बिहार में राजनीतिक बवंडर, नीतीश ने इस्तीफा दिया
बिहार में बुधवार तेजस्वी यादव को लेकर चले दिन भर के राजनीतिक ड्रामें के बाद शाम लगभग 6 बजे अचानक मुख्यमंत्री नतिश कुमार ने राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। बिहार के स्ट्रांगमैन लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव इन दिनो करप्शन के आरोप में फंस गये थे। नीतीश कुमार ने इस्तीफे के बाद कहा कि उनहोंने बिहार के हित में इस्तीफा दिया है। बिहार के जद यू विधायकों ने नीतिश कुमार के इस कदम को सराहा है और उनके साथ रहने का वादा किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा है कि ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुड़ने के लिये नीतशि कुमार जी को बहुत बहुत बधायी। सवा सौ करोड़ नागरिक इमानदारकि स्वागत करते हैं।’ उनके इस कदम के बाद गठबंधन के दोनों दलों में दूरी और बढ़ेगी। इस्तीफे के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि जब से तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं तबसे उन्हें इस्तीफा देने के लिये कहा जा रहा है। लेकिन उन्होंने इसे नहीं माना, जबकि जरूरत इस बात की थी कि वे इस्तीफा देकर अपने को निर्दोष साबित करते पर उनहोंने ऐसा नहीं कियाग् उल्टे इस्तीफा नहीं देने पर अड़े रहे। हालात बिगड़ते गये। नीतीश कुमार ने कहा कि उनकु इस जिद के कारण वहां काम करना मुश्किल हो गया था। नीतीश कुमार ने यह फैसला लेने के पहले कांग्र्रेस के नेताह राहुल गांधी से भी मशविरा किया। नीतीश कुमार ने कहा कि इस फैसले के पहले उन्होंने कांग्रेस के नेताओं से भी समाधान खोजने को कहा था। नीतीश के बरम्बार कहने के बावजूद तेजस्वी ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया। यहां तक कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी साफ कह दिया कि तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे। इससे राजनीतिक हालत बिगड़ने लगी। इधर लालू प्रसाद ने कहा कि मीडिया मिथ्या प्रचार कर हममें और नीतश जी में दरार डाल रही है। उधर नतिश कुमार ने कहा कि 20 महीने के बाद जो चीजे सामने आ रहीं हैं उसमें काम करना मुश्किल हो गया है। हालांकि नीतीश कुमार ने कभी तेजस्वी से सीधे इस्तीफा नहीं मांगा और लालू यादव से भी बातें करते रहे। राजनीति में खास कर सत्ता की सियासत में साफ होने से ज्यादा जरूरी होता है साफ दिखना। तेजस्वी साफ थे या नहीं यह तो कहना मुश्किल है पर वे साफ दिख नहीं रहे थे। ऐसे में उनका कर्त्तव्य था कि वे सत्ता के गलियारे से बाहर आकर खुद को साफ प्रमाणित करते। इस मामले में उनहोंने राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी। लालू यादव से भी लगातार बातें चल रहीं थी लेकिन लज्जाहीनता की हद हो गयी थी कि ना तेजस्वी तैयार थे इस्तीफे के लिये और ना लालू तैयार थे इस्तीफा दिलवाने के लिये। लालू आरंभ से ही भ्रष्टाचार को लेकर विवाद का विषय बनते रहे हैं। भारत की आधुनिक राजनीति में रुपया कमाना आम बात है पर इस तरह अगर बात खुल जाय तो कुछ करना जरूरी होता है। कफन में जेब नहीं होती कोई अपने साथ दौलत ले कर नहीं जाता। विगत तीन महीने से यह मामलाल चर रहा था। बिहार के विपक्ष के नेता सुशील मोदी बार बार कह रहे थे कि तेजस्वी ने और लालू यादव के परिवार के अन्य लोगों ने भारी बेनामी सम्पत्ति एकत्र की है। उधर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार में अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता सुशील मोदी को फोन कर रणनीति तैयार करने को कहा है और इस उद्देश्य से सुशील मोदी के घर में पार्टी के नेताओं की बैठक आरंभ हो चुकी है। नीतीश के इस कदम के बाद बिहार में गटबंधन का चलना कठिन होता दिख रहा है। मौजूदा स्थिति में बिहार विधान सभा में जद यू के 71, भाजपा के 53 और राजद के 80 विधायक हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने भी मध्यस्थता का प्रयास किया पर कुछ नहीं हो सका। बिहार के गठबंधन के टूटने का असर देश बर में दिखेगा खासकर नरेंद्र मोदी के 2019 के चुनाव जीतने से रोकने के प्रयास पर तो इसका सीदा असर पड़ेगा। 18 विपक्षी दलों का जो संभावित गठबंधन होने वाला था अब उसमें दरार सी होती दिख रही है। क्योंकि यह गठबंधन बिहार स्टाइल में होने वाला था। बिहार का गटबंधन सत्ता की राजनीति का अनोखा उदाहरण था। यहां चार वर्षों के विरोधी दल ने हाथ मिलाये और भाजपा के विजय रथ को रोक दिया। नीतीश कुमार के इस कदम से राजद को काफी आघात लगा है और वह एक वैकल्पिक महागठबंधन बनाने की तैयारी में जुट गया है। धर इस्तीफा देकर नीतीश कुमार ने एक बड़ा सियासी दांव चला है। हालांकि राज्य में आगे सियासी हालात हांगे यह कहना कठिन है पर नीतीश कुमार ने इस फैसले से अपनी साहसिक छवि बकनायी है तथा जनता में संदेश भेजा है कि वे साहसिक फैसले ले सकते हैं और करप्शन बर्दाश्त नहीं करते हें। फिलहाल 243 सदस्यों की बिहार विधान सभा में सरकार बनाने के लिये 122 विधायकों की जरूरत है और भाजपा तथा जद यू को मिला कर 129 विधायक होते हैं। संभव है वहां भाजपा को मिला कर सरकार बन जाय।
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