सी बी आई बनाम कोलकाता पुलिस की रस्साकशी में भिड़े मोदी - ममता
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता की सड़कों पर व्याप्त राजनीतिक और संवैधानिक संकट में उस समय नया मोड़ आ गया जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए मंगलवार की तारीख मुकर्रर कर दी और गृह मंत्रालय ने इस घटना में आईपीएस अफसरों की भूमिका के बारे में रिपोर्ट मांगी है। अफसरों पर आरोप है कि उन्होंने नियम को भंग किया है और जांच कार्य बाधा पहुंचाई है ।
रविवार की शाम सीबीआई की टीम जब कोलकाता पुलिस के कमिश्नर राजीव कुमार निवास में प्रवेश करना चाहती थी उस समय पुलिस के एक दल ने उसे रोक दिया बाद में कुछ सीबीआई अफसरों को थाने ले जाया गया ।
इन सब घटनाओं के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मेट्रो चैनल में धरने पर बैठ गईं। उनका यह मानना है कि यह राज्य के संवैधानिक अधिकार का हनन है। उधर संभावित आशंकाओं का बहाना बनाकर सीबीआई के कोलकाता कार्यालय के समक्ष सीआरपीएफ की टुकड़ी तैनात कर दी गई है। दूसरी तरफ दिल्ली में राज्यसभा में इस मामले को लेकर भारी शोर शराबा हुआ और कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी।
सीबीआई की टीम राज्य में कुछ साल पहले हुए चिटफंड घोटाले की जांच कर रही थी । उसने कई बार नेताओं तथा अफसरों से पूछताछ भी की है। इस बार उसे पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करनी थी। इस घोटाले की जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के प्रमुख राजीव कुमार ही थे। पश्चिम बंगाल सरकार ने स्पष्ट कहा है कि "सीबीआई की टीम बिना किसी वारंट के पुलिस कमिश्नर के आवास पर गई थी और वह एक गुप्त कार्रवाई का हिस्सा था।" यद्यपि सीबीआई की टीम ने इस आरोप का खंडन किया है और कहा है कि उनके पास जरूरी दस्तावेज थे। सीबीआई की टीम ने यह भी कहा है कि पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार दस्तावेजों को और सबूतों को मिटाने में लगे थे। यद्यपि सीबीआई की टीम ऐसा किस आधार पर कह रही है इसके बारे में कहीं कोई जिक्र नहीं है । सीबीआई का दावा सुनने में बड़ा अजीब लग रहा है उसे कैसे मालूम हुआ कि पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार सबूतों को मिटाने में लगे हैं। जब सीबीआई खुद कह रही है या राजीव कुमार उपलब्ध नहीं है तो वह किस आधार पर या किस सूचना पर राजीव कुमार के आवास पर गई थी? सन्मार्ग को विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि सीबीआई की एक टीम वहां दो दिन पहले से निगरानी कर रही थी और उचित समय जानकर उसके अफसरों ने वहां घेरा डाला। अगर सीबीआई की बात तार्किक रूप से सही है तो वहां सीबीआई के कम से कम 40 कर्मचारियों की क्या जरूरत थी? एक बड़े अफसर से खुली पूछताछ के लिए इतना बड़ा हंगामा करने की क्या जरूरत थी? इससे साफ जाहिर होता है इसके पीछे इरादा सही नहीं था और इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि दो फरवरी को दिल्ली में सत्ता के गलियारों में यह चर्चा चल रही थी कि कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को गिरफ्तार किया जा सकता है। इस कार्रवाई का मौका भी बड़ा अजीब ढूंढा गया। सीबीआई के अंतरिम निदेशक नागेश्वर राव जाने वाले थे और नए निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला प्रभार लेने वाले थे। बीच की अवधि में यह कार्रवाई की गई। इससे स्पष्ट होता है कि इसका इरादा जांच नहीं कुछ और ही था।
पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार में तीखी प्रतिद्वंद्विता चल रही है और यह प्रतिद्वंद्विता तृणमूल कांग्रेस तथा भाजपा के बीच राजनीतिक रस्साकशी के कारण है। भाजपा चाहती है कि किसी भी तरह आने वाले लोकसभा चुनाव में उसे ज्यादा सीट मिले उधर ममता जी का इरादा है कि विपक्षी दलों को एकजुट कर कर भाजपा को सत्ता से हटा दिया जाए। दरअसल यह एक तरह से पावर पॉलिटिक्स है। दोनों तरफ सत्ता का जोर है। फर्क यही है कि केंद्र सरकार खुद को ज्यादा ताकतवर और राज्य सरकार को कमजोर समझती है । लेकिन रविवार की घटना के बाद बाजी पलटती नजर आ रही है। क्योंकि सारे विपक्षी दलों ने ममता जी का समर्थन किया है। यहां तक कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी ममता बनर्जी के समर्थन की घोषणा की है। ममता बनर्जी ने कहा है की "वह देश और संविधान की रक्षा के लिए यह विरोध प्रदर्शन कर रही हैं।" उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल प्रधानमंत्री के इशारे पर सीबीआई को निर्देश दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मंगलवार को सुनवाई की तारीख मुकर्रर की है। हालांकि सीबीआई ने कहीं भी ममता बनर्जी का नाम नहीं लिया है बल्कि कहा है कि पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार शारदा चिटफंड घोटाले की जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं । सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह सारे सबूतों के साथ उपस्थित हो। अदालत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पुलिस कमिश्नर सबूतों को बर्बाद कर रहे हैं।
समस्त घटनाक्रम में सबसे प्रमुख इसकी टाइमिंग है एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह राज्य में मीटिंग करते चल रहे हैं और विस्फोटक भाषण दे रहे हैं दूसरी तरफ चुनाव के कुछ पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निकटवर्ती अफसरों को लांछित कर इसका राजनीतिक लाभ उठाना मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है। वरना इतने वर्षो से लंबित यह जांच कुछ महीने और रुक सकती थी और आगे भी ऐसी ही संभावना है।
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