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Friday, August 30, 2019

अचानक सोना इतना महंगा ?

अचानक सोना इतना महंगा ?


सोने की कीमतें छह साल के उच्चतम स्तर 40,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से ऊपर  पहुंच गईं और पंडितों का अनुमान है कि यह  और बढ़ सकती है। अमरीका-चीन टैरिफ वॉर , अनिश्चित तेल बाजार, अनिश्चित वैश्विक बाजार परिदृश्य और मंदी की भयावहता  ने इस सुरक्षित  परिसंपत्ति की कीमतों में वृद्धि  की सभी शर्तों को पूरा किया है। आखिरकार, सोना एक वित्तीय साधन है जो किसी संकट में अपना मूल्य नहीं खोएगा, और इसलिए इसकी कीमतें अशांत समय में बढ़ जाती  हैं।
सोने में तेजी चल रही है और इसका मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से बढ़ता हुआ सोने की कीमत 40,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से अधिक है। यहां बताया गया है कि ब्याज दर, रुपया भारत में सोने के मूल्य को प्रभावित करता है। सोना बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है और इसलिए यदि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है, तो सोने की कीमतें रुपये के संदर्भ में बढ़ेगी।
यह मानना ​​उचित है कि जब भी कीमतों में तेजी से उछाल आता है, तो उपभोक्ता कीमतों में स्थिरता आने तक खरीदारी करने से पीछे हट जाते हैं।
भारत में सोने की कीमत वर्तमान में 40,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से अधिक है। ब्याज दर दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़ने और वैश्विक संकट के बीच विशेष रूप से ऐसे समय में जब रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है, भारत में सोने की कीमत तब तक बढ़ सकती है जब तक कि कारक इसे   प्रभावित  करते रहेंगे। पिछले 2 वर्षों में, प्रति ग्राम सोने की कीमत ने 14 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर और पिछले 10 वर्षों में यह लगभग 9.5 प्रतिशत रहा है। आमतौर पर, सोने की कीमतें लंबे समय तक घटती- बढ़ती  रहती हैं और फिर लघु-से-मध्यम अवधि में अस्थिरता दिखाती हैं। सोने की खरीद के कारण यह हैं कि यह संकट के वक्त काम आता है। सोने में इस तरह का जोखिम आदर्श रूप से गोल्ड ईटीएफ (एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड) या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के माध्यम से होना चाहिए क्योंकि वे सोने में निवेश के कागज-रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। सिक्के, आभूषण या सोने की छड़ के रूप में भौतिक सोने को खरीदने की तुलना में कागजी सोना अधिक महंगा है।
लेकिन, अगर हम सोने के मूल्य चार्ट को देखें, तो पता चलता है कि सोने की कीमत पहले ही काफी बढ़ चुकी है।  सोने की कीमतें निर्धारित करती हैं कि निवेशकों को अब क्या करना चाहिए? ये कुछ सवाल हैं जिसका उत्तर ज्यादातर लोग सोने में निवेश  के समय चाहते हैं। । सोने की कीमतें मौजूदा  1,528.10 के निशान से 1,950 डॉलर प्रति औंस के स्तर के पार भी जा सकती हैं। "सोने की कीमतें संकेत दे रही हैं कि वैश्विक चिंताएं अभी भी बरकरार हैं। यह चिंता पिछले 2-3 वर्षों से शुरू हुई है। अब यह बढ़ रही है। सोना , वास्तव में, 2019 में सबसे अच्छा निवेश साबित हो रहा है।  यहाँ पाँच कारण हैं कि सोना अचानक इतना महंगा क्यों है: अमरीका-चीन व्यापार युद्ध पर मिश्रित संकेत, टैरिफ वॉर पर अमरीका द्वारा भेजे जा रहे मिश्रित संकेतों से ही निवेशकों की चिंता बढ़ रही है, जिससे सोने की मांग में और इजाफा हो रहा है। दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच रस्साकशी ने पिछले हफ्ते उस   नाटकीय मोड़ ले लिया जब अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने चीन के 75 अरब डॉलर मूल्य के प्रतिशोधी टैरिफ का खुलासा करने के कुछ ही  घंटों बाद, लक्षित चीनी सामानों के 550 मिलियन डॉलर पर अतिरिक्त शुल्क की घोषणा की।
फिर  चालू हफ्ते की शुरुआत में अमरीका ने  चीन के साथ एक व्यापार समझौते की संभावना को हरी झंडी दिखाई। उन्होंने कहा कि वह मानते हैं कि बीजिंग में  समझौते के लिए   इच्छा थी और इसमें वह ईमानदार था। "  राष्ट्रपति शी और उनके प्रतिनिधि शान्ति   चाहते हैं और उनमें इसके लिए संकल्प भी है। " उन्होंने कहा, "बातचीत जारी है"।
इसी तरह के एक मामले में, वाशिंगटन के साथ वार्ता का नेतृत्व करने वाले चीनी उप राष्ट्रपति लियू हे ने 26 अगस्त को कहा कि चीन ने व्यापार तनाव में किसी भी वृद्धि का विरोध किया।
हालांकि, पिछले हफ्ते ही, अमरीकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने चीन से हांगकांग के कानूनों की अखंडता का सम्मान करने का आग्रह किया था और चेतावनी दी थी कि अगर पूर्व ब्रिटिश क्षेत्र में हिंसा हुई, तो वाशिंगटन के लिए बीजिंग के साथ व्यापार समझौता करना कठिन होगा।  अब  विशेषज्ञों का मानना  है कि सोना जल्दी ही गिरने लगेगा।
इसके अलावा, चीनी युआन में कमजोरी यह संकेत देती है कि व्यापार युद्ध खत्म हो गए हैं। चीन ने  टैरिफ के प्रभाव को ऑफसेट करने के लिए नीति उपकरण के रूप में अवमूल्यन का उपयोग किया है। पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने एक दशक में पहली बार अपनी मुद्रा को 7 डॉलर  से  कमजोर होने दिया है।
वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण वर्ष 2019 के लिए कमजोर है। क्योंकि 2019 में विश्व आर्थिक दृष्टिकोण रिपोर्ट  के अनुसार 2019 में दुनिया के 3.2 प्रतिशत और 2020 में 3.5 प्रतिशत कीमत बढ़ने की उम्मीद है। अप्रैल डब्लयू ई ओ के  अनुमानों के बाद से, इन दोनों अंकों  में 0.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसके अलावा, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, सिंगापुर और ब्राजील सहित दुनिया भर की नौ प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं पहले से ही मंदी की कगार पर हैं।  अटकलें लगाई जा रही हैं कि अमरीका के जल्द ही चलने की संभावना है।
घर में आर्थिक मंदी एक महत्वपूर्ण कारक भी है। कमजोर मानसून और वैश्विक वृद्धि में गिरावट को रेखांकित  करते हुए क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने इस वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के विकास के अनुमान को घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया है। पहली तिमाही के  जीडीपी आंकड़ों को भी भारत के विकास के अनुमान को कम करने के लिए ध्यान में रखा गया था। दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष  ने कैलेंडर वर्ष 2019 और 2020 के लिए भारत के विकास में क्रमश: 30 आधार अंकों की कटौती की और क्रमशः 7 प्रतिशत और 7.2 प्रतिशत कर दिया।
एशियाई बाजारों ने निवेशकों की उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया है। निवेशकों द्वारा सुरक्षित निवेश के रास्ते तलाशने के दौरान प्रमुख एक्सचेंजों ने पूरे एशिया में हाय तौबा मचा दी।  एशियाई बाजारों में हफ्ते के आरंभ में   1.6 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई और हांगकांग का हैंग सेंग 2.9 प्रतिशत नीचे बंद हुआ।  बीएसई और एनएसई क्रमशः 1.13 प्रतिशत और 1.23 प्रतिशत से नीचे गिर गए। एशियाई देशों के बाजारों में वॉल स्ट्रीट की व्यापार तनाव की प्रतिक्रिया के बाद उथल-पुथल का माहौल था। सोने का मूल्य बढ़ने का मुख्य कारण है कि  ब्याज दर भारत में सोने के मूल्य को प्रभावित करता है। सोना बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है और  यदि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है, तो सोने की कीमतें रुपये के संदर्भ में बढ़ेगी।
जब भी कीमतों में तेजी  आती है तो उपभोक्ता कीमतों में स्थिरता आने तक खरीदारी करने से पीछे हट जाते हैं। भारत में सोने की कीमत वर्तमान में 40,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से अधिक है। ब्याज दर   बढ़ने और वैश्विक संकट के बीच, विशेष रूप से ऐसे समय में जब रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है, भारत में सोने की कीमत तब तक बढ़ सकती है जब तक कि  वृद्धि के कारक   परिवर्तन को प्रभावित नहीं करते। पिछले 2 वर्षों में, प्रति ग्राम सोने की कीमत में 14 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर और उसके पहले के 10 वर्षों में लगभग 9.5 प्रतिशत हुई है। आमतौर पर, सोने की कीमतें लंबे समय तक सपाट रहती हैं और फिर लघु-से-मध्यम अवधि में अस्थिरता दिखाती हैं। अधिकांश वित्त विशेषज्ञों   का सुझाव है कि सोने में  इस तरह का जोखिम आदर्श रूप से गोल्ड ईटीएफ (एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड) या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के माध्यम से होना चाहिए क्योंकि वे सोने में निवेश के कागज-रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। सिक्के, आभूषण या सोने की छड़ के रूप में भौतिक सोने को खरीदने की तुलना में कागजी सोना अधिक महंगा है।
लेकिन, अगर हम सोने के मूल्य चार्ट को देखें, तो पता चलता है कि सोने की कीमत पहले ही काफी बढ़ चुकी है। अब सवाल है कि क्या भारत में सोने की कीमत अंतरराष्ट्रीय कीमतों के साथ मिलकर चलती हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि निवेशकों को अब क्या करना चाहिए? ये कुछ  सवाल हैं, जो कि ज्यादातर लोग सोने में निवेश करने के लिए जानना चाह रहे हैं। यहां जरूरी है कि खरीदारी से पहले बेहतर जानकारी हासिल कर लें। यह निर्णय लेने में मदद करती है।

