। घटनाक्रम को देखते हुए जरा सोचें की सारे हमलों में कश्मीरियों की प्रमुख भागीदारी रही है पर यह सोचना भूल है कि इस के मूल में कश्मीरी हैं। यह बहाना लेकर पाकिस्तान को इस मामले का खंडन करने का मौका नहीं दें।
अब मूल बात पर आएं। कह सकते हैं कि पाकिस्तान ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारी ? अबतक जैश ए मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के हमलों का खुला जवाब नहीं दिया गया। हालांकि अतीत में कई सर्जिकल स्ट्राइक हुए हैं जो गोपनीय थे। अटल बिहारी बाजपेई और मनमोहन सिंह के शासनकाल में भी भारत ने पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और उसकी रणनीतिक मानसिकता का सहारा लिया था। यह उपाय शांति वादी था। अब मोदी जी के भाषण पर जरा गौर करें। उनकी बॉडी लैंग्वेज बताती है कि वह इस किस्म के शांति वादी सिद्धांतों पर विश्वास नहीं करते हैं। उसे शायद यह पता नहीं है कि मोदी सरकार संयम नहीं रख सकेगी। पाकिस्तान पर गाज गिरनी है । कब गिरेगी यह कहना मुश्किल है । लेकिन ज्यादा समय नहीं लगेगा। जवाबी कार्रवाई जल्दी हो सकती है और पूरी दुनिया इसे देखेगी। मोदी पुलवामा के दाग को लेकर वोट मांगने नहीं जाएंगे।
अब पाकिस्तान को यह तय करना है कि वह यही ठीक से रहता है या घरेलू मजबूरियों के दबाव में दूसरा कदम उठाता है। इसका फौजी नतीजा चाहे जो हो यह स्थिति इमरान खान के कार्यकाल पर विराम लगा सकती है। इतिहास देखें तो पता चलेगा पाकिस्तान का कोई भी शासक भारत से जंग के बाद सत्ता पर कायम नहीं रह सका है। चाहे वह 1965 में अयूब खान हों या 1971 में याहिया खान या 1999 के कारगिल युद्ध के बाद नवाज शरीफ हों। कोई सत्ता पर कायम नहीं रह सका। अब जो होगा उसका फैसला करना इमरान खान के बस में नहीं होगा । 1990 के बाद पाकिस्तान परमाणु अस्त्रों का खौफ दिखाकर भारत के खिलाफ आतंकवादी हरकतें करवाता रहा है। अब उसे एक भयानक हकीकत से सामना करना होगा। भारत का मौजूदा शासन इस बात पर यकीन करता है कि परमाणु अस्त्र दोनों के पास है। अगर पाकिस्तान इसका डर दिखाने की कोशिश करता है तो यह भारी पड़ेगा। भारत में चुनाव को देखते हुए इसकी संभावना बहुत प्रबल है कि मुश्किलों का सामना करना पड़े। नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान के परमाणु बमों का खौफ नहीं है।
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