फिर गौरक्षकों पर बरसे मोदी
सर्वदलीय बैठक को सम्बोधित करते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर गौ रक्षकों पर उघ्हड़ गये। उनहोंने अपने खास अंदाज में कहा कि चंद समाजविरोधी तत्व गौरक्षा को अत्याचार का बहाना रहे हैं। इससे देश की छवि भी प्रभावित हो रही है। सभी राजनीतिक दलो को चाहिये कि गे रक्षा के नाम पर इस गुंडागर्दी की तीव्र भर्त्सना करें। चूंकि कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है और यह उनकी सब्गसे बड़ी जिममेदारी भी है अतएव प्रधानमंत्री ने राज्यों को सलाह दी कि वे गेरक्षा के नाम पर हिंसा विरूद्ध कठोर कार्रवाई करें। गोमांस खाने के आरोप पर लोगों पर हमले और उन्हें पीट पीट कर मार दिये जाने या कई बार तो गौ विक्रताओं को मार डालने की खबरों के बाद उनहोंने यह प्रतिक्रिया जाहिर की है। लेकिन सवाल अठता है कि प्रधानमंत्री जी की यह बात असर डालेगी? क्या गौ रक्षक अपनी राह बदल देंगे या कानून हाथ में लेना छोड़ देंगे? आपको याद हो ना याद हो लेकिन उपलब्ध आंकड़े बमताते हैं कि विगत 344 दिनों में यानी एक साल से भी कुछ कम अवधि में चौथी बार प्रधानमंत्री जी ने यह स्वयंभू गौरक्षकों को यह चेतावनी दी है। पहली बार उन्होंने 6 अगस्त को को इस बारे में चेतावनी दी थी। इंदिरागांधी स्टेडियम कॉम्प्लेक्स में अपने भाषण में मोदी जी ने कहा था कि ‘‘गोयक्षा के नाम पर दुकानदारी करनेवालों पर मुझे बहुत गुस्सा आता है।’’ उनहोंने कहा था कि ऐसे लोगों के मामलों की फाइल बनायें। इनतें 70 से 80 प्रतिशतन तो समाजविरोधी हैं। इसके एक दिन के