Thursday, August 29, 2019

चुप रहने में ही पाकिस्तान की भलाई

चुप रहने में ही पाकिस्तान की भलाई

कश्मीर मामले पर पाकिस्तान की सारी उम्मीदें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता पर निर्भर थीं पर फ्रांस में जी 7 की बैठक के हाशिए पर मोदी और अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात से यह स्पष्ट हो गया के पश्चिमी देश इस मामले में कोई मध्यस्थता नहीं करने वाले और इसी के साथ पाकिस्तान की उम्मीद खत्म हो गई के 1948 के संकल्प के मुताबिक वह कश्मीर में जनमत संग्रह के अपने मंसूबे को कामयाब कर लेगा। पश्चिमी देश और भारत की जिहाद के प्रति असहिष्णुता से यह भी साफ हो गया कि अगर वह अपना रवैया नहीं बदलता है तो उसका बचा रहना दूभर हो जाएगा। जहां तक कश्मीर का मामला है सभी पक्षों  को खुश करने  के लिए  शुरू से ही  कई लोगों ने  अथक परिश्रम किए लेकिन ऐसा नहीं हुआ जो दिखाई पड़े । आज कश्मीर में शांति  का पथ प्रशस्त करने में उन सभी आत्माओं का योगदान कहा जाएगा। इनमें अलेक्सेई कोसिगिन , लाल बहादुर शास्त्री, भुट्टो, इंदिरा गांधी , जियाउल हक, राजीव गांधी, मुशर्रफ, अटल बिहारी वाजपेई तथा मनमोहन सिंह सब ने प्रयास किए पर असफल हो गए । किसी युद्ध के बाद शांति का प्रयास सरल है क्योंकि ऐसे में मामूली ही सही विनाश एक उदाहरण रहता है । लेकिन राजनीतिक मतभेद से जुड़े किसी विद्रोह के बाद ऐसा करना जरा कठिन है । यही कारण है कि कश्मीर में शांति के अतीत के सभी प्रयास असफल हो गए। क्योंकि यहां शक्ति और विनाश के तत्व गैरहाजिर थे। इन सभी प्रयासों में क्रमिक रूप से अमरीकी प्रशासन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अमरीकी प्रशासन के प्रमुखों में खासकर बुश सीनियर से लेकर ट्रंप तक की भूमिका सराहनीय रही। अमरीका ने 1987 से गंभीरता से कश्मीर में शांति का प्रयास आरंभ किया। यह वह वक्त था जब अमरीका अफगानिस्तान में अपना कारोबार बंद करके लौटना चाहता था और साथ ही जिहाद जैसे कार्यों के लिए पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आई एस आई को भी  मदद  बंद कर देना चाहता था। अमरीका  जिहाद के नाम पर अफगानिस्तान में सोवियत संघ से लड़ाई के लिए धन और हथियार भेजा करता था वह धन और हथियार कश्मीर पहुंच जाता था।  इसके बाद जब पाकिस्तान ने जब परमाणु बम बना लिया तो उसकी हेकड़ी और बढ़ गई। यह अमरीका के लिए भी रणनीतिक सिर दर्द बनने लगा ,हालांकि अमरीका पाकिस्तान की आईएसआई और मुजाहिदीन  से पल्ला झाड़ कर धीरे धीरे अफगानिस्तान से निकलने का प्रयास कर रहा था ।  यहीं एक गलती हो गई। यदि उसने जिहाद परियोजनाओं को पूरी तरह बंद करवा दिया  होता तो शायद वह 11 सितंबर या 9/11 की घटना नहीं हुई होती और ना ही कश्मीर में आतंकवाद होता। यह अफगानिस्तान में जिहाद खत्म होने के बाद आरंभ हुआ। जब आतंकवाद आरंभ हो ही गया तो वही पुराना खेल भी चालू हो गया। फिर किसी न किसी मोड़ पर पैसा और हथियार लेकर  उसे कश्मीर भेज दिए अमरीका एक तरह से ऊबने लगा था। इसी बीच 1998 का परमाणु परीक्षण हुआ और पूरे मामले में एक नया अध्याय जुड़ गया ।  पाकिस्तान ने अपने परमाणु भंडार जिहादियों को सौंपना आरंभ कर दिया।  अब इसमें चारों तरफ खतरे की घंटी बजानी और जरूरी हो गया कि जिहाद के उन कार्यक्रमों को बंद किया जाए कारगिल युद्ध के बाद यह तो एक तरह से इमरजेंसी की तरह हो गया। अमरीका भारत और पाकिस्तान के बीच अमन चाहता था क्योंकि दोनों परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं और कभी भी एक मामूली सी गलत भी बहुत बड़ा विनाश का कारण बन सकती है। यही नहीं जियोपोलिटिकल नजरिए से देखें तो अमरीका बीजिंग और तेहरान के बरअक्स इस मामले को देख रहा था। चीन पाकिस्तान से पश्चिमी प्रभाव हटाने के लिए उसकी मदद कर रहा था । उधर तेहरान गल्फ क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने में लगा था। इस नई स्थिति में शांति और जरूरी हो गई।
        प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ नियंत्रण रेखा  को अंतरराष्ट्रीय सीमा में तब्दील करने और घाटी से    फौज की तैनाती  खत्म करने के लिए तैयार हो गए थे लेकिन  2008  के मुंबई हमले को अंजाम देकर आईएसआई ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया। पाकिस्तानी सेना धीरे-धीरे रेडिकल होती गयी और उसके एक बड़े हिस्से को भारत से शांति पसंद नहीं थी । वह हिस्सा मुशर्रफ के खिलाफ होता गया मुंबई हमले में यह साबित कर दिया कि अमरीका को जिसका डर था वही हुआ। इससे उसने एक सबक सीखा कि आई एस आई पर भरोसा करना व्यर्थ है।
  अब सवाल है कि 2008 के बाद क्या बदला कि मोदी जी के भीतर आत्मविश्वास जगा और उन्होंने इतना बड़ा कदम उठाया । खास करके पाकिस्तानी जिहाद अभी भी परमाणु छतरी के नीचे ऐंठा है ।
   इसके लिए तीन तत्व या कहें तीन कारण दिख रहे हैं। पहला कि पाकिस्तान भयंकर कंगाली से गुजर रहा है और अमरीका ने हाथ खींच लिया है । इससे उसका सुरक्षा खर्च कम हो गया। अब ऐसी स्थिति में साल दर साल यह सब जारी रखना नामुमकिन हो गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष विश्व बैंक और वित्तीय कार्यबल ने साफ चेतावनी दे दी कि अगर आतंकवाद कायम रहेगा तो भविष्य के लिए पैसा नहीं मिल सकता है । दूसरा कारण था रेडिकलाइजेशन के बाद पाकिस्तानी सेना और वहां की जनता पेशेवर नहीं बन सकी। देेेश के  भीतर तरह-तरह की चुनौतियां उभरने लगीं। तीसरा कारण  था पाक से ऊब चुके थे। पाकिस्तान ने यह समझ लिया था और यही कारण था कि उसने चीन और सऊदी अरब का पल्ला पकड़ लिया । लेकिन उधर चीन की भविष्य की चुनौतियां पाकिस्तान से ज्यादा जरूरी थी।
         अब भविष्य में क्या होगा यह इस बात पर  निर्भर है कि पाकिस्तान  कितनी जल्दी एक सामान्य और स्वीकार्य देश बन जाता है।

Wednesday, August 28, 2019

रिजर्व बैंक के कदम के बाद राजनीति गरमाई

रिजर्व बैंक के कदम के बाद राजनीति गरमाई

वित्त मंत्री  निर्मला सीतारमण ने  गिरती अर्थव्यवस्था को  संभालने के लिए  हाल में   कुछ ऐलान किए थे तो उस समय  सब का सवाल था  की  इसके लिए  पैसा कहां से आएगा? विशेषज्ञों का मानना था  कि  नगदी की कमी के कारण  देश मंदी की ओर जा रहा है और अगर  सरकार को  अपने वादे  पूरे करने हैं  तो उसे पैसे का प्रबंध करना पड़ेगा। इसी प्रबंध के नाम पर रिजर्व बैंक से सरकार ने रुपए मांगे और इसके लिए कई आर्थिक कदम उठाए गए। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सरकार को एक लाख 76 हजार करोड़ का सरप्लस ट्रांसफर करने का फैसला किया है। आरबीआई की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि केंद्रीय बोर्ड की बैठक में स्वीकार किए गए  रिवाइज्ड इकोनामिक कैपिटल फ्रेमवर्क के मुताबिक अतिरिक्त ट्रांसफर में साल 2018- 19 का 1 लाख 23 हजार 414 करोड़ रुपए सरप्लस और 52 हजार 637 करोड़ रुपए अतिरिक्त प्रावधानों से आया पैसा शामिल है । अब तक सरकार को रिजर्व बैंक की ओर से लाभांश के तौर पर 60-65 हजार करोड़ रुपए दिए जाते थे इससे अब बढ़ाकर 23 लाख हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है। एक तरह से यह दुगनी वृद्धि है । बैंक की विज्ञप्ति में कहा गया है के पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में गठित  कमेटी की सिफारिश पर रिजर्व बैंक ने यह फैसला किया है । आरबीआई सेंट्रल बोर्ड ने कमेटी की सभी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में 6 सदस्य कमेटी का गठन इस उद्देश्य से किया गया था कि वह इस बात का आकलन करे कि बैंक कितनी रकम सरकार को दे सकती है और कितनी रकम अपने पास रख सकती है। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच  मतभेद हो चुके हैं। इसी मतभेद के कारण गवर्नर उर्जित पटेल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। दिसंबर 2018 में गतिरोध के बाद रिजर्व बैंक के कैपिटल फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिए बैंक और सरकार ने मिलकर कमेटी का गठन किया और इसका अध्यक्ष पूर्व गवर्नर बिमल जालान को बनाया गया।
       रिज़र्व बैंक से मिले इस धन से सरकार को मौद्रिक घाटा कम करने में आसानी होगी। सरकार ने चालू बजट में लाभांश और रिजर्व कैपिटल के तौर पर सिर्फ 90 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया था लेकिन अब आरबीआई को इस साल 58 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होंगे। अब तक आरबीआई अपनी आरक्षित पूंजी का 12 प्रतिशत ही अपने पास रखती थी अब उससे कहा गया है कि वह 5.30 से 6.30 प्रतिशत के बीच ही पूंजी रखे। कमेटी की सिफारिश के बाद बैंक ने सुलझाए गए 5:30 से 6:30 प्रतिशत का निचला हिस्सा पकड़ा आरबीआई को अगर अपनी स्वायत्तता दिखानी होती या बैलेंस शीट की ज्यादा चिंता होती है तो वह यह साढे 6 प्रतिशत रखती। ऐसा करने से सरकार को थोड़े कम पैसे हासिल होते। मौजूदा हालात में सरकार को पैसों की बहुत जरूरत थी और ऐसे में आरबीआई के फैसले  से उसे बहुत बड़ी राहत मिली है। सरकार के हाथ में कुछ पैसे आ गए हैं । आरबीआई के इस फैसले के बाद कहा जा सकता है कि बैंक और केंद्र सरकार के बीच मतभेद खत्म हो गए हैं ।लेकिन एक सवाल ये भी है कि क्या आरबीआई पहले की तरह स्वायत्त है?
         आरबीआई के इस ऐलान के बाद विपक्षी राजनीति गरमा गई है। विपक्षी नेता खासकर कांग्रेस के नेता तरह-तरह  के बयान दे रहे हैं । जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि "उर्जित पटेल और विरल आचार्य डटे हुए थे तो उन्हें जाने पर मजबूर कर दिया गया। तब आरबीआई के किले में सेंध लगी थी और अब किला ही ध्वस्त हो गया। रिजर्व बैंक अपने ही फलसफे के खिलाफ चला गया। सरकार को कुछ फंड मिला लेकिन किस कीमत पर?"
       कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि" प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के पास उनके खुद के द्वारा गढ़े गए आर्थिक संकट का अब कोई समाधान नहीं दिख रहा है। आरबीआई से चोरी करने से काम नहीं चलेगा। यह डिस्पेंसरी से बैंड ऐड खरीद कर गोली लगने का उपचार करने जैसा है।" कांग्रेस के मीडिया प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस कदम को राजकोषीय आत्महत्या बताया।          राहुल गांधी के चोरी करने के आरोप का जवाब देते हुए वित्त मंत्री से निर्मला सीतारमण ने कहा कि उन्हें ऐसे आरोपों की परवाह नहीं है। राहुल गांधी को इस तरह के आरोप लगाने से पहले अपनी पार्टी के वित्त मंत्रियों से बात करनी चाहिए थी। वित्त मंत्री ने कहा कि रिजर्व बैंक कमेटी पर उंगली उठाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस को आरबीआई की छवि पर कीचड़ नहीं उछालना चाहिए । राहुल गांधी को ऐसे आरोप लगाने से पहले सोचना चाहिए। जब भी उन्होंने आरोप लगाए हैं खासकर के चोर चोरी आदि तो जनता ने उन्हें करारा जवाब दिया है। बार-बार वैसे ही शब्दों का इस्तेमाल क्या जरूरी है?
    

