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Friday, July 21, 2017

भारत के 14 वें राष्ट्रपति

भारत के 14 वें राष्ट्रपति

 श्री रामनाथ कोविंद भहारत के 14 वें राष्ट्रपति बने। उन्हें भारी बहुमत से विजय मिली जैसा कि सोचा गया था। हालांकि उनके चुनाव में कुछ क्रॉस वोटिंग भी हुई जो देश में विपक्षी एकता के दरारों को साफ बता रहा है। राष्ट्रपति चुनाव में कई राज्यों में बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग भी देखने को मिली। जहां गुजरात, गोवा , प. बंगाल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग हुई वहीं कांग्रेस पार्टी राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में अपने पक्ष में क्रॉस वोटिंग का दावा कर रही है। सबसे चौंकाने वाला नतीजा आया प. बंगाल से जहां 5 विपक्षी विधायकों ने एनडीए उम्मीदवार राम नाथ कोविंद के पक्ष में वोट दिया। उत्तर प्रदेश में जमकर क्रॉस वोटिंग देखने को मिली। राम नाथ कोविंद के पक्ष में 335 मत पड़े जबकि राज्य में बीजेपी और उसके सहयोगियों के केवल 325 विधायक ही हैं। अगर मीरा कुमार का समर्थन कर रही सपा, बसपा और कांग्रेस के सभी विधायकों ने उनके पक्ष में वोट डाला होता तो भी उन्हें 75 वोट मिलने चाहिए थे जबकि उन्हें केवल 65 मत मिले। माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी में शिवपाल यादव और उनके समर्थक विधायकों ने राम नाथ कोविंद के पक्ष में वोट डाला है। गुजरात में केवल कांग्रेस के 57 विधायक हैं जबकि मीरा कुमार को सिर्फ 49 मत मिले। बीजेपी के 121 विधायक हैं जबकि कोविंद को 132 वोट मिले।

कोविंद जी की जिंदगी दलित सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण रहा है। श्री कोविंद की गौ वलय से रायसिना हिल्स तक की यह यात्रा कुछ ऐसे समय में पूरी हुई है जब कि उनकी यात्रा के प्रस्थान क्षेत्र में तिनर्वाचित सरकार की शह पर जाति आधारित हिंसा को बड़ावा मिल रहा है और साथ ही दलितों द्वारा खुद की ताकत दिखाने का हौसला बड़ा है। उधर उनकी मंजिल रायसिना हिल्स के चारों तरफ के सत्ता के गलियारों में गौरक्षा से लेकरल विपक्षी एकता के पहलकदमियों और तरह- तरह की राजनीतिक सरगोशियों से लोकतंत्र की फिजां बदली बदली सी नजर आ रही है। ऐसी स्थिति में यह उम्मीद की जाती है कि श्री कोविंद लोकत्र और संविदान के उद्देश्यों को बनाये रखने में महतवपूर्ण भूमिका निभायेंगे। दिलचस्प बात यह है कि श्री कोविंद अभी जिस राष्ट्रपति भवन में गये हैं वह थोड़ा बदला बदला सा है। यह पहले की तरह नहीं रह गया। अब वहां से उपराष्ट्रपति का कार्यालय अलग हो गया। अतएव यह राष्ट्रपति के अनौपचारिक कार्यों , खासकर विवेकाधीन अधिकारों के उपयोग के लिये तैयारी का स्थल बन सकता है। मसलन, आमचुनाव खत्म होने के बाद त्रिशंकु लोकसभा होने की सूरत में तीन पूर्व राष्ट्रपतियों, आर वेंकेटरमन, डा. शंकरदयाल शर्मा और के आर नारायणन ,ने यह तय करने के लिये कि किसे सरकार बनाने के उद्देश्य से पहला मौका दिया जाय. एक अलग तरीका अपनायाग् था। उन्होंने सबसे ज्यादा सीट पाने वाली अकेली पार्टी को पहले आमंत्रित किया। ऐसे में राजीव गांधी ने आमंत्रण नहीं मंजूर किया जबकि अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वीकार कर लिया, हालांकि उनकी सरकार महज 13 दिन चली थी। उम्मीद है श्री कोविंद को ऐसी स्थितियों से मुकाबिल होना होगा जिसकी कोई स्थायी अथवा तय नजीर नहीं है। खासकर राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने संबंधी उनके अधिकार। इनदिनों यह हाईकोर्ट के निगाहों में रहता है, अब देखना है ऐसे में वे सरकार की सिफारिशों का इंतजार करते हैं या अपने से लगा देते हैं। क्योंकि जिस तेजी से हालात बदल रहे हैं वैसे में या स्थिति आ सकती है। ऐसा ही किसी विधान को लेकर भी हो सकता है। श्री कोविंद को राष्ट्रपति चुना जाना भाजपा के लिये एक समरनीतिक राजनीतिक समझौता भी माना जा सकता है। लेकिन राष्ट्रपति के तौर पर श्री कोविंद को अपने राजनीतिक रंग और सामाजिक बिल्ले से बचना होगा या कहें ऊपर उठना होगा। उनसे उममीद की जाती है कि वे फैसलों पर विचार करते समय अपनी मेधा उपयोग करेंगे और तयशुदा परिपाटियों से संतुलन बनाये रखेंगे। राष्ट्रपति का पद केवल औपचारिक नहीं है। उनसे रबर स्टैम्प होने की अपेक्षा नहीं की जाती है और उममीद की जाती है कि वे लोकतंत्र और संविधान की रक्षा तथा मर्यादा को बनाये रखने के लिये अपने विवेकाधीन अधिकारों करने वाले और रबर स्टैम्प बनने कबिच संतुलन बनाये रखेंगे।   

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