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Wednesday, July 12, 2017

अमरनाथ के यात्रियों पर हमला

अमरनाथ के यात्रियों पर हमला
पवित्र सावन महीने के प्रारंभिक दिन और वह भी पहले सोमवार को , कहते हैं कि ऐसा योग 50 वर्षों के बाद आया है, अमरनाथ तीर्थ से यात्रा करके लौटे यात्रियों पर आतंकियों अनंतनाग में हमला किया। हमले में 6 तीर्थयात्री मारे गये। यात्रा का यह 11वांदिन था और सरकारी सूत्रों के अनुसार इस दिन 8168 यात्रिरयों ने बाबा अमरनाथ के दर्शन किये थे। अमरनाथ तीर्थयात्रियों के जत्थे पर आतंकियों का यह तीसरा हमला है। पहला हमला 24 साल पहले 1993 में हुआ था, लेकिन यह केवल प्रयास ही रहा। व्यवहारिक तौर पर हमला पहलगाम में अगस्त 2000 में हुआ, जिसमें 25 लोग मारे गये थे।  कश्मीर में कश्मीरियत को कायम रखने की गरज से यहां तीर्थयात्रियों पर हमले नहीं होते हैं। घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद से कश्मीरियत का संतुलन बुरी तरह बिगड़ चुका है। मुख्य मंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस हमले को कश्मीरियत पर हमला बताया है। कहते हैं कि दक्षिण कश्मीर में हिमालय पर 3888 मीटर हिंदुओं के अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल अमरनाथ के गुफा की खोज एक मुस्लिम गड़ेरिये ने 1850 में की थी। इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्प है। वहां अपनी भेड़ों को चराता जब बूटा मलिक गुफा में पहुंचा तो वहां उसे एक संन्यासी मिले। उनहोंने बूटा को कोयले भरा एक थैला दिया। थोड़ा नीचे बूटा ने अपने घर जाकर जब थैला खोला तो वह सोने से भरा था। वह दौड़ा गुफा में आया और वहां केवल बर्फ का एक शिवलिंग उसे देखने को मिला। उसने यह बात गांव वालों को बतायी। मबसे यह तीर्थ बन गया। भारत के दो हिस्से से आये पुजारियों के साथ बूटा मलिक का परिवार भी इस गुफा की ज्म्मिेदारी संभालता है। यह दुनिया में हिंदू – मुस्लिम एकता और देश को एक सूत्र बांधने का एकमात्र प्रयास है। यहां देश के दो कोने से पुजारी आते हैं वे एक है उत्रर के दशनामी अखाड़ा और दक्षिण के पुरोहित सभा मट्टन। आस्था के इस अद्भुत स्थल ने कश्मीर के सदियों पुरानी समन्वित संस्कृति और साम्प्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक में बदल गया। पहला हमला 1993 में पाकिस्तान समर्थित आतंकी गिरोह हरकत उल अंसार ने किया था। उसने इस यात्रा पर पाग्बंदी की मांग की थी और कहा था कि यह हमला बाबरी मस्जिद को ढाहने के विरोध में किया गया है। हमलावरों ने यह भी मांग की थी हजरत बल में जो फौजी बंकर बने हैं उन्हें भी हटा दिया जाय। ​चूंकि स्थानीय आतंकी गिरोहों ने हरकत उल अंसार का साथ नहीं दिया और इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तीर्थयात्री सकुशल लौट गये। कश्मीरी आतंकी आमतौर पर या​त्रियों पर हमले नहीं करते। यहां तक 1999 में जब करगिल युद्ध चल रहा था तो केंद्र सरकार के पत्र सूचना कार्यालय से एक विज्ञप्ति जारी हुई थी जिसमें कहा गया था ‘‘मोक्ष के इच्छुक श्रद्धालु कश्मीर की चुनौती भरी चड़ाइयाहें पर जाते हैं यह करगिल में युद्धरत हमारे सैनिकों से एकजुटता का प्रतीक है।’’ इस विज्ञप्ति के बाद भी कश्मीरी आतंकियों ने तीर्थयात्रियों पर हमले नहीं किये। सोमवार को हमले के तुरत बाद आतंकियों को यह अहसास हुआ कि उनहोंने सीमा रेखा लांघ दी हैऔर फौरन अलगाववादी नेताओ ने इसकी निंदा आरंभ कर दी। हमले के बाद सैयद अली गिलानी, मीरवाइज उमर और मोहम्मद यासीन मल्लिक ने एक संयुक्त बयान जारी कर इस घटना की निंदा की और कहा कि यह कश्मरीयत के मूल पर हमला है। इस हमले के बाद कश्मीर में प्रदर्शन शुरू हो गये और वैष्णो देवी यात्रा को भी बाधा महसूस होने लगही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी , केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा मंत्री अरूण जेटली ने इस घटना की तीव्र निंदा की है और कहा है कि ‘इस हमले ने आतंकवाद का नाश करने की हमारी प्रतिबद्धता को और मजबूत कर रही है।’ यह हमला दो बातों की ओश्र की ध्यान दिला रहा है। अगर इसे देसी आतंकियों के अंजाम दिया है तो इससे देश में और हमले की आशंका बढ़ सकती है और देशभर के तीर्पिर हमले का खतरा बढ़ सकता है। दूसरे ​कि अगर यह बाहर के आतंकियों की करतूत है तो सचेत रहना होगा क्योंकि उसपार से आकर अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।

 

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