इस बार का मोदी मंत्र
जाति की प्रवृत्ति,राष्ट्रवाद,मिशन शक्ति जैसी उपलब्धियों और राजनीतिक करिश्मे के प्रचार के शोर से अलग एक ऐसी दुनिया भी है जहां इन उलझाने वाले प्रश्नों के उत्तर तलाशे जा सकते हैं। उन प्रश्नों में यह भी एक प्रश्न है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस समय 2014 के मुकाबले बड़ी लहर की जरूरत है? आमतौर पर यह मान्यता है कि भारत में वोट जाति और भावनाओं के आधार पर दिए जाते हैं। लोकतंत्र में आमतौर पर अगर कोई नेता दोबारा वोट मांगने जाता है तो क्या पूछता है यही ना हमें आपने चुनकर भेजा और हमने अच्छा काम किया या नहीं? आप की हालत में सुधार हुआ या नहीं? लेकिन मोदी जी और उनके पार्टी अध्यक्ष अमित शाह जिस मनोवैज्ञानिक रणनिति का उपयोग कर रहे हैं उससे तो यह लगता है कि वह मतदाताओं से कहते हैं कि आपने मुझे चुन कर भेजा तो क्या आप पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं? इस बीच भावनाओं का ज्वार चलता है, राष्ट्रवाद की बहस चलती है, संसाधनों का विकास दिखाया जाता है और लहर पैदा करने की कोशिश की जाती है ताकि वे फिर चुनकर आ जाएं। मोदी जी लोगों से यह बताना चाहते हैं 26 /11 वाले वक्त में मतदाता खुद को जितना सुरक्षित महसूस कर रहे थे आज क्या उसे ज्यादा सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं। कोई भी नेता अब से पहले कामकाज के लिए वोट मांगता था उसका वादा होता था हम यह करेंगे हम वह करेंगे जैसे हाल में राहुल गांधी ने वादा किया कि अगर सत्ता में आए तो न्यूनतम आय की गारंटी देंगे। लेकिन मोदी जी ने देश के मनोविज्ञान को समझा है और वह विरोधियों के कामकाज के आधार पर वोट मांग रहे हैं। बेशक कोई भी आंकड़ों की बारीक जांच -परख के आधार पर मोदी जी के कार्यकाल में गलतियां निकाल सकता है। लेकिन, यह सच है कि 2014 के बाद कश्मीर को छोड़कर बाकी पूरे देश में कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ। बेशक गुरदासपुर और पठानकोट में हमले हुए लेकिन उन्हें नाकाम करने की कोशिश की गई। इसके अलावा देश में कहीं कुछ नहीं हुआ। यकीनन यूपीए सरकार के पहले दौर में भी सुरक्षा का माहौल बेहतर था। कश्मीर में भी शांति थी, लेकिन कांग्रेस इसका उपयोग नहीं कर पा रही है शायद व इसे भूल गई है । लेकिन मोदी जी राष्ट्रीय सुरक्षा में अपनी कामयाबी को ही प्रचार का मुद्दा बना रहे हैं । वे मनोवैज्ञानिक तौर पर लोगों के भीतर असुरक्षा की भावना को ज्यादा मजबूत कर रहे हैं। परोक्ष रूप से शायद वह कहना चाहते हैं कि अगर हमें नहीं चुना गया तो देश में जैश ए मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और आई एस आई का बोलबाला हो जाएगा। 2014 में मोदी जी ने लोगों के भीतर उम्मीदें जगाई थी। 2019 में वे डर जगा रहे है परोक्ष रूप से यह कहना चाहते हैं कि जो उन्हें वोट नहीं देगा और कांग्रेस को वोट देगा वह पाकिस्तान से मिला हुआ है। इसलिए बार-बार कहते हैं कि आतंकवादी और पाकिस्तानी ही उनकी हार चाहते हैं इसीलिए सर्जिकल हमलों के भी सबूत मांग रहे हैं।
मोदी और शाह की जोड़ी राजनीति को रात दिन का उद्यम, मनोरंजन और जुनून बनाने की कोशिश कर रही है। कोई अगर पिछले 5 साल के कार्यकाल आधार पर चुनाव लड़ता है तो वह खतरनाक काम करता है। क्योंकि, तब लोग उसके कामकाज की जांच करने लगते हैं और आज की वास्तविकताओं के आधार पर परखने लगते हैं । लेकिन उनके भीतर यदि डर जगा दिया जाए तो वे कुछ नहीं बोल पाते । मोदी के भाषणों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि वह पाकिस्तान, आतंकवाद, भ्रष्टाचार विपक्ष और अपने आलोचकों में राष्ट्रवादी भावना के अभाव की बात कर रहे हैं। आप शायद रोजगार, कृषि, संकट इत्यादि की बात उठाएंगे तो बहुत मुश्किलें आएंगी पर यदि आतंकवाद और पाकिस्तान को एक साथ जोड़ दें तो देश के एक समुदाय पर सीधा निशाना लगता है और इससे मुकम्मल डर पैदा हो जाता है। हिंदू बहुल देश में अल्पसंख्यक समुदाय के साथ एक वैचारिक खाई बन गई है। मोदी चुनाव में उसे वे और भी चौड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं ।यद्यपि वे स्पष्ट नहीं बोलते हैं लेकिन उनका संकेत समझिए । वे कहते हैं पाकिस्तानी और आतंकवादी उन्हें पराजित देखना चाहते हैं और विपक्ष भी यही देखना चाहता है । चूंकि विपक्ष का सबसे मजबूत वोट बैंक अल्पसंख्यक समुदाय है इसलिए बार-बार उसकी तरफ इशारा करते हैं कि अगर वह पराजित हुए तो देश में आतंकवादियों पाकिस्तानी और अल्पसंख्यकों का बोलबाला हो जाएगा। मोदी अलीपुरदुआर आते हैं तो कहते हैं कि रिफ्यूजिओं को खदेड़ देंगे । यह सब एक तरह का मनोवैज्ञानिक डर पैदा करने का तरीका है। यह रणनीति कारगर नहीं होगी अगर इसे सीधे भारतीय अल्पसंख्यकों से जोड़ा जाए इसलिए इसे बांग्लादेशियों ,कश्मीरियों इन सब से जोड़ा जा रहा है। इस तरह की रणनीति अपनाने वाले केवल मोदी ही नहीं हैं दुनिया के लगभग सभी लोकतंत्र में ऐसा हो रहा है । अपने समर्थकों को अन्य लोगों से डराया जाता है वह चाहे डोनाल्ड ट्रंप हों या एर्डोगन हों या नेतन्याहू या इनकी तरह अन्य नेता भी हैं जो ऐसा करते हैं। मोदी जी की रणनिति अगर कारगर हो गई तो उनका आधार एकजुट रहेगा और बाकी लोग टुकड़ों में बंट जाएंगे इसलिए उनकी जीत आसान हो जाएगी। मोदी जी को हाल के सर्जिकल स्ट्राइक और मिशन शक्ति से मजबूती मिली है। एक तरफ विभाजित विपक्ष है और दूसरी तरफ मुकाबला अपनी शर्तों पर। अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। इस बार के चुनाव का मोदी मंत्र यही है।