Tuesday, August 27, 2019

वैश्विक कूटनीति  में पाकिस्तान की करारी हार

वैश्विक कूटनीति  में पाकिस्तान की करारी हार

अमरीका और अन्य पश्चिमी देशों के बल पर कश्मीर के मामले को उलझाते पाकिस्तान को उस समय करारी कूटनीतिक हार मिली जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिआरिट्ज़ में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से स्पष्ट शब्दों में कह दिया की कश्मीर का मसला भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला है और इसमें किसी तीसरे पक्ष को मध्यस्थता करने की जरूरत नहीं है। ट्रंप ने भी कहा कि "उन्होंने और मोदी ने रविवार की रात कश्मीर के बारे में काफी विचार विमर्श किया और उन्हें लगता है कि भारत और पाक इसका समाधान कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वास्तव में यह लगता है कि  स्थिति नियंत्रण में है वह कुछ ऐसा करेंगे जो काफी अच्छा होगा।" ट्रंप ने कहा कि नरेंद्र मोदी और इमरान खान दोनों से उनके अच्छे रिश्ते हैं । वे समझते हैं कि मोदी और इमरान खान मिलकर खुद ही मुद्दे का समाधान कर सकते हैं। ट्रंप ने कहा हम व्यापार के बारे में बातें कर रहे हैं हम सैन्य और दूसरी चीजों पर बातें कर रहे हैं । हमारे बीच हुई शानदार चर्चा में मैंने भारत को जाना।
      बाद में विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा कि दोनों नेताओं के बीच 40 मिनट तक वार्ता हुई,  जो अत्यंत उत्साहवर्धक थी तथा सकारात्मक थी। किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर वार्ता के दौरान डोनाल्ड ट्रंप की बॉडी लैंग्वेज पहली बार इतनी प्रफुल्ल थी कि वार्ता का कोई कूटनीतिक मतलब निकालने का सवाल ही नहीं उठता। दोनों विश्व नेता जी 7 सम्मेलन के दौरान मिले थे।
       उधर कश्मीर मामले में एक के बाद एक पराजय मिलने से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान पहले से ही बौखलाए हुए हैं। मोदी ट्रंप की मुलाकात के बाद यह बौखलाहट और बढ़ गई है। इस मुलाकात के बाद इमरान खान ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि हम भारत के खिलाफ कार्रवाई को समझ पाएं तब तक उन्होंने कश्मीर को अपना हिस्सा बना लिया। राष्ट्र संघ में पराजय का औचित्य बताते हुए इमरान खान ने कहा कि राष्ट्र संघ की यह जिम्मेदारी है कि वह कमजोर के साथ खड़ा हो लेकिन वह हमेशा ताकतवर का साथ देता है। उन्होंने एक तरह से धमकी देते हुए कहा कि दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं और अगर जंग होती है तो दोनों देशों के साथ पूरी दुनिया तबाह हो जाएगी। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारी फौज पीओके में तैयार है और हम किसी भी हद तक जाएंगे। इमरान खान ने अपने देशवासियों को बताया कि भारत ने बालाकोट की तरह पीओके पर भी हमले का प्लान बनाया था, लेकिन हमारी फौज पीओके में पूरी तरह तैयार है और भारत के लिए कोई भी करवाई मुश्किल है। इमरान खान ने कहा कि हमने भारत से बात की लेकिन उन्होंने पूरी कोशिश की कि पाकिस्तान को दीवालिया बना दिया जाए। उन्होंने पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट कराने की कोशिश की अब यह देखना है कि भारत आगे क्या करता है। इमरान खान ने कहा कि कुछ मुस्लिम राष्ट्र आज आर्थिक और अन्य कारणों से हमारे साथ नहीं हैं लेकिन आने वाले दिनों में वह हमारे साथ होंगे। 27 सितंबर को न्यूयॉर्क में राष्ट्र संघ में पूरी दुनिया को कश्मीर के बारे में बताने की बात कह रहे थे। उन्होंने कहा कि हम दुनिया के हर मोड़ पर यह चर्चा उठाएंगे कि अस्सी लाख कश्मीरियों के साथ क्या जुल्म हो रहा है। उन्होंने घोषणा की की आने वाले शुक्रवार से 27 सितंबर तक 12:00 बजे से आधे घंटे तक हर हफ्ते एक कार्यक्रम होगा, जिसमें  पाकिस्तान की पूरी जनता निकलेगी। जब तक कश्मीर को आजादी नहीं मिलेगी हम उनके साथ खड़े हैं।
         कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद भारत और पाकिस्तान में तनाव बढ़ गया और पाकिस्तान तीखी प्रतिक्रिया देने लगा। भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह स्पष्ट बता दिया कि कश्मीर का मसला दोनों देशों का आपसी मसला है। उन्होंने कहा कि हम दुनिया के किसी भी देश को इस मामले में मदद के लिए कष्ट नहीं देंगे और मुझे विश्वास है भारत और पाकिस्तान जो 1947 के पहले एक ही थे हम मिलजुल कर अपनी समस्याओं पर चर्चा भी कर सकते हैं और उनका समाधान भी। मोदी के इस बयान के साथ यह स्पष्ट हो गया कि मामला अब अंतरराष्ट्रीय फोरम में नहीं जाने वाला और जो कुछ भी होगा उसका हल यहीं निकलेगा और भारत-पाकिस्तान मिलकर ही निकालेंगे। वैसे मोदी का यह बयान कूटनीतिक रूप में काफी महत्वपूर्ण है और इससे गंभीर संदेश जाते हैं। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से डोनाल्ड ट्रंप कश्मीर के मसले मैं भारत पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश करते आए हैं लेकिन यह पहला मौका था जब अमरीकी राष्ट्रपति की मौजूदगी में भारत के प्रधानमंत्री ने साफ शब्दों में कहा कि कश्मीर मसले में अमरीका समेत किसी भी देश को दखल देने की जरूरत  नहीं है। मोदी के इस बयान के बाद ट्रंप का बयान भी काफी महत्त्व रखता है क्योंकि  उन्होंने अपनी मध्यस्थता की बात नहीं दोहराई। ऐसी स्थिति में जियोपोलिटिकल तकाजा यह है कि पाकिस्तान अब दुनिया भर में जाकर गिड़गिड़ाना बंद करे ,परमाणु हथियार और फौज की गीदड़ भभकी दिखाना बंद कर दे तथा भारत के साथ बैठकर बातचीत कर एक रास्ता निकाले, यकीनन रास्ता कश्मीर के पुराने हालात से होकर ना गुजरता हो। उसका भला इसी में है।

Monday, August 26, 2019

जल्दी ही भारत में उपद्रव की आशंका

जल्दी ही भारत में उपद्रव की आशंका

कश्मीर का बदला लेने के लिए आई एस आई ने शुरू की मोर्चाबंदी, चीन का सहयोग
नकली समझौते के बल पर पीओके पर पाकिस्तान का शासन
हरिराम पांडेय
कोलकाता: कश्मीर में नई स्थिति के बाद पाकिस्तानी सेना ने कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई को भारत में अशांति फैलाने के लिए फिर से जिम्मेदारी दी है और चीन उसकी मदद कर रहा है। यहां कूटनीतिक सूत्रों के मुताबिक सोमवार को ढाका के गुलशन क्षेत्र में आई एस आई के कुछ अफसरों के साथ जेएमबी के नेताओं की लंबी बैठक हुई। इसमें कुछ चीनी भी उपस्थित थे। सूत्रों के मुताबिक ये चीनी फौज की खुफिया इकाई के अफसर थे।  भूटान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के बाद चीन के घटते वर्चस्व के कारण बीजिंग में बौखलाहट है और उधर बार-बार हमारी सरकार पीओके की बात कह रही है ।आशंका है कि इस बार यह केवल जुमलेबाजी नहीं है बल्कि इसमें गंभीरता भी है। एक विदेशी राजनयिक ने सन्मार्ग को बताया  कि पाकिस्तान के खिलाफ अधिकृत कश्मीर और गिलगित- बाल्टिस्तान में भी धीरे-धीरे गुस्सा पनप रहा है। उपरोक्त राजनयिक ने एक कश्मीरी कार्यकर्ता के बारे में बताते हुए कहा कि उस कार्यकर्ता के अनुसार जिस समझौते के तहत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित - बाल्टिस्तान में  शासन कर रहा है वह समझौता ही नकली है। अभी हाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की कश्मीर यात्रा के दौरान कथित रूप से उन्हें यह बात पता चली है और उसी के आधार पर बार-बार गृह मंत्री अमित शाह तथा सुरक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पाक अधिकृत कश्मीर की बात कर रहे हैं। चीन को भी इससे थोड़ी शंका होने लगी है।
         सूत्रों के मुताबिक लगभग 59 वर्ष पहले यह गुप्त समझौता हुआ था और विदेशों में छुपे अधिकृत कश्मीर एवं गिलगित बाल्टिस्तान के नेता इसे पाकिस्तान की गद्दारी कह रहे हैं । इस समझौते के बल पर पाकिस्तान पीओके पर अपना अधिकार जमाए बैठा है। उस समझौते पर कथित रूप में  पीओके के संस्थापक राष्ट्रपति सरदार इब्राहिम खान, जम्मू कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के प्रमुख चौधरी गुलाम अब्बास तथा पाकिस्तान सरकार के प्रतिनिधि मुस्ताक गुरनामी  के हस्ताक्षर हैं।  लेकिन  गुलाम अब्बास  और इब्राहिम खान  के हस्ताक्षर  नकली बताए जाते हैं । पाकिस्तान ने इसी फर्जी समझौते के बल पर छल पूर्वक क्षेत्र पर कब्जा किया हुआ है। यह समझौता  कथित रूप से  28 अप्रैल 1949 को  पाकिस्तान  तथा  सरदार इब्राहिम  के बीच हुआ था। उपरोक्त राजनयिक के अनुसार संयुक्त कश्मीर पीपल्स नेशनल पार्टी के प्रवक्ता नासिर अजीज खान ने यह जानकारी दी है।  यह जानकारी किसी माध्यम से श्री अजीत डोभाल को भी प्राप्त हो गई है। नासिर खान और शौकत कश्मीरी आई एस आई के भय से विदेशों में छिपे हैं । उपरोक्त राजनयिक के मुताबिक चीनी कंपनियां इस्लामाबाद की शह पर गिलगित बाल्टिस्तान की सोने की खानों को लूट रहीं हैं । इसका विरोध करने वालों को आई एस आई अपहृत कर लेती है तथा उन्हें उत्पीड़ित करती है। जब से भारत के तरफ वाले कश्मीर से धारा 370 हटी है और उपरोक्त समझौते की पोल खुली है तो वहां आंदोलन शुरू हो गए हैं। इसी आंदोलन से भयभीत है पाकिस्तान की सरकार । भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर उपरोक्त राजनयिक ने बताया कि नासिर खान का मानना है कि पाकिस्तानी फौज को गुपचुप ढंग से पश्चिमी सीमा से पूर्वी सीमा की ओर भेजा जा रहा है। यह सीमा पीओके के नजदीक है। पीओके के नेताओं का मानना है की जल्दी ही यहां खूनी जंग आरंभ होने वाली है और आई एस आई यहां आतंक फैला सकती है। सूत्रों के मुताबिक आईएसआई ने नासिर खान का 1994 और 1998 में दो बार अपहरण किया और बाद में अमरीका के  हस्तक्षेप से उसे अफगानिस्तान की सीमा के पास मुक्त किया गया । इसी के बाद उसे देश छोड़ना पड़ा
        सूत्रों के मुताबिक नासिर खान और शौकत कश्मीरी राष्ट्र संघ में पीओके और गिलगित बाल्टिस्तान के लिए समर्थन का बंदोबस्त करने में लगे हैं ताकि आई एस आई का पर्दाफाश किया जा सके। बात दब जाए इसलिए पाकिस्तान आई एस आई के माध्यम से भारत में उपद्रव फैलाने की कोशिश में लगा है । जैसी  खबर मिल रही है उससे तो लगता है की एक बार फिर कश्मीर के दोनों क्षेत्र भयानक संकट में पड़ जाएंगे साथ ही भारत में भी कई जगहों पर  उपद्रव हो सकता है। क्योंकि जेएमबी का बंगाल और उसके आसपास के क्षेत्रों में पुराना अड्डा है इसलिए आई एस आई ने जेएमबी का उपयोग करने का फैसला किया है। खुफिया सूत्रों में चर्चा है कि कहीं इस सारे उपद्रव की शुरुआत बंगाल से ही ना हो और फिर वह आग की तरह देशभर में फैलने लगे।

