आखिर देश में कश्मीरियों पर हमले क्यों
देश के कई हिस्सों में कश्मीरी छात्रों, कश्मीरी शॉल वालों और अन्य कश्मीरी लोगों पर हमलों की खबरें आ रहे हैं । यह खबरें दहशत पैदा करती हैं कि आखिर यह हो क्या रहा है? महाराष्ट्र से लेकर पश्चिम बंगाल तक कई जगहों से कश्मीरियों पर हमले की खबरें आ रहे हैं और इस हालात को लेकर विभिन्न नेताओं में गंभीर चिंता जताई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि यह देश की एकता के लिए खतरनाक है यह एक विभाजन कारी राजनीति है। राष्ट्र प्रेम के नाम पर राष्ट्र के ही निवासियों को हमले का शिकार बनाना सच में कहां तक उचित है? अगर किसी नौजवान कश्मीरी से यह कहा जाता है कि इस देश के अन्य भाग में चल रहे कॉलेजों या बाजारों में उस लिए जगह नहीं है तो यह उनमें भारी गुस्सा पैदा करेगी और संपूर्ण स्थिति जिहाद को ही हवा देगी। पुलवामा हमले के बाद बदले हालात के अंतर्गत कश्मीरी नौजवानों पर देश के कई भागों में हमलों की घटनायें एक तरह से लश्कर ,जैश ए मोहम्मद और आईएसआई के मंसूबों को पूरा करने का मौका दे रही हैं। पश्चिम बंगाल जैसे बहुलतावादी और प्रवासियों के लिए उदार समाज मे भी कश्मीरियों पर हमले आश्चर्यजनक हैं। पूरे देश में यह क्या हो रहा है पता नहीं चल रहा है । कश्मीरी नौजवान वापस लौटने के लिए मजबूर हो रहे हैं। कई कॉलेजों से खबर मिली है कि वहां के शासी निकायों ने भविष्य में कश्मीरी छात्रों का नामांकन नहीं करने का फैसला किया है। देहरादून में कश्मीरी मूल के एक कॉलेज शिक्षक को बर्खास्त कर दिया गया है। राष्ट्रवाद के नाम पर यह सब दक्षिणपंथी राजनीतिक समर्थक अंजाम दे रहे हैं। यह स्पष्ट हो गया कि पुलवामा में जो हमला किया गया था वह पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद की करतूत थी। अब किसी दूसरे के द्वारा किए गए अपराध सजा अपने देश के नौजवानों को क्यों दी जाए? खासकर उन्हें जो अपने राज्य से बाहर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं या फिर तिजारत में लगे हैं। यह बात समझ में आने वाली नहीं है। इन पर हमले आखिर कैसे आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में सहयोगी होंगे या पाकिस्तान पर दबाव बनाएंगे? दक्षिणपंथी युवा संगठनों के नेता कभी भी तार्किक ढंग से किसी चीज पर सोचते हुए नहीं पाएं गए हैं। वे यह बात भी समझ ही नहीं सकते कि जो नौजवान अपना राज्य छोड़ कर दूसरे राज्यों में शिक्षा हासिल कर रहे हैं या व्यापार करके रोजी रोटी कमा रहे हैं वह इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ भारत के प्रयास की सबसे अच्छी उम्मीदों में से एक है । अगर यह कश्मीरी देश के विभिन्न भागों के कॉलेजों में या बाजारों में सम्मान पूर्वक रह सकते हैं काम कर सकते हैं तो यकीनन जिहादी मानसिकता से दूर होते जाएंगे और अपने राज्य में दूसरे नौजवानों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे। यह भी सोचेंगे कि भारत एक ऐसा देश है जिसने उसके लिए बेहतर भविष्य का बंदोबस्त किया जो पाकिस्तान किसी कीमत पर नहीं कर सकता है। दक्षिणपंथी युवा संगठन शायद ऐसा नहीं सोचते। लेकिन कम से कम पार्टी के बड़े नेता जिनके अंतर्गत ये संगठन काम करते हैं वह तो सोच सकते हैं । अभी भाजपा के बड़े नेता अत्यंत मेधावी और सुलझे हुए विचारों के हैं । बेशक वे फिलहाल चुनाव को लेकर उलझे हुए हैं और संभवत इसीलिए संप्रदायिकता को हवा दे रहे हैं । अभी हाल में गुवाहाटी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने खुलकर कहा था वह असम को दूसरा कश्मीर नहीं बनने देंगे। इसका मतलब स्पष्ट है कि वे मुसलमानों को असम में रहने देने के पक्ष में नहीं हैं। भाजपा इसी सांप्रदायिकता चश्में से कश्मीरियों को भी देख रही है।
देश के सभी राजनीतिज्ञ और राजनीतिक संगठन यह बात एक स्वर से बोल रहे हैं कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है । अतएव कश्मीर घाटी में इस्लामी आतंकवाद को हवा देने वाले तत्वों की पहचान कर उन्हें अलग करने के बजाय देश के अन्य भागों में इस कश्मीरियों पर हमले कर अलगाववादी शक्तियों को ताकतवर बनाया जा रहा है। ये हमले देश को यह संदेश दे रहे हैं कश्मीरी गद्दार हैं और देश का मानस यह मान ले । पुलवामा हमले को लेकर देशभर में चल रही राजनीति पाकिस्तान को शर्मिंदा नहीं करेगी वरना आतंकवादियों को बढ़ावा देगी। कश्मीर आजादी के बाद से अब तक हिंसा शिकार होता रहा है। पुलवामा हमला उनसे थोड़ा अलग है। वह कि कश्मीरी नौजवान इस हमले में शामिल थे । यही नहीं कश्मीर में कुछ ऐसा लग रहा है जैसे हवा में जहर घुली हुई है। सेना या पुलिस की गोलियों से शिकार लोगों की अंत्येष्टि से लेकर कलाश्निकोव उठाए 'आजादी आजादी' का नारा लगाने वाले नौजवान भारत विरोधी बन रहे हैं। यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। यह पूरी तरह हमारी समस्या है । अगर कश्मीर हमारा है फिर ऐसा क्यों हो रहा है? हमें इसका उत्तर खोजना ही होगा । यह उत्तर देश के बाकी हिस्सों में कश्मीर के प्रति विचारों में ही निहित है।
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