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Thursday, July 27, 2017

नीतीश मुख्यमंत्री थे , मुख्य मंत्री हैं  पर बदला क्या 

नीतीश मुख्यमंत्री थे , मुख्य मंत्री हैं  पर बदला क्या 
यह सब गद्दी का एक अजीब सा खेल महसूस हो रहा है। बुधवार की रात जद यू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने बड़े ही नाटकीय ढंग से इस्तीफा दे दिया और फिर सुबह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। कितना विचित्र नाटक है।रात में अंतरात्मा की आवाज़ पर इस्तीफा और सुबह राजनीतिक ज़रूरतों के चलते फिर  शपथ ग्रहण। 12 वर्षों में उन्होंने छठी बार इस पद की शपथ ली। कल शाम  बीच क्या बदला? महागठबंधन का एक कैबिनेट के नेतृत्व करने वाले सुबह में भा ज पा के झंडे तले बने एन डी ए की बैसाखी पर खड़े नजर आए। इस नए समीकरण पर नई मुहर लगी और सुशील मोदी ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बिहार के कार्यवाहक राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने 9 मिनट के एक समारोह में उन्हें पद  और गोपनीयता की शपथ दिलाई। आज यानी 28 जुलाई को सदन में शक्ति परीक्षण होगा। बुधवार की शाम को नीतीश जी आत्मा की आवाज पर इस्तीफा दिया पर सच तो यह था कि उन्होंने भा  ज पा  से हाथ मिलाने के लिए यह कदम उठाया। नीतीश कुमार के इस्तीफा देने के तुरंत बाद 132 विधायकों की सूची लेकर भा ज पा के नेता सुशील मोदी ने राजभवन की दौड़ लगाई। अपने इस लंबे करियर में नीतीश पार्टियों- मोर्चों और नेताओं को जोड़ने तथा तोड़ने में माहिर साबित हुए। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस और बिहार की जनता के साथ दगा किया है। मीडिया से बातें करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि नीतीश सिद्धान्तहीन और अवसरवादी हैं और अपने लाभ के लिए कुछ भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ने सम्प्रदाय विरोधी संघर्ष के लिए  उन्हें( नीतीश जी को ) जनादेश दिया था पर उनहाने उसी जनता को शर्मिंदा किया है। लालू यादव ने भी भा ज पा और उसके नेताओं पर तीखे हमले किये। लालू यादव ने पूछा है कि नीतीश जी बिहार की जनता से बार बार  कहा कि  वे कभी भा ज पा में नहीं लौटेंगे पर लौट गए। अब वे बिहार की जनता को क्या मुंह दिखाएंगे? उन्होंने कहा कि नीतीश जी के इस्तीफे के बाद से उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी थी और उसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए था। वे इस मामले  को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
इस राजनीतिक ड्रामे से कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं। अगर नीतीश महागठबंधन से बाहर आये तो भा ज पा की बाहों में समा गए? नीतीश का टूटना, भाजपा द्वारा समर्थन करना और प्रधान मंत्री का ट्वीट सब सुनियोजित लगता है। इस सबके मूल में लालू प्रसाद अपने परिवार के लिए अंधा प्रेम दिखता है। दोनों को बिहार की जनता को जावेआब देने होंगे। अगर लालू भा ज पा को रोकना चाहते थे जैसे वे दुनिया को बताते चलते हैं तो उन्होंने अपने पुत्र तेजस्वी को इस्तीफा देने से क्यों रोका?  क्यों नहीं लालू जी ने तेजस्वी की जगह पार्टी के किसी सीनियर नेता को नामजद किया? नीतीश ने बहुत चालाकी से खुद भ्रष्टाचार  के विरूद्ध  योद्धा के रूप में पेश किया। नीतीश जानते थे कि लालू यादव पर दोष साबित हो चुका है और चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित हैं ,   इसके बावजूद उन्होंने लालू से हाथ मिलाए और सरकार गठित की, आखिर क्यों? इसका साफ अर्थ है कि उनकी भी नियत साफ नही थी। यह कितना जायज है कि करप्शन के दोषी - लालू- से हाथ मिलाते हैं और जिसपर करप्शन का आरोप ही केवल है उसके साथ सरकार नही चला पाते हैं। यह नैतिक और राजनीतिक तौर पर कयना सही है कि जिस पार्टी में एक ऐसा मंत्री - उमा भारती- है जिसपर बाबरी कांड में आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है, उस पार्टी के साथ मिल कर सरकार बना लें।भ ज पा का एक मंत्री- मध्य प्रदेश में-  चुनाव परिणाम में जालसाजी के कारण हटाया जा चुका है और उस पार्टी के साथ सरकार बनाना कितना जायज है? वैसे लगता है कि लालू प्रसाद भी कपङे अतीत से कुछ सीख नही पाए। जो उन्हें करना चाहिए था- तेजस्वी का इस्तीफा- वह नहीं किया और इस तरह से भारी विपत्ति मोल ले ली। इसका असर 2019 के चुनाव में दिखेगा। बिहार का असर देश में विपक्षी गठबंधन पर भी पड़ेगा और मोदी जी के लिए राह आसान हो गई। राज्य सभा में तो तत्काल इसका असर दिखेगा। दूसरी तरफ  ऐसा कर के नीतीश जी ने भविष्य में  लौटने के अपने दरवाजे बंद कर लिए। कहते हैं ना कि जो आदमी प्रधान मंत्री पद के लिए उम्मीदवार ह्यो सकता था वह मुख्यमंत्री तक सीमित हो गया।

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