पर्यावरण शुद्धि की ओर पहला कदम

पर्यावरण शुद्धि की ओर पहला कदम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने कार्यक्रम मन की बात में कहा कि अगले 2 अक्टूबर से प्लास्टिक के प्रयोग के खिलाफ जन आंदोलन आरंभ करें । मोदी जी ने 2 अक्टूबर की तारीख इसलिए रखी है उस दिन महात्मा गांधी के जन्म की 150 वीं जयंती आरंभ हो रही है और महात्मा गांधी भारत की और इसकी जनता की प्रगति के लिए स्वच्छता पर बहुत विश्वास करते थे। मन की बात कार्यक्रम में मोदी जी ने कहा कि हम महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाएंगे हम केवल खुले में शौच से मुक्त भारत के प्रति प्रतिबद्धता ही नहीं व्यक्त करेंगे बल्कि उसी दिन से भारत को प्लास्टिक मुक्त बनाने का आंदोलन भी आरंभ करेंगे। इस बार हमारा जोर प्लास्टिक पर होगा। 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से हमने लोगों से अनुरोध किया कि  एक सौ 25 करोड़ जनता अगर इससे जुड़ जाए तो यह काम पूरा हो सकता है। उन्होंने कहा कि  स्वच्छता के इस विशाल अभियान में जनता को पूरी ताकत और उत्साह से जुड़ जाना चाहिए। प्रधान मंत्री ने देश में कुपोषण के मसले को भी रेखांकित किया और कहा कि सितंबर का महीना देशभर में "पोषण अभियान" के रूप में मनाया जाएगा।
       यहां यह गौर करने लायक है कि आजादी के बाद से ही हमारे देश के नेताओं का विश्वास रहा है कि वह दुनिया को नैतिक नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं और इसकी उनमें अनोखी क्षमता है। जब भारत गणराज्य बना था तो उस समय उसके पास धन नहीं था लेकिन भारत के नीति निर्माताओं ने कूटनीति में भारत के नैतिक और प्रतीकात्मक नेतृत्व पर जोर दिया। जब भारत साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ रहा था उसी समय वह एक बड़ी आवाज बन गया और उपनिवेशवाद के बाद के समय में उदारवादी अंतर्राष्ट्रीय संवाद का अगुआ बन गया । भारत ने नस्लवाद का विरोध किया। उस समय हमारा देश दुनिया की महा शक्तियों के खिलाफ के साथ नहीं  था और किसी महाशक्ति का दामन पकड़ने से बेहतर उसने गुटनिरपेक्षता  पर जोर देना समझा। आजादी के बाद का भारत का इतिहास इन्हीं नैतिकता वादी अपेक्षाओं पर चलने का इतिहास रहा है। इसी के बाद आया समेकित विकास का नया मानक जिसमें भारत में आर्थिक विकास को अधिकारों पर आधारित बताया गया। अब मोदी का वक्त आया और मोदी एवं अमित शाह की जोड़ी ने भारत को विश्व गुरु बनाने का अभियान आरंभ किया। इस बड़े लक्ष्य की पूर्ति  के लिए  राष्ट्र संघ में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस जैसे छोटे-छोटे काम आरंभ किये। मोदी जी ने प्लास्टिक पर रोक का जो अभियान शुरू किया है वह हमारे देश के जलवायु को प्रदूषण मुक्त करने में पहला कदम है। हमारे देश में प्रदूषण की समस्या इतनी भयानक है कि 2 वर्ष पहले जारी "एयर पोलूशन एंड चाइल्ड हेल्थ: प्रेस्क्राइबिंग क्लीन एयर" की रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में वायु प्रदूषण से मरने वाले 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की  संख्या लगभग एक लाख थी। यह दुनिया में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का पांचवा भाग है। इन मौतों में 5 वर्ष से कम आयु की बच्चियों का अनुपात 55% और 5 से 14 वर्ष की आयु के बीच यह बढ़कर 57% के लगभग हो जाता है। यदि हम भारत की तुलना अन्य पड़ोसी देशों से करें तो बांग्लादेश में 11,487, भूटान में 37 ,चीन में 11,377, म्यांमार में 5,543, नेपाल में 2,086, पाकिस्तान में 38,252 है। यानी प्रति एक लाख बच्चों पर यह आंकड़ा 96. 6 बच्चियों का और 74.3 बच्चों का है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि हमारे देश में प्रदूषण से ज्यादा खतरा बच्चियों को है। भारत में बढ़ता हुआ प्रदूषण एक चिंता का विषय है और हम अभी तक इस पर काबू पाने में नाकाम रहे हैं। भारत खुद को विश्व गुरु बनाने के लिए कदम बढ़ा चुका है और इसमें सबसे जरूरी है कि वह प्रदूषण पर नियंत्रण करे। पर्यावरण से जुड़े मामलों को देखने के लिए हमारे देश में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण भी गठित हुआ है। साथ ही कई कार्यक्रम समय-समय पर सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं । इसके बावजूद पर्यावरण के प्रति लोगों में चेतना नहीं जग पा रही है। जब तक इससे यानी पर्यावरण मुक्ति अभियान से आम जनता नहीं जुड़ेगी तब तक कुछ हो पाना मुश्किल है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले कदम के रूप में प्लास्टिक के उपयोग को बंद करने के लिए चलाए जाने वाले अभियान में आम जनता को जोड़ने का प्रयास किया है। अगर यह प्रयास खुले में शौच बंद करने के अभियान की तरह सफल होता है तो निश्चय ही दूसरा चरण आरंभ होगा और इसी तरह हमारे देश में जनता की भागीदारी से यह अभियान पूरा किया जा सकता है । प्रधानमंत्री का या आह्वान बेशक सराहनीय है।

Sunday, August 25, 2019

अलविदा अरुण

अलविदा अरुण

दिवंगत अरुण जेटली का रविवार को नई दिल्ली के   निगमबोध घाट  अंतिम संस्कार  उनका  पार्थिव शरीर पंचतंत्र विलीन हो गया।महज 15 वर्षों में 51 वर्ष से 56 वर्ष की उम्र के बीच अरुण जेटली ने ऐसी गंभीर बीमारियों का मुकाबला किया जिसका शायद ही  सार्वजनिक जीवन के किसी व्यक्ति ने अनुभव किया हो। लेकिन कभी क्या किसी ने उन्हें यह कहते सुना की वह गंभीर रूप से बीमार हैं या कभी किसी ने उन्हें लाचार और पीड़ित देखा? शायद नहीं। शायद ही कोई ऐसा मिला हो जो जानता हो इस बीमारी का अंत मौत है लेकिन खुश रहता हो। ऐसा केवल फिल्मों में होता है। जैसे राजेश खन्ना ने आनंद में किया। वास्तविक जीवन में शायद ही कभी ऐसा देखा गया है।  बिस्तर पकड़ने से पहले उनके ह्रदय का चार बार ऑपरेशन हुआ। इसके बाद सीने में इंफेक्शन हो गया। मधुमेह की बीमारी को नियंत्रित करने के लिए वजन कम करने के उद्देश्य से ऑपरेशन किया गया। किडनी बदली गई तथा न्यूयॉर्क स्लोन कैटरिंग अस्पताल में लंबा इलाज चला। उनकी जांघ और घुटने के बीच कैंसर के ऊतक थे जिसे निकालने की कोशिश की थी अमरीकी डॉक्टरों ने। उन्होंने समझा कि उन्होंने ऊतक को निकाल दिया है लेकिन वह वहीं छुपा बैठा था। वे सियासत से दूर होते गए लेकिन महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ उनसे दूर नहीं हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर शाम फोन करके उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहते थे।
           उनके भीतर जिजीविषा का यह आलम था कि इतने बीमार होने के बावजूद वे विगत 7 अगस्त की रात सुषमा स्वराज की मौत के बाद उन्होंने ट्वीट किया "वे दुखी हैं और खुद को टूटा हुआ महसूस कर रहे हैं।" सुषमा स्वराज से वह केवल 1 वर्ष छोटे थे और दोनों 1 पखवाड़े के भीतर काल के गाल में समा गए। ऐसा संजोग केवल उपन्यासों में ही होता है। दोनों ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन  के साथ अपना करियर एक साथ आरंभ किया था। अगर भाजपा का ऐसा स्वरूप बनाने में  अटल बिहारी बाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका मानी जाती है तो जेटली विकास के विभिन्न चरणों को जोड़ने वाली सीढ़ी माने जाते थे। जेटली के कालक्रम के दूसरे नेता जैसे सुषमा स्वराज और अन्य  भाजपा के हिंदुत्व  , अपरिवर्तनकारी राजनीति तथा जनता के बीच भारी लोकप्रियता जैसे सिद्धांतों के प्रतीक थे। जेटली थोड़े अलग थे। उनमें एक खास किस्म की ताजगी थी । अगर राजनीति विज्ञान की भाषा में कहें तो वे भाजपा के अत्यंत हाई प्रोफाइल उदारवादी नेता थे। जेटली अपने साथ किसी पार्टी के नेता को लेकर नहीं आये लेकिन उदारवादियों में,  प्रगतिशील जमात में और भाजपा विरोधी क्षेत्रों में भी वे स्वीकार्य थे। इस मामले में वे पार्टी के अन्य नेताओं से अलग थे। बेशक जेटली भाजपा के  अत्यंत लोकप्रिय नेताओं में से एक थे लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को सार्वजनिक राजनीति का नेता नहीं कहा।  वे सुषमा स्वराज की भांति वक्ता नहीं थे और ना ही बाजपेई जी की तरह कवि थे लेकिन वे अपने शब्दों का बड़ी चालाकी से चयन करते थे तथा आराम से बोलते थे। उनके भाषण में उनका ज्ञान झलकता था। उनकी कुशलता ही थी जिसने भाजपा के लिए उन्हें अपरिहार्य बना दिया था।
        मोदी और अमित शाह 2014  में जब सत्ता में आए तो दिल्ली उनके लिए दूसरी दुनिया थी। यहां अरुण जेटली ही इस दुनिया से उनके लिए कड़ी के रूप में काम कर रहे थे खास करके मीडिया के मामले में । अगर मोदी आक्रामक थे और अंग्रेजी में उतने कुशल नहीं थे तो जेटली उतने ही शांत थे तथा लोकप्रिय। वे हमेशा उपलब्ध रहने वाले थे। कई मामलों में वे पार्टी के संकटमोचक थे तथा प्रतिद्वंद्वियों से संबंध बनाने में अत्यंत कुशल थे। राजनीति, अफसरशाही और कानून की दुनिया के अत्यंत महत्वपूर्ण हस्तियों के बीच वे मित्रवत थे। जेटली मोदी सरकार के पहले दौर में वित्त मंत्री रहे। वाजपेई सरकार में भी महत्वपूर्ण पद पर थे। मोदी सरकार के दो शासनकाल में वे रक्षा मंत्री, कॉरपोरेट मामलों के मंत्री , वाणिज्य और उद्योग मंत्री तथा कानून और न्याय मंत्री रह चुके थे। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता थे और उन्हें 1989 में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था । वे चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे हैं और 2009 से 14 के बीच राज्यसभा में विपक्ष के नेता की हैसियत से भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई थी। दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भी रह चुके थे। जब वे वित्त मंत्री थे तो उन्होंने कर सुधार की दिशा में बहुत काम किया। खास करके जीएसटी उन्हीं के शासनकाल में 2017 में लागू हुआ। जेटली की देखरेख में ही रेल बजट और आम बजट को मिलाया गया।
        लोकप्रिय और सुलभ नेता की प्रशंसा होती है तो उसके साथ कई विवाद भी जुड़ जाते हैं । उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। यहां तक कि विजय माल्या जैसे लोगों ने कहा कि भागने के पहले उन्होंने मामले को रफा दफा करने के लिए जेटली से मुलाकात की थी। लेकिन बाद में यह सब गलत साबित हुआ। क्योंकि उसकी और जेटली की मुलाकात राज्यसभा में यूं ही चलते चलते हो गई थी। जेटली के समक्ष मुश्किलें आई और उन्होंने बहुत कुशलता से उन्हें हल कर दिया या उन्हें पराजित कर दिया। अब तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि
    कश्ती चलाने वालों ने
  जब हार कर दी पतवार  हमें
  लहर - लहर तूफान मिले
  मौज- मौज मझधार हमें
  फिर भी दिखाया है हमने
और फिर यह दिखा देंगे सबको
इन हालातों में आता है
दरिया पार करना हमें।

