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Monday, February 4, 2019

मोदी और राहुल मुकद्दर किसके हाथ में

मोदी और राहुल मुकद्दर किसके हाथ में

चुनाव के मोर्चे लगभग बंध गए हैं लेकिन क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विरोधियों के बीच कोई मध्य स्थल है और है तो किस जगह है? आज क्या यह संभव है कि बिना अपमानित हुए कोई भाजपा को वोट दे या बिना राष्ट्र विरोधी का तमगा पाए कोई कांग्रेस को मतदान करे। जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जा रहे हैं देश में ध्रुवीकरण बढ़ता जा रहा है। नौजवानों में एक प्रश्न तेजी से घूम रहा है कि क्या भारतीय राजनीति   दूसरी तरफ घूम गई है जिधर उदारवादी और परंपरावादी समुदाय रहता है । ऐसा सोचकर हम एक बहुत बड़े परिप्रेक्ष्य को नजरअंदाज कर रहे हैं। आज के नौजवान खुद को मध्यमार्गी मानते हैं । इनमें वो लोग भी शामिल हैं जो 2014 में भाजपा को एक मौका देना चाहते थे। लेकिन जब ऐसा हुआ यानी मौका दे दिया गया तो एक समुदाय या कहें कि दूसरे छोर पर जो लोग थे उन्हें संप्रदायवादी, संघी या भक्त करार दे दिया गया। यद्यपि, उन्होंने तो समस्याओं के समाधान की उम्मीद में ऐसा किया था। नौजवानों का यह समुदाय पूर्ण रूप  अधिनायकवादी  विमर्श से नियंत्रित नहीं हो सकता, ना उसे दक्षिणपंथी अराजकता पसंद है और ना ही आजादी के  नकाब में वामपंथी शोर शराबा।  दक्षिणपंथी विचारधारा व्यक्तिगत आजादी पर अंकुश लगा देती है जबकि वामपंथी विचारधारा इतना प्रोत्साहित करती है कि इससे कुछ हो ही नहीं सकता। नौजवान समुदाय मध्य मार्गी या मध्य पंथी विचारधारा का हिमायती बनता जा रहा है। यानी थोड़ा थोड़ा दोनों तरफ की विचारधाराएं ।
      वैचारिक समूहों से मोहभंग भी एक कारण है जो नौजवानों को दोनों तरफ से विमुख कर रहा है और वे मध्यपंथ को वामपंथी और दक्षिणपंथी धारा के बीच एक प्रभावशाली विंदु मानते हैं । राजनीति विज्ञानी  डेविड एडलर के अनुसार शहरी नौजवान दयावश मध्य मार्ग में आ रहे हैं। अब तक पढ़े लिखे शहरी नौजवानों का भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है यह थोड़ा आश्चर्यजनक होगा यही पढ़े लिखे नौजवान खुद को देश पर होने वाले आधातों को रोकने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। यह मध्य मार्ग उन  नौजवानों को बहुत ज्यादा प्रभावित कर रहा है। खास करके ऐसे लड़के जो ताजातरीन मतदाता बने हैं और इंटरनेट के संपर्क में हैं। क्योंकि इस माध्यम से ज्यादा नौजवान एक दूसरे से या एक बहुत बड़े समुदाय से संपर्क में रहते हैं। ऐसे कई हैं जिनके यूट्यूब पर लाखों दर्शक हैं। किसी खास आदर्श के प्रति सब एकमत नहीं हो सकते और इसीलिए सबको वामपंथी और दक्षिणपंथी में वर्गीकृत भी नहीं किया जा सकता।  आर्थिक तौर पर देखें तो भाजपा और कांग्रेस दोनों समान हैं। दोनों बड़े व्यवसायियों के पक्षधर हैं नेहरू ने समाजवाद को बढ़ावा दिया और यह इंदिरा गांधी के जमाने में खूब फला फूला। भाजपा के कुछ बड़े नेता शुरू में इंदिरा की प्रशंसा करते थे और वे राव की भी प्रशंसा करते थे कि उन्होंने मुक्त बाजार भारत में राह दी। जबकि इन दिनों भाजपा इन नेताओं की तीव्र विरोधी हैं । आज दोनों दल दरबारी पूंजीवाद के समर्थक दिखाई पड़ रहे हैं।
       2014 के लोकसभा चुनाव के बाद एक सर्वे में पाया गया 30 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाताओं के लगभग एक तिहाई मतदाताओं , जिनकी उम्र 18 से 35 वर्ष के बीच थी, ने भाजपा को वोट डाला। आज मोदी जी या के भाजपा का बहुसंख्यक वाद लोगों पर बहुत प्रभाव नहीं डाल पा रहा है। सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज- लोकनीति द्वारा जनवरी 2018 में  किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि भाजपा की लोकप्रियता नौजवानों में घटी है। 5 साल पहले जब नौजवानों में एकमात्र आवाज थी भाजपा। अब 2019 में यह नौजवान भ्रमित हैं। वे खासतौर पर विचारधारा को लेकर भ्रमित हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो मानते हैं कि भाजपा दोबारा सत्ता में आएगी लेकिन शायद उन की सीटें कम हो जाएंगी।
      नौजवानों में ऐसा नहीं कि सभी मामलों में विरोध है लेकिन कुछ मामलों में वह एकमत हैं।  उनका मानना है कि नोटबंदी बहुत असफल रही लेकिन जीएसटी एक महत्वपूर्ण कदम है, शुरू में थोड़ी दिक्कत हो रही है। सब कुछ देखते हुए ऐसा लग रहा है कि जो लोग मोदी के समर्थक हैं वह मध्य पंथी या मध्य वादी हो जाएंगे, वामपंथियों के साथ भी कुछ ऐसा ही होगा, क्योंकि वामपंथ से भी नौजवानों का मोहभंग हो रहा है। कुल मिलाकर या देखा जा सकता है कि इस बार मध्य पंथी जमात ही सरकार का मुकद्दर तय करेगी।

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