‘आधार’ प्रोजेक्ट एफ बी आई की साजिश
बायोमिट्रिक विवरण जमा हो रहे हैं अमरीकी रक्षा विभाग में
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता : आधार कार्ड के खतरे को लेकर देश में आंदोलन बढ़ता जा रहा है। लोग अपनी निजता को लेकर चिंतित हैं लेकिन आम लोगों को यह मालूम नहीं कि देश के नागरिकों के खिलाफ एक बहुत बड़ी साजिश शुरू हो चुकी है। ‘आधार ’ परिचय पत्र का सारा कारोबार अमरीकी खुफिया विभाग ‘एफ बीआई’ की साजिश है और हर भारतीय नागरिक का समस्त विवरण सीधे अमरीकी रक्षा विभाग में जमा हो रहे हैं। इसका स्पष्ट अर्थ है कि अमरीका हमारे देश के हर क्षेत्र पर सीधी नजर रख रहा है। अमरीका इस तरह से देश की अगली पीढ़ी के लाखों लोगों के सम्पूर्ण विवरण अमरीका के पास जमा हो रहे हैं। इस में नाम, उम्र, पूरा पता, जाति, फिंगर प्रिंट, आंखों की पुतलियों का विस्तृत आकलन, हथेली की छाप और चेहरे की बनावट इत्यादि का सम्पूर्ण विवरण दर्ज है। अमरीका में भी इसी तरह की एक गोपनीय परियोजना आरंभ की गयी थी और लम्बे विरोध के बाद उसे रोक दिया गया। एफ बी आई का डाटाबेस दुनिया सबसे बड़ा डाटाबेस है। यहां यह बता देना जरूरी है कि आधार परियोजना का 13663.22 करोड़ रुपये का ठेका बिना किसी टेंडर के दिया गया और जिन कमपनियों को यह ठेका दिया गया उनके बारे में पूरी तरह से छानबीन नहीं की गयी। सन्मार्ग लम्बी कोशिशों के बावजूद सरकार आधार की गोपनीयता या निजता को अक्षुण्ण रखने के बारे में किये गये आकलन से सम्बंधित कोई दस्तावेज नहीं पेश कर सकी। आधार के कर्ताधर्ता लोगों के पास इस बात का जवाब नहीं है कि अमरीकी कम्पनी मोंगो डी बी,डो एस क्यू एल, इन -क्यू-टेल वगैरह की आधार परियोजना में क्या भूमिका है। इसमें कहने को इन -क्यू-टेल कहने को स्वतंत्र अलाभकारी संस्था है पर सच तो यह है कि यह संस्था सी आई ए के पैसे से चलती है तथा रॉ के पूर्व उच्चधिकारी के मुताबिक मोंगो डी बी और डो एस क्यू एल दरअसल इन -क्यू-टेल के ही अंग हैं। सन्मार्ग ने आधार परियोजना के कई उच्चधिकारियों के से मोंगो डी बी के बारे में प्रतिक्रिया जाननी चाही पर किसी ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक कई और कम्पनियों को यह ठेका दिया गया है पर अनुमानत: 15 पेटाबाइट डाटा एकत्र करने तथा संग्रह करने का काम शुरू में मोगो डी बी के जिम्मे दिया गया पर बाद में जब यह देखा गया कि इतने विशाल डाटाबेस को संभाल नहीं सकता है तो बाद में इसमें एम वाई एस क्यू एल को भी शामिल कर लिया गया। । इसका दफ्तर बंगलोर में है और आधार परियोजना में इसके ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का उपयोग होता है। यहां ‘डाटाबेस श्रेडिंग ’ प्रकिया से इस संग्रहित किया जाता है। यह डाटाबेस बहुत ही गोपनीय और अत्यंत जटिल तरीके से अमरीकी रक्षा विभाग से जुड़ा हुआ है। क्यों किया जा रहा ऐसा : चूंकि भारत एक तेजी से उभरती अर्थ व्यवस्था है और इसमें जो लोग महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं या दंगे उनहें एफ बीआई के ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ के द्वारा किसी भी साजिश के बल पर घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सकता है, खासकर विज्ञान , प्रोद्यौगिकी , सुरक्षा और अर्थ व्यवस्था के क्षेत्र में अग्रणी लोगों पर लगातार निगाह रखी जा सकती है।
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