Friday, August 23, 2019

मोदी जी के राज में कानून सर्वोच्च

मोदी जी के राज में कानून सर्वोच्च

राजनीति में जरा भी दिलचस्पी रखने वाले भारतीयों में से बहुतों का दिल- दिमाग   गुरुवार को इसी के इंतजार में लगा रहा कि आखिर पी चिदंबरम का क्या हुआ? अदालत ने उन्हें जमानत दी या हिरासत में भेज दिया? शाम तक बेचैनी बढ़ गई। अंत में खबर आई कि   विशेष  कोर्ट ने भारत के पूर्व गृहमंत्री एवं पूर्व वित्त मंत्री को आईएनएक्स घोटाले  में चार दिन की हिरासत में भेज दिया है। इसके पहले जब उनकी गिरफ्तारी हुई थी तो उस समय जो नाटक हुआ था वह हमारे देश की दृश्यरतिक जनता के लिए काफी दिलचस्प था। जैसा कि सबको मालूम है और जैसी खबरें आई हैं उसके अनुसार 27 घंटे तक चिदंबरम की कोई खोज खबर नहीं थी और जांच एजेंसियां तथा मीडिया उसे खोजने में परेशान रही। 27 घंटे के बाद पी चिदंबरम कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रगट हुए और वहां उन्होंने एक लिखित भाषण पढ़ा जिसमें पहले ही हिदायत दी गई थी कि  इसकी समाप्ति के बाद कोई सवाल नहीं पूछे। उनके साथ दो बड़े वकील, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी , थे। यह दोनों कांग्रेस के बड़े नेता भी हैं । अपने बेहतरीन बयान में चिदंबरम ने कहा कि वे कानून से भाग नहीं रहे थे बल्कि सुरक्षा चाह रहे थे। उन्होंने कहा कि बीते हुए वक्त में वे वकीलों से राय ले रहे थे । चिदंबरम ने भारतीय संविधान की धाराओं का भी उल्लेख किया। उनका कहने का अंदाज और बयान का सार कुछ ऐसा था जो 1775 में पेट्रिक हैनरी के विख्यात बयान से मिलता था। उस बयान में   हेनरी ने कहा था कि "मुझे आजादी दीजिए या फिर मौत दे दीजिए।" इसके बाद चिदंबरम एक गाड़ी में बैठ कर अज्ञात स्थान की ओर चल पड़े। वहां मौजूद रिपोर्टरों को लगा कि चिदंबरम फिर खिसक गए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ । वह अपने घर आए उनके साथ कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी भी थे । तीनों घर के सिंह द्वार से प्रविष्ट हुए और भीतर जाकर लापता हो हो गए। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय ( ईडी) के अधिकारी हैरान कि कहीं चिदंबरम पिछवाड़े से निकल तो नहीं गए । बाद में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अफसर दीवार फांद कर भीतर आए। लगभग 10:45 बजे रात में उन्हें हिरासत में लिया जा सका।
         उनकी इस तरह गिरफ्तारी को लेकर कई जगह सवाल उठाए जा रहे हैं और कांग्रेस काफी  चीख- पुकार मचाए हुए है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में चिदंबरम को इसका सरगना बताया था या हाई प्रोफाइल केस नीरव मोदी और विजय माल्या के केस से मिलता जुलता था। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है यह मामला नीरव मोदी और विजय माल्या के मामले से बिल्कुल अलग था। यह मसला बैंक को धोखा देने का नहीं था, बल्कि सरकारी कामकाज में अपने लाभ के लिए अधिकार के दुरुपयोग का था। अब यहां प्रश्न उठता है कि क्या चिदंबरम की गिरफ्तारी भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ लाएगी। यकीनन यह केवल दिखावा नहीं है ,नई जुमलेबाजी भी नहीं है। इसके प्रभाव बहुत गहरे होंगे। अगर लुटियंस में चल रही कानाफूसी पर यकीन करें तो चिदंबरम अछूत हो गए है । केवल इसलिए नहीं कि अदालत ने इनकी गिरफ्तारी को 15 महीने तक टाल दिया था बल्कि कुछ भीतरी ताकतें भी थी जो उन्हें गिरफ्तार होने से बचा रही थी। वर्षों तक अफसरशाही - न्यायपालिका के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों के साथ आमद- रफ़्त और उद्योग- व्यापार के अगुआ लोगों के साथ उठ- बैठ ने उन्हें असीम ताकत प्रदान की थी। पी चिदंबरम कांग्रेस की संस्कृति के उदाहरण थे । वे एक ऐसी हस्ती थे जिसके करीब कोई स्कैंडल फटकने का साहस नहीं कर सकता था। यहां  एक कि सुब्रमण्यम स्वामी जैसे लोग भी उन्हें फंसा नहीं पाए थे। कुछ लोग तो यह दावा  करते थे की कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी दो ऐसे वकील और कांग्रेस के नेता हैं जो मिल जाएं तो कानून की नाक में दम कर सकते हैं। यह सब रातोंरात बदल गया। और अब जो हुआ इससे तो ऐसा लगता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता कि कानूनी रूप में दोषी  विपक्षी नेताओं को बख्शा नहीं जाएगा। यह साबित होती जा रही है । अब 5 गांधी परिवार से लोगों की बारी है? यह तो समय बताएगा। लेकिन यदि चिदंबरम को सजा हो गई तभी इससे एक स्पष्ट संदेश जाता है कि मोदी और शाह की जोड़ी विपक्ष को  खत्म करने देने के लिए जूझ रही है। यहां एक बहुत ही बारीक रेखा है जो यह विभाजित करती है कि क्या केवल विपक्ष इसके शिकार होंगे या फिर दोनों पक्ष के लोग? दुनिया यकीनन इसे देख रही है और इसकी प्रशंसा कर रही है। भारत कानून के शासन कायम रखने में सक्षम है । सरकार का यह कदम शासक और शासित के बीच भरोसा पैदा करने में बहुत कामयाब होगा। सरकार के इस कदम से  साबित हो रहा है कि आज के भारत में कानून सर्वोच्च है।

Thursday, August 22, 2019

चिदंबरम गिरफ्तार अब आगे क्या?

चिदंबरम गिरफ्तार अब आगे क्या?

भारत के पूर्व वित्त मंत्री एवं गृह मंत्री पी चिदंबरम को बुधवार को गिरफ्तार कर लिया गया।   बाद में उन्हें  सुप्रीम कोर्ट में 4 दिन की हिरासत  में भेज दिया। 28 घंटे के हाई वोल्टेज ड्रामा के बाद यह गिरफ्तारी हुई। देश की इलीट जांच एजेंसियां इस गिरफ्तारी में 28 घंटे तक सांप और सीढ़ी का खेल खेलती रहीं। विगत 28 घंटों से चिदंबरम की खोज चल रही थी।  चिदंबरम हठात  कांग्रेस मुख्यालय आ गए और प्रेस कॉन्फ्रेंस को भी संबोधित किया। उनके साथ कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद और मल्लिकार्जुन खड़गे भी थे। गिरफ्तारी कुछ इस ढंग से हुई जैसे किसी शातिर अपराधी को गिरफ्तार किया जा रहा हो। सीबीआई के लोग दीवार फांद कर चिदंबरम के घर में घुसे इस बीच कांग्रेस कार्यकर्ता भी आ गए थे और सीबीआई टीम तथा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच हाथापाई की नौबत भी आ गई। हालात को संभालने दिल्ली पुलिस को भी आना पड़ा। आखिर में घर का दरवाजा खुला औलर सीबीआई की गाड़ी भीतर आई। थोड़ी देर के बाद चिदंबरम को गिरफ्तार कर लिया गया।
    उनकी गिरफ्तारी आई एन एक्स मीडिया केस में हुई है। हालांकि यह मामला पहले से ही चर्चा में था लेकिन इसके दायरे में केवल पी चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम ही थे और अब सीबीआई तथा ईडी ने  उन्हें भी लपेट लिया। सीबीआई का आरोप है कि 2007 में बतौर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पीटर मुखर्जी  और इंद्राणी मुखर्जी  की कंपनी आईएनएक्स मीडिया विदेशी निवेश के लिए गैर कानूनी तरीके से मंजूरी दी थी। इस मंजूरी के फलस्वरूप आई एन एक्स मीडिया  में   305 करोड़ रुपए का विदेशी निवेश आया, जबकि अनुमति केवल 5 करोड़ की थी। इसके बाद विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) से आईएनएक्स मीडिया को मंजूरी दिलाने के आरोप में चिदंबरम जांच के दायरे में आ गए। सीबीआई का कहना है की इस मंजूरी के लिए पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी ने तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम से भेंट की थी। आईएनएक्स मीडिया मामले में पहला एफ आई आर 15 मई 2017 को दर्ज हुआ था। इसके बाद जांच शुरू हो गई। उधर ईडी ने मनी लांड्रिंग का मामला दायर कर कार्यवाही शुरू कर दी थी। शुरुआत से ही चिदंबरम की मुश्किलें बढ़ने लगीं। कई बार चिदंबरम पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई थी लेकिन उन्हें अदालत से जमानत मिल गई।
        यह एक दिलचस्प संयोग है कि जब चिदंबरम गृह मंत्री थे तो अमित शाह को सोहराबुद्दीन शेख नकली मुठभेड़ केस में खून के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। आज अमित शाह गृह मंत्री हैं और चिदंबरम को गिरफ्तार किया गया है। 2014 से ही नरेंद्र मोदी सरकार  विपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को हवा दे रही है, खासकर चुनाव के आसपास। लेकिन यह विशिष्ट मामला भ्रष्टाचार के विरुद्ध  अभियान का नहीं है क्योंकि अगर ऐसा होता तो भाजपा के कई भ्रष्टाचार लांछित नेताओं के खिलाफ भी जांच होती। यह भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक खास एजेंडे का उदाहरण है।
        चिदंबरम की गिरफ्तारी के बाद देश में राजनीतिक नाटक शुरू हो गया है। कांग्रेस ने चिदंबरम के साथ खड़े होने की बात कही है और मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर पर कहा है कि" ऐसी सरकार जो सच बोलने पर अपने नागरिकों पर अत्याचार करती है वह वास्तव में ऐसा करके बार-बार अपने कायरता पूर्ण रवैये का प्रदर्शन करती है।" राहुल गांधी ने कहा कि "यह चिदंबरम का चरित्र हनन है।  मोदी सरकार ईडी तथा सीबीआई को यूज कर रही है।" प्रियंका गांधी ने आरोप लगाया है कि "सरकार बड़े ही शर्मनाक ढंग से चिदंबरम के पीछे पड़ी है, क्योंकि वे बेहिचक सच बोलने और सरकार की नाकामियों को सामने लाने वाले नेता हैं।" कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि " भारत अब तक की बदले की सबसे खराब राजनीति का गवाह बन रहा है और यह मोदी सरकार द्वारा किया जा रहा है।" आनंद शर्मा ने सवाल उठाया कि " क्या भाजपा में सब साधु संत ही हैं। कई ऐसे नेता है जो हमारी पार्टी या तृणमूल कांग्रेस या किसी अन्य विरोधी पार्टी में रहते हुए जांच के घेरे में थे लेकिन भाजपा में शामिल होते ही सब संत हो गए। उनके खिलाफ जांच बंद हो गई।"
      यहां यह महत्वपूर्ण है कि न्याय प्रक्रिया को कानून के अनुसार और पूरी पारदर्शिता के साथ कदम आगे बढ़ाना चाहिए ताकि राजनीतिक ध्रुवीकरण के काल में इस मामले पर प्रतिशोध के आरोप न लगाए जा सकें।

