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Wednesday, May 31, 2017

खाना बचाइए

खाना बचाइए 
दुनिया भर के वैज्ञानिक-दार्शनिक सलाह देते हैं कि पानी बचाईए लेकिन बहुत कम लोग यह कहते सुने जाते हैं कि खाना बचाइए। कितनी बड़ी विडंबना है कि दुनिया भर में अनाज का उत्पाफदन बढ़ रहा है, उत्पादन बढ़ाने के तकनीकों का भी रोजाना विकास हो रहा है पर दुनिया की एक तिहाई आबादी को दो जून का भरप्रेत भोजन मयस्सर नही होता। आंकड़े बताते हैं कि 7 अरब की आबादी की इस दुनिया में 80 करोड़ लोग हर रात भूखा ही सो जाते हैं। इसासे जहां वैश्विक अशांति का खतरा बढ़ रहा है वहीं बीमारियों का भय भी बढ़ता जा रहा है। ड्रग्स, दारू , तम्बाकू इत्यादि जैसे पदार्थों से जितने लोग रोगग्रस्त होते हैं उससे कहीं ज्यादा लोग खराब खानों से बीमार पड़ते पाए जा रहे हैं। बच्चे और महिलाएं इसका ज्यादा शिकार होती हैं।दुनिया में 15 करोड़  60 लाख बच्चे अविकसित हैं और 40% महिलाओं में खून का अभाव है। इस भयावह भूख और बीमारियों की इस दुनिया में 2 लाख लोग रोज पैदा हो रहे हैं जिसमें भारत 58हजार बच्चे रोज पैदा होते हैं। विस्का मतलब है कि 2050 तक 2 अरब ज्यादा लोगों का भोजन जुटाना होगा और विकास की बाढ़ खेतों को उसी तरह निगलती जा रही है। शहर तेजी से बढ़ रहे हैं खेत घटते जा रहे हैं। 2050 तक जो आबादी बढ़ेगी उस के लिए अनाज की पैदावार डेढ़ गुनी करनी होगी। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल( एस डी जी ) के 12वें प्रपत्र के लक्ष्य 3 के अनुसार वैश्विक स्तर पर प्रतिव्यक्ति जितना भोजन बर्बाद होता है उसे आधा करना होगा । इतना ही नहीं उत्पादन और आपूर्ति के दौरान अनाज की  होने वाली बर्बादी को भी कम करना होगा। खाद्य एवं कृषि संगठनों के अनुसार 1खरब डॉलर का भोजन हर साल बर्बाद होता है जो रोजाना बहोखे सो जाने वाले 80 करोड़ लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त है।इन 80 करोड़ लोगों में सेव तो 20 करोड़ लोग तो भारत में हैं जहां 130 करोड़ की आबादी है और कहते हैं कि खेतों में फसल बम्पर होती है। मई में डसेलड्रॉफ में आयोजित खाद्य कांग्रेस में अनाज उत्पादन और अनाज अनुराक्षयं पर ही ज्यादा बहस चली। दुनिया में खाद्य की बर्बादी और खाद्य की हानि के आंकड़े क्रमशः 30 प्रतिशत उर 50% हैं। यह दशा विकसित और विकासशील देशों दोनों की है। विकसित देशों में खाने की बर्बादी ज्यादातर घरेलू उपभोक्ता स्तर  पर होती है। इस स्टार पर खाने से ज्यादा सामान खरीद लिया ज्यादा है जो बाद में फेंक दिया जाता है। विकासशील देशों में आपूर्ति स्टार पर जैसे खेती, भंडारण और एक जगह से दूसरी जगह लाने ले जाने के दौरान ज्यादा बर्बादी होती है। मसलन भारत में 6 कसरोड 60 लाख टन की कुल क्षमता वाले कोल्ड स्टोर चाहिए जबकि विद्यमान क्षमता है  महज 3 लाख टन। यानी आधे से ज्यादा खाद्यान बर्बाद हो जाते है। दूसरी तरफ भारत जैसे देश जहां अमीरी तेजी से बढ़ रही है वहां खाद्य भी उसी तेजी से बर्बाद हो रहा है। दोनों स्थितोयों में खाद्यान्न जिसे घटते जलस्रोतों की मदद से उपजाया जाता है वह बर्बाद हो रहा है। यानी यह केवल खाना बर्बाद नही होता उसके साथ जल और श्रम तो बर्बाद होता ही है समाज का पोषण भी बर्बाद होता है। देश में जो 40% खाद्य की बर्बादी होती है उसका मूल्य 7.5 अरब डॉलर आंका गया है। यह हालत उस देश की है जहां के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योग 15% है और 53 प्रतिशत लोगों को इसमें रोजगार मिलता है। ये गाम्भीर हालात है और इसे नही रोका गया तो स्वास्थ्य और पोषण की दशा रोज़ाना बिगड़ने से रोका नहीं गया तो भविष्य पर इसका बुरा असर होगा क्योंकि इसका असर पोषण पर पड़ता है। शहरीकरण और आय में वृद्धि के साथ लोगों की आदतें बदल रहीं हैं और इन दिनों देखा गया है कि लोग इन दिनों घर में काम और बाहर जाकर कहना ज्यादा पसंद करते हैं।दुनिया में 17% लोग कुपोषण के शिकार हैं जिनमें एक तिहाई केवल भारत में हैं। वर्ल्ड हैपिनेस रपट  अनुसार 155 देशों में भारत का स्थान 122 वां है, यह अच्छी बात नहीं है। वविभिन्न प्राथमिकताओं के तहत हमें खाद्य अनुरक्षण को भी प्राथमिकता देनी होगी वरना भविष्य पर गम्भीर प्रभाव पड़ेगा।

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