Wednesday, August 21, 2019

जरा मुंह संभाल कर बोलिए इमरान साहब

जरा मुंह संभाल कर बोलिए इमरान साहब

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को सलाह दी है कि कश्मीर मामले पर बढ़ बढ़ कर ना बोलें, सोच समझकर बोलें । उन्होंने इस मामले में दोनों पक्षों को कहा  कि वे जरा संयम बरतें ताकि कश्मीर की स्थिति से पूरे क्षेत्र में तनाव न व्याप्त हो जाए। ट्रंप ने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों से सोमवार को अलग-अलग बातचीत की ताकि कश्मीर में तनाव ना बढ़ जाए। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टेलीफोन पर बातचीत के दौरान डोनाल्ड ने बताया कि उन्होंने कहा है कि "कुछ नेताओं द्वारा बड़ी-बड़ी बातें करना और भारत विरोधी हिंसा को भड़काना उस क्षेत्र की शांति के लिए सही नहीं है।" नरेंद्र मोदी से 30 मिनट लंबी बातचीत के बाद ट्रंप ने इमरान खान से भी टेलीफोन पर बातचीत की। उन्होंने इमरान खान को सलाह दी वे तनाव को खत्म करने के लिए बातचीत करें।
          कश्मीर मसले पर भारत के खिलाफ अपने अभियान को जारी रखते हुए इमरान खान ने दो दिन पहले भारत सरकार को  फासीवादी कहा था और कहा था कि इससे पाकिस्तान और भारत के अल्पसंख्यकों को खतरा है। उन्होंने कहा था की दुनिया को भारत के परमाणु भंडार की सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि इससे केवल इसी क्षेत्र को नहीं बल्कि पूरे विश्व को खतरा है। शुक्रवार को व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी कर इस्लामाबाद और नई दिल्ली में वार्ता की सलाह दी थी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री  कश्मीर के प्रति हाल की घटनाएं के बारे में अपनी चिंताओं और और क्षेत्रीय शांति को खतरे के बारे में अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बताया। इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने कई ट्वीट किए, जिसमें बताया गया कि मोदी ने ट्रंप से जून के आखिर में ओसाका में आयोजित जी-20 सम्मेलन का जिक्र करते हुए कहा कि भारत और अमरीका के वित्त मंत्री दोनों देशों के लाभ के लिए जल्दी मुलाकात करेंगे। इसी के साथ ही है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंसा मुक्त और आतंक मुक्त वातावरण के महत्व पर भी बल दिया और कहा इस सीमा पर आतंकवाद से दूर रहना चाहिए।  साथ ही, प्रधानमंत्री ने डोनाल्ड ट्रंप से दोहराया वह गरीबी, अशिक्षा और बीमारियों से मुकाबले की राह पर चलने वाले हर किसी को सहयोग देने के लिए तैयार हैं। मोदी ने अफगानिस्तान की आजादी की सदी पूरी होने का भी डोनाल्ड ट्रंप से जिक्र किया और कहा कि अफगानिस्तान में लोकतंत्र कायम रखने और उसकी सुरक्षा तथा उसके संगठित रहने में भारत प्रतिबद्ध है।
         भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर पर 5 अगस्त से तनाव कायम है और यह तनाव बढ़ता ही जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान  से डोनाल्ड ट्रंप की बातचीत के बारे में व्हाइट हाउस के बयान में कहा गया है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने शांति की अहमियत पर भी बातचीत की। यहां दो तथ्य बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। पहला भारत - कश्मीर सीमा पर तनाव के बारे में इमरान खान से ट्रंप की वार्ता और दूसरे अफगानिस्तान की आजादी की सदी पूरे होने के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत। दोनों शब्द अपने आप में बहुत ही बड़ा अर्थ रखते हैं। बात पिछले सप्ताह से शुरू होती है। अमरीका में पाकिस्तान के राजदूत असद माजिद खान ने न्यूयॉर्क टाइम को बताया कि कश्मीर के हालात को देखते हुए पाकिस्तान हो सकता है अफगानिस्तान से अपनी फौज हटाकर कश्मीर सीमा पर तैनात कर दे। अब दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप अफगानिस्तान में अमन के लिए पाकिस्तान पर बहुत ही भरोसा करते हैं ताकि वहां से अमरीकी सेना जितनी जल्द हो सके वापस आ सके। ऐसे में असद माजिद की टिप्पणी ने ट्रंप के कमजोर नस को दबा दिया। यकीनन माजिद कठिन समय में अमरीका को ब्लैकमेल करने में भूल नहीं कर सकते हैं। अभी यहां सवाल उठता है कि अगर पाकिस्तान और अमरीका में तनाव हो गया तो क्या होगा? स्मरणीय है कि चीन ने पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान का साथ दिया है लेकिन चीन के साथ जब हांगकांग जैसी समस्या हो तो कब तक पाकिस्तान के साथ खड़ा हो सकता है। यह एक कठिन प्रश्न है। बेचारे इमरान खान प्रधानमंत्री बनकर कर फंस गए है । क्योंकि उधर अमेरिका ने उन्हें सैनिक मदद में कटौती कर दी है और इधर उन्होंने कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल में 3 साल का इजाफा कर दिया है । अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या जनरल बाजवा की फौज काबुल विवाह समारोह के दौरान विस्फोट में बेगुनाह 63 शिया लोगों के मारे जाने तथा इस्लामिक स्टेट द्वारा जिम्मेदारी लिए जाने को कब तक बर्दाश्त करेगी। 2015 से 17 के बीच आईएस ने अफगानिस्तान में लगभग 60 हमले किए हैं। अब जनरल बाजवा क्या इसे खत्म करेंगे। क्योंकि तालिबान से ज्यादा खतरनाक है ।उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर के मामले का अंतरराष्ट्रीय करण किए जाने जैसे जुमलों पर ध्यान नहीं देते। क्योंकि मोदी को यह मालूम है कि भले दुनिया के सभी देश कश्मीर पर निगाह रखे हों लेकिन वे नरेंद्र मोदी को चुनौती नहीं देना चाहते। इस कारण से इमरान खान की बेचारगी बढ़ती जा रही है और अफगानिस्तान में स्थिति ना फिर से बिगड़ने लगी इस भय से ट्रंप भी परेशान हैं। इसलिए वे इमरान खान को लगातार सलाह दे रहे हैं कि जरा सोच समझ कर बोलिए। कहीं भारत-पाकिस्तान सीमा पर भी स्थिति ना बिगड़ जाए और अफ़गानिस्तान में अमरीकी फौजों की शामत आ जाए।

Tuesday, August 20, 2019

पाकिस्तान को अब डर लगने लगा है

पाकिस्तान को अब डर लगने लगा है

बालाकोट हमले के बाद भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने सरकार को प्रमुख लोगों को यह बता दिया था कि पाकिस्तान के आशंकित किसी भी हमले का जवाब देने के लिए हमारी सेना तैयार है।  यह तैयारी ऐसी है कि अगर पाकिस्तान ने कोई पहल की तो उसके घर में घुसकर भी मारा जा सकता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान वैसे तो पहले से ही घबराए हुए हैं लेकिन कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद से उनकी घबराहट और बढ़ गई है उन्होंने इस वर्ष  नवंबर में  रिटायर होने वाले पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल बढ़ा दिया है। जबकि इमरान खान इसके खिलाफ हुआ करते थे। विशेषज्ञों का मानना है कि ताजा स्थिति को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। विदेश मंत्री शाह महमूद कसूरी मे कहा है के क्षेत्रीय स्थिति को देखते हुए यह जरूरी था।
        ताजा स्थिति में भारत विरोधी माहौल तैयार करने की पाकिस्तान की कोशिशों के परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से टेलीफोन पर बातचीत की और कहा कि कुछ क्षेत्रीय नेता भारत के विरोध में हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। यह शांति के लिए अशुभ संकेत है। लगभग आधे घंटे तक चली इस वार्ता में दोनों नेताओं ने कई प्रमुख द्विपक्षीय  तथा अंतरराष्ट्रीय मसलों पर बातचीत की। कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान पर भारी दवाब आ गया है कि वह इस मसले को कैसे बनाए रखता है । हालांकि यह दबाव  1971 वाले दबाव के मुकाबले थोड़ा कम है लेकिन 2011 की तुलना में कहीं बहुत ज्यादा है। बहुत  लोगों को याद होगा की 1971 की जंग में पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा ही एक तरह से हाथ से जा चुका था।  2011 में अमरीकी सेना ने  ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए ऑपरेशन किया था। आज पाकिस्तान की चिंता अपनी सुरक्षा की नहीं है बल्कि उसकी कल्पना में जो खास मसला है उसके प्रति वह चिंतित है। पाकिस्तान चाहता है कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरे लेकिन कुछ हो नहीं पा रहा है। दूसरी तरफ, देश के भीतर विरोध प्रदर्शन के बारे में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि पाकिस्तान के भीतर जो भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं उसमें गुस्सा नहीं दिख रहा है। पाकिस्तान के भीतर अगर आम विरोध प्रदर्शन होता है तो उससे कई नए नेता सामने आएंगे, जो पाकिस्तान नहीं चाहता। पाकिस्तान में अगर बहुत ज्यादा विरोध प्रदर्शन होता है तो सेना पर भी दबाव पड़ सकता कि वह भारत पर हमला करे। उधर इमरान खान की मुजफ्फराबाद यात्रा के दौरान अधिकृत कश्मीर के प्रधानमंत्री फारुख हैदर ने भावुक होकर कहा था कि लाखों कश्मीरी लोग नियंत्रण रेखा को पार करने के लिए और भारतीय सेना परास्त कर कश्मीर घाटी पर कब्जा करने के बेताब हैं। हैदर की भावुकता उनकी निराशा को बता रही है। यद्यपि हैदर का मनोवैज्ञानिक प्रयास था कि सेना  सामने आए और इस मसले को संभाले। उधर कारगिल हमले के बाद पाकिस्तानी सेना को यह मालूम हो गया था कि सीधी सैनिक कार्रवाई कोई विकल्प नहीं है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने तो यहां तक कबूल किया है कश्मीर मामले की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने क्षमता हम में कम है । भारत के बटवारे का जो अपूर्ण मुद्दा है उसे खत्म करने की  पाकिस्तानी सेना की क्षमता में नाटकीय रूप से गिरावट आई है। खासकर कारगिल युद्ध के बाद तो इसमें बहुत ज्यादा गिरावट आई। इस युद्ध में नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री का उपयोग किया गया था। पाकिस्तान की सेना कभी भी हालात या कहें यथास्थिति बदलने में कामयाब नहीं हो सकी 1999 के बाद जिहादियों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई लेकिन जिहादियों की क्षमता में भी गिरावट आ गई है। अब बाजी कश्मीरी जनता के हाथ में है और सारी दुनिया इसे देख रही है।
        पाकिस्तान के पास दो ही विकल्प रह गए हैं। एक तो उसे लंबा इंतजार करना होगा। इतना लंबा इंतजार कि पश्चिमी दुनिया को पाकिस्तान की जरूरत महसूस होने लगे। यह बहुत ही कठिन स्थिति होगी अथवा नामुमकिन है या फिर पाकिस्तान को चीन से अपने संबंध और प्रगाढ़ करने होंगे, ताकि वह वैश्विक जिओ पॉलिटिक्स में पाकिस्तान की तरफ से ना केवल हिमायत कर सके बल्कि कल्पनाशील ढंग से कूटनीतिक चाल चल सके। यकीनन पाकिस्तान की सफलता अब भारत से फौजी मुकाबले में नहीं भारत में खासकर कश्मीर में मानवाधिकार स्थिति पर निर्भर करती है। पाकिस्तान की मदद अब ना उसकी सेना कर सकती है और ना ही वे जिहादी जिन्हें वह अब तक पालता आया है।  ऐसी स्थिति से पाकिस्तान को अब डर लगने लगा है। पाकिस्तान अपने इतिहास की सबसे विकट मोड़ पर है।

Monday, August 19, 2019

बातें अब अधिकृत कश्मीर पर ही होंगी

बातें अब अधिकृत कश्मीर पर ही होंगी

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को कहा कि पाकिस्तान से बातें अब केवल अधिकृत कश्मीर पर ही होंगी या नहीं होंगी।भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया की वर्तमान भारत के कब्जे वाले कश्मीर पर अब कोई बातचीत नहीं होगी। इसके पहले पाकिस्तान ने कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटाए जाने को देखकर काफी बवाल मचाया था। वह इस मामले पर दुनिया के कई देशों की चौखट पर पेशानी रगड़ रहा था, पर कोई लाभ नहीं हुआ। कुछ ने  तो इस पर ध्यान ही नहीं दिया और कुछ ने कहा कि यह भारत का आंतरिक  मामला है ,बस बात खत्म हो गई। अब पाकिस्तान एक दूसरे शिगूफेबाजी में लगा है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने रविवार को कहा कि " हिंदू सर्वोच्चतावादी और फासीवादी  मोदी सरकार  के नियंत्रण में  भारत के परमाणु भंडार की सुरक्षा के बारे में दुनिया को चिंता करनी चाहिए । " उन्होंने कहा कि "यह एक ऐसा मसला है जिससे केवल यह क्षेत्र ही प्रभावित नहीं होगा। बल्कि पूरी दुनिया पर इसका असर होगा। " दरअसल ,2 दिन पहले सुरक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारत परमाणु शक्ति के पहले इस्तेमाल वाले नियम पर दोबारा सोच सकता है। उनके इस कथन से इमरान खान की घिग्घी बंध गई है। इसके बाद इमरान खान लगातार ट्वीट कर रहे हैं । इमरान खान ने कहा कि " कश्मीर में लगभग 9लाख कश्मीरियों को भारत से खतरा है । वहां सूचना पर पाबंदियों  और संचार को ठप किए जाने की भारत सरकार की कार्रवाई की इमरान खान ने नाजी जर्मनी के फासीवाद से तुलना करते हुए कहा इससे 90 लाख कश्मीरी दो हफ्तों से बंद पड़े हैं और पूरी दुनिया में इसे देखकर खतरे की घंटी बज रही है। राष्ट्र संघ के पर्यवेक्षक वहां भेजे जा रहे हैं।"
        दूसरी तरफ भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हरियाणा की  एक रैली  में कहा कि कश्मीर में धारा 370 उसके विकास के लिए हटाई गई है। हमारा पड़ोसी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दरवाजे खटखटा रहा है और कहता फिर है कि भारत ने गलती की है। अब तो पाकिस्तान से बातें केवल अधिकृत कश्मीर पर ही होंगी।"
    कश्मीर के मामले पर पाकिस्तान को चीन भी शह दे रहा है।  पिछले हफ्ते फिल्म यह मामला राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में उठाया था, लेकिन राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद ने इस पर कुछ नहीं कहा। लगभग 5 दशकों के बाद जम्मू कश्मीर की स्थिति पर मसला उठा था। वैसे भारत द्वारा कश्मीर में लागू धारा 370 को हटाए जाने के कारण भारत और दुनिया भर को चकित करने की जम्मू कश्मीर की स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खींचने का पाकिस्तान का यह अभियान आरंभ हुआ है। मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करना पाकिस्तान के भीतर भय का सबूत है। अमरीका और फ्रांस द्वारा  इसे भारत का   अंदरूनी मामला कहे जाने से स्थिति बदलती नजर आ रही है। क्योंकि इस पर सुरक्षा परिषद में बहस नहीं हो सकती है और कोई महत्वपूर्ण बयान या संकल्प जारी नहीं हो सकता है। अब से कोई पांच दशक पहले शीत युद्ध के जमाने में कश्मीर जब सुरक्षा परिषद के एजेंडे में था तो रूस ने भारत के पक्ष में इस पर वीटो कर दिया था और कहा था किसे भारत और पाकिस्तान दोनों मिलकर सुलझा लें। ब्रिटेन ने परोक्ष रूप से इस मामले में फिलहाल चीन का साथ दे रहा है फिर भी सुरक्षा परिषद  कश्मीर के मामले को उठाए जाने को लेकर दुनिया का सामूहिक मत भारत के पक्ष में है ।  इस संबंध में पाकिस्तान की चीख पुकार को भारत आसानी से नजरअंदाज कर सकता है लेकिन चीन की मदद से पाकिस्तान के सुरक्षा परिषद में दोबारा जाने को भारत नहीं नजरअंदाज कर सकता।  अगली बार सुरक्षा परिषद में क्या होगा यह कश्मीर की स्थिति पर निर्भर करता है। कश्मीर में किसी तरह की कानून और व्यवस्था में  गड़बड़ी और वहां के नागरिकों के खिलाफ दिल्ली द्वारा सुरक्षाबलों के इस्तेमाल से भारत के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय समर्थन घट सकता है। नियंत्रण रेखा पर  मोर्चाबंदी और फौजी जमाव में वृद्धि को अंतरराष्ट्रीय समुदाय अंतरराष्ट्रीय खतरे की तरह मान सकता है ।  यह स्थिति सुरक्षा परिषद के हस्तक्षेप का आधार बन सकती है।  अगर ऐसा होता है तो भारत को तीन तरफा हमले का खतरा है। पहला  पाकिस्तान घाटी में आतंकवाद को खुला छोड़ सकता है । इससे सेना के हस्तक्षेप में वृद्धि हो सकती है और नियंत्रण रेखा पर भी सरगर्मियां बढ़ सकती हैं। चीन  ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान को सुरक्षा परिषद में पूरा समर्थन करने का आश्वासन दिया है। दिल्ली के पास कोई और विकल्प खोजने का वक्त नहीं रह गया है।  चीन भारत की सीमा पर फौज की तैनाती बढ़ा सकता है क्योंकि भारत ने कश्मीर में यथास्थिति को परिवर्तित कर उसके सार्वभौमिक हितों को चुनौती दी है।  भारत के खिलाफ चीन में बढ़ते राजनीतिक मतभेद से यह संकेत मिलते हैं कि  भारत को अभी से इसके मुकाबले की रणनीति बनानी होगी। इसमें विफलता का क्या परिणाम होगा वह भारत को मालूम है।
वैसे भी पाकिस्तान की यह चीख- पुकार का कोई मतलब नहीं है। दुनिया ने देखा-समझा है उसके झूठ को। कुछ दिन पहले तक वह कहता चल रहा है था कि बालाकोट हमले को लेकर भारत झूठ बोल रहा है । ऐसा कोई हमला हुआ ही नहीं। अब इमरान खान साहब रो - रो कर कह रहे हैं कि भारत बालाकोट से भी बड़े हमले की तैयारी में लगा है। इसका सीधा अर्थ है कि वह बालाकोट हमले को स्वीकार कर रहा है।
         

Sunday, August 18, 2019

बारिश से कोलकाता बेहाल

बारिश से कोलकाता बेहाल

गुरुवार से लगातार बारिश के कारण महानगर कोलकाता का जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार केवल शनिवार को 24 घंटों में 181 मिली मीटर से ज्यादा वर्षा हुई है और रविवार को भी बारिश जारी है। इससे आवागमन  ठप हो गया है और कई लोगों का जीवन बेहद प्रभावित हुआ है। ऐसा लगभग हर वर्ष होता है इसलिए इसे संजोग नहीं कह सकते या कोई आकस्मिक मौसमी घटना नहीं कह सकते। कोलकाता में बारिश विपदा का पर्यायवाची बन गई है। एक प्रश्न उठता है कि क्या मौसम का यह डायनामिक्स हमारी समझ से परे है? हर साल बारिश के दौरान कोलकाता महानगर क्षेत्र में कुछ लोग मरते हैं ,कुछ संपत्ति बर्बाद होती है और उसके बाद सब कुछ सामान्य सा होने लगता है। सरकार से लेकर आम आदमी तक किसी को इसकी फिक्र नहीं कि हम अपनी जमीन,  अपने जल स्रोतों और जल निकासी व्यवस्था का इतना क्रूर उपयोग करते हैं? एक दूसरे पर आरोप लगाकर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। आरोप लगाना आसान है।  यह सोचना जरूरी है कि किसी दूसरे के अलावा हम इसके लिए कितने दोषी हैं? यहां हम का अर्थ है इस शहर का आम आदमी जो  शहर की सुविधाओं का उपभोग करना चाहता है ,शहर के लिए जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता। अखबारों की सुर्ख़ियों में बारिश की खबर के साथ विनाश की खबरें आती हैं, मुश्किलों की खबरें आती हैं लेकिन हम जरा रुक कर यह नहीं सोचते की एयर कंडीशनर चालू करने के पहले जरा यह सोच लें कि इसकी जरूरत है या नहीं । हम यह नहीं सोचते कि जो पानी हमारे सामने नालियों से बह रहा है वह कितना उचित है ,हम में से कितने लोग सार्वजनिक बसों के उपयोग के हामी हैं? हमारी कल्पनाओं में हमारी अपनी सुविधाएं हैं लेकिन इन सुविधाओं से होने वाली मुश्किलों के बारे में हम नहीं सोचते। हम कभी नहीं सोचते कि हमारे जीवन में एक मामूली सा बदलाव मौसम को कितना ज्यादा प्रभावित करेगा। बेशक हम पर्यावरण पर कभी-कभी बात कर लेते हैं क्योंकि यह अक्सर चर्चा में रहता है लेकिन हमने मौसम पर कभी नहीं सोचा या बहुत कम सोचते हैं। हम तो बस यही मानते हैं कि यह दुनिया भर के नेताओं की  जिम्मेदारी है। हाल की कुछ घटनाओं को जरा रुक कर देखें। अगर हम इस शहर में आए हैं तो इसके प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। हमारा फैलता (विकसित होता )  शहर पूर्वी भाग के खालों और भेरियों समाप्त करता जा रहा है। कुछ लोग जल निकासी व्यवस्था और सफाई को इस विपदा के लिए जिम्मेदार मानते हैं। लेकिन यही केवल समस्या नहीं है यह तो देश के अन्य बड़े शहरों में भी है। जरा गौर करें, हम जिस महानगर में रहते हैं उसकी भौगोलिक स्थिति क्या है? क्योंकि किसी भी शहर की भौगोलिक स्थिति ही उसकी पहचान होती है । जैसे हम दशकों से  से यह सुनते आए हो कि काशी दुनिया से अलग शिवजी के त्रिशूल पर है, यानी उसका कुछ भौगोलिक वैशिष्ट्य है ,उसी तरह जरा कोलकाता के बारे में सोचिए?         
कोलकाता औसत समुद्र तल से केवल 20 फुट ऊपर है। इसलिए यहां जल निकासी की व्यवस्था बहुत कठिन है। यहां तक कि साधारण बारिश का पानी भी यहां निकलना कठिन हो जाता है। इसके अलावा समुद्र में समय-असमय आने वाला ज्वार इसे और भी कठिन बना देता है।
    कोलकाता के वैज्ञानिकों के अनुसार शहर में डूब की स्थिति बड़ी विकट है। विगत दो दशकों में पच्चीस लाख लोग इससे प्रभावित हुए हैं। शहर 1930 के बाद पूरब की तरफ बढ़ने लगा और आजादी के बाद यह बढ़ना और तेज हो गया कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण  तथा शहर के परिप्रेक्ष्य में 1990 में बनी विकास की योजनाओं में जल निकासी की कमी को को नजरअंदाज कर दिया गया। कोलकाता शहर के पुराने खाल या कहें नहर प्रणाली जो विगत तीन सदी से एक अच्छी जल निकासी व्यवस्था के रूप में काम कर रही थी वह मरम्मत के बिना समाप्तप्राय  है। इसके अलावा शहर से बाहर निकलने वाले कई नाले, नालिया और खाल भर गए है । साथ ही रोज निकलने वाला कूड़ा बढ़ती आबादी के साथ बढ़ता गया और उसे निपटाना समस्या बनती गई।
        कोलकाता की मूल जल निकासी व्यवस्था उसके सब बेसिन की जल निकासी क्षमता पर आधारित लेकिन धुआंधार विकास के कारण सब बेसिन नष्ट हो गए या उन पर बहुत ज्यादा दबाव बढ़ गया। कुल मिलाकर कह सकते हैं यह शहर अत्यंत प्राचीन है और यहां की जलजमाव की समस्या कई समस्याओं से जुड़ी है और इसके लिए किसी एक समस्या को खोज पाना बड़ा कठिन है। एक तरफ जमीन की बनावट ,उसकी भौगोलिक स्थिति, बारिश इत्यादि कारण है तो दूसरी तरफ जल निकासी व्यवस्था का अभाव शहरीकरण के कारण जनसंख्या में विस्तार शहर के उत्तर से दक्षिण भाग की ओर लोगों का पुनर्वास इत्यादि कारण है। यहां के शहर के लोबगों को यह स्वीकार करना पड़ेगा कि इसकी व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए उनका भी कुछ न कुछ कर्तव्य है और वह शहर के विकास के लिए सरकारी योजनाओं के अमल में सहयोग करें ना कि संसाधनों के दुरुपयोग से उनका गलत उपभोग करें।

Friday, August 16, 2019

अपना टाइम आ गया है

अपना टाइम आ गया है

स्वाधीनता दिवस की 73 वी वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से देश को संबोधित किया तो उनके बॉडी लैंग्वेज से लेकर शब्दों के चयन और हालातों के बयान तथा आने वाले दिनों की योजनाओं के बारे में उनकी बातों ऐसा लगा कि भारत को एक महाशक्ति बनने का समय आ गया। वैसे भी जो नकारात्मक सोच के लोग हैं वे साल दर साल की उपलब्धियों को गिनते हैं, लेकिन किसी देश के इतिहास में खासकर भारत जैसे प्राचीन सभ्यता वाले देश के इतिहास में काल की गणना दशकों में नहीं सदियों में होती है। भारत के आजाद हुए मात्र 72 वर्ष हुए हैं और इतिहास में काल गणना के लिहाज से यह एक नया देश है। ऐसे में जरूरी है कि इतिहास के भविष्यत गलियारों में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण किया जाए। मौर्य काल के बाद भारत एक विशेष किस्म के व्यामोह में फंस गया।  बाद में वह मध्य एशिया के आक्रमणकारियों तथा यूरोप के बंदूकधारी व्यापारियों के कब्जे में आ गया।  इन हालातों ने एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा किया ।  आज भी हमारा देश उसी प्रभाव की खिड़की से खुद को और दुनिया को देखता है। अब भारत इस हालत से खुद को मुक्त कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बातें कर रहा है तथा उन महा शक्तियों की बराबरी करने जा रहा है जो कल तक हमें हीन समझते थे। देश एक मृदु सत्ता की श्रेणी से उठकर एक दृढ़ शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने की स्थिति में आ गया है। धारा 370 को समाप्त किया जाना हमारे देश की इसी दृढ़ता का प्रमाण है।
      लाल किले से राष्ट्र को लगातार अपने छठे संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा, "हम समस्याओं को टालते नहीं, पालते नहीं" , यह जुमला जन कल्याण के लिए उनकी दृढ़ता और संकल्प को प्रतिध्वनित करता है। इससे साफ जाहिर होता है कि भारत की सत्ता कठिन समस्याओं से  कतरा कर निकलने वाली नहीं है वह उनका भी समाधान करेगी । मोदी जी ने तीन तलाक और कश्मीर में धारा 370 को हटाए जाने के बारे में काफी कुछ कहा। उन्होंने कहा कि अब तक किसी को इन स्थितियों को बदलने क्या इस पर बात करने का साहस नहीं था। भाजपा सरकार ने इसे खत्म कर डाला। इसका विरोध करने वाले विपक्षी दलों को चुनौती देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर वे इसे इतना ही जरूरी समझते थे तो इन धाराओं को उन्होंने स्थाई क्यों नहीं किया, क्यों इसे अस्थाई रहने दिया। मोदी जी को मालूम था कि इन बातों पर विपक्ष की बोलती बंद हो जाएगी।
        प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से स्वाधीनता दिवस के अपने संबोधन में देश के भविष्य के लिए रोड मैप भी पेश किया। उन्होंने  कहा कि  " हम देश को अगले 5 वर्षों में 5 खरब डालर की अर्थव्यवस्था बना देंगे। विगत 5 वर्षों में हमने अर्थव्यवस्था में एक अरब डालर की वृद्धि की है।" कुछ लोग उनकी इस बात की आलोचना करते हुए कहते हैं कि अर्थव्यवस्था के निराशाजनक तथ्य इस कथन की स्पष्ट रूप से खिल्ली उड़ाते हैं । कई क्षेत्र मंदी की मार से ग्रस्त हैं। बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और बढ़ती हुई है वह पिछले 4 वर्षों में सबसे निचली अवस्था पर पहुंच गई है। कोई भी चाहे वह मोदी हों या अन्य ,आर्थिक विपदा को नहीं स्वीकार करता है ।  स्वाधीनता दिवस जैसे अवसरों पर उनकी अन्य बातों पर कैसे यकीन किया जाए।
        मोदी जी ने कई और महत्वपूर्ण योजनाओं को गिनाया जिनमें ढांचा विकास परियोजनाओं में 101 खराब डालर के निवेश, जल शक्ति मिशन पर 3.5 खरब डालर का खर्च एवं "इज ऑफ डूइंग बिजनेस"  के मामले में दुनिया के 50 देशों मैं शामिल होना। तीनों सेना के प्रमुख के पद का निर्माण और प्लास्टिक के उपयोग पर रोक के अभियान इत्यादि भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि अब धीमी विकास का वक्त खत्म हो गया है। हमें और छलांग लगानी होगी। प्रधानमंत्री जो अक्सर स्वाधीनता दिवस के अपने भाषणों का बड़ी-बड़ी घोषणाओं के लिए उपयोग करते रहे हैं इस वर्ष भी उन्होंने जनसंख्या वृद्धि की समस्याओं पर बहुत देर तक अपने विचार रखे।  परिवारों को सीमित करने का अनुरोध किया। यहां सवाल उठता है कि आने वाले दिनों में परिवार सीमित करने के लिए क्या किसी कठोर व्यवस्था को अपनाया जाएगा? अब यह तो समय ही बताएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि जनसंख्या विस्फोट आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक संकट पैदा करेगा। उन्होंने कहा हमारे देश में एक जागरूक वर्ग ऐसा भी है जो इस बात को भलीभांति समझता है।  तेजी से बढ़ती जनसंख्या को जनसंख्या विस्फोट का नाम दिया है। भारत की वर्तमान आबादी 130 करोड़ से भी ज्यादा है और यह बुरी तरह बढ़ रही है। इस समस्या पर हाल में जंतर मंतर में एक सभा का आयोजन किया गया था। क्या ट्रेजेडी है हमारे देश की कि एक विचारधारा विशेष के लिए आयोजित यह सभा एक धर्म विशेष के खिलाफ प्रोपेगेंडा का प्लेटफॉर्म बन गई। प्रधानमंत्री द्वारा जनसंख्या को काबू किये जाने की अपील को एक मजबूत पहल माना जा सकता है। देश में लंबे अरसे से "हम दो हमारे दो " का नारा चल रहा था।  इसका असर नहीं दिख रहा था। आज मोदी जी की बात से ऐसा लग रहा है कि हमारा देश और हमारी सरकार  भौतिक शास्त्र के पुराने सिद्धांतों को छोड़कर नवीन भौतिक शास्त्र जिसे "क्वांटम फिजिक्स " कहते हैं, उसके सिद्धांतों को पढ़ने लगी है। इसमें स्पष्ट है कि पृथ्वी की हर घटना एक दूसरे से संबद्ध होती है । उन्होंने यह स्वीकार किया है कि विकास और धन अगर छोटे समूहों में विभाजित किया जाए दो बेरोजगारी और गरीबी कम होगी। पहले नीति से संबंध सवाल उठाए जाते थे कि  जनसंख्या नियंत्रण लोकतांत्रिक विचार कैसे हो जाएगा? बलात जनसंख्या नियंत्रण के उपाय चीन की तरह स्थिति पैदा कर देंगे। अभी तक "डेमोग्राफिक डिविडेंड" की बात चलती थी लेकिन यह व्यवस्था तभी संभव है जब शिक्षा, रोजगार और रोजगार के लायक बनाए जाने का हुनर एक साथ जुड़े। अब शायद ऐसा नहीं हो पा रहा है। आपातकाल के जमाने में जबरन परिवार नियोजन शुरू किया गया और आपातकाल असफल हो गया। यह पहला अवसर है जब प्रधानमंत्री परिवार को सीमित करने के लिए खुद प्रयास किए जाने की अपील कर रहे हैं। मोदी जी यह समझते हैं कि जब तक स्वयं प्रयास न किया जाए जनसंख्या नियंत्रण नहीं किए हो सकता और उसका लाभ नहीं मिल सकता। इसलिए प्रधानमंत्री ने इस पर कदम आगे बढ़ाने की जनता से अपील की यह एक समझदारी भरी पहल है लेकिन इसका प्रभाव बहुत देर से दिखेगा।

Wednesday, August 14, 2019

आजादी का जश्न क्यों मनाते हैं 

आजादी का जश्न क्यों मनाते हैं 
आज हमारे देश का स्वाधीनता दिवस है। 1947 को इसी दिन हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र हुआ था और हमें अपना मुकद्दर खुद लिखने का हक हासिल हुआ था। उस दिन से यह एक परंपरा बन गई है कि इस दिन को हम जश्न के साथ मनाएं। आजादी मनुष्य का बुनियादी हक है जिससे वह स्वतंत्र माहौल में चिंतन कर सके और इंसानियत के लिए कुछ भला कर सके। हमारे पूर्वजों ने इसी हक को हासिल करने के लिए अनगिनत कुर्बानियां दीं। इस हक को हासिल करने की जंग किसी खास आदमी का सपना नहीं बल्कि उस  पीढ़ी का उद्देश्य था जिसने अंग्रेजों को खुल्लम खुल्ला चुनौती दी थी कि " देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।" 
       पिछले पांच सात वर्षों से हमारे देश में देश भक्ति या  देश प्रेम का ज्वार आया हुआ है। ऐसे में एक प्रश्न प्रासंगिक है कि देश क्या है? भारत से आप क्या समझते हैं और देश प्रेम क्या है? स्वाधीनता का यह पर्व क्यों मनाते हैं? अलग-अलग लोग अलग-अलग व्याख्या करेंगे। अगर पूछें कि वह कौन सी अमूर्त भावना है जो दिखती नहीं है लेकिन हमें बांधे रखती है? बकौल नादीन गाडीमर "भावनाएं आत्मा की घटनाएं हैं।" हावड़ा पुल को पार करते समय हममें से बहुतों ने देखा होगा कि पुल से गुजरते हुए लोग नदी को प्रणाम करते हैं।  अगर नदी पर गौर करें तो वह एक मटमैली सी धारा होती है। मनोवैज्ञानिक तौर पर देखें तो प्रणाम करने की घटना किसी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप नहीं है बल्कि भीतर से उत्पन्न स्वउच्छवासित घटना है। आप कहीं उंगली रखकर नहीं कर सकते यही देश है। यानी इसका कोई मूर्त रूप नहीं देख सकता। यही भावना देश प्रेम है। दरअसल यह भावना एक स्मृति है जीवन से अधिक विराट और समय की सीमा से परे। देश प्रेम एक चिरंतन घटना है जो हर पीढ़ी के भीतर है, उसकी आत्मा में है। यह एक शक्ति है जो अचेतन में अन्तरगुम्फित होती है इसी अन्तरगुम्फन के कारण पत्थर का एक टुकड़ा शिव बन जाता है ,पर्वत कैलाश और गंगा मां बन जाती है।
        "श्मशान में साधते शंकर जीवन स्रोत
मरण रास के तमस में जैसे अभिनव ज्योत"
   जो लोग आज देश प्रेम या राष्ट्रभक्त पर सवाल उठाते हैं उन्हें यह स्पष्ट समझना चाहिए कि यह व्यक्ति जीवंत पवित्रता का गौरव है जो एक प्रकार की धार्मिक संवेदना ग्रहण कर लेता है। यही आत्मीय उपकरण राष्ट्रभक्ति की भावना को उत्पन्न करता है। कभी आपने राम पर गौर किया है। जी हां उस अयोध्या के राम पर। राम को अगर दर्शन के नजरिए से अलग कर दें तो वह एक पौराणिक कथा के रूपक हैं। एक रूपक का ऐसा जीवंत स्वरूप वहीं संभव है जहां भूगोल की देह पर संस्कृति की रचना हुई है। यही संस्कृति रचना एक झुंड में चलते हुए लोगों की यात्रा को तीर्थ यात्रा बना देती है। कुछ लोगों को वंदे मातरम में सांप्रदायिकता नजर आती है। वे यह नहीं समझ पाते की प्रेम की भावना को स्मृतियों और इतिहास में सनी पीड़ा से पृथक कर देने से भावना की पवित्रता नष्ट हो जाती है। उसकी गरिमा समाप्त हो जाती है। ऐसा इसलिए कि हम इतिहास की व्यथा को उस स्मृति के साथ देख सकें और महसूस कर सकें। इतिहास अध्ययन करते वक्त उसके हर पायदान पर समाजशास्त्र और दर्शन का एहसास होता है। ऐसा इसलिए होता है कि इतिहास की घटना समाज और उसकी सोच के दबावों के फलस्वरूप घटती है। इतिहास की घटनाएं  संगीत की लयबद्धता  की तरह हुआ करती हैं  जिसमें छोटे-छोटे वाद्य अनुशासित ढंग से सम्मिलित होकर एक नए सुर का जन्म देते हैं।
         आज कश्मीर सुर्ख़ियों में है। सुर्ख़ियों में इस लिए नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां से धारा 370 हटा दिया या इशारा किया कि अगला निशाना अधिकृत कश्मीर पर है। पूरे देश में सनसनी मच गई है ऐसा इसलिए हुआ है कश्मीर केवल भारत का अंग ही नहीं है बल्कि अलबरूनी के शब्दों में "कश्मीर हिंदू दर्शन और आध्यात्मिक शोध का काशी के बाद सबसे बड़ा केंद्र है।" जरा ग़ौर करें कि क्या हम राज तरंगिणी जैसी एतिहासिक रचनाओं को अपनी  पारंपरिक चिंता धारा से अलग कर सकते हैं? कश्मीर की चर्चा इसलिए है कि इस की सीमाएं समय के साथ साथ संस्कृति के नक्शे में बदल गई। हमारे स्वतंत्रता संघर्ष की अंधेरी रातों को इसी संस्कृति की ज्योत ने आलोकित किया। बेशक कई दबाओं और तूफानी झोंकों के कारण वह लौ थोड़ी डगमगा रही है लेकिन लोगों के भीतर राष्ट्रप्रेम  कायम  है तो इसका कारण यह आश्वासन है कि यह वह ज्योति जल रही है।  यही कारण है कि "आज तेरी हिम्मत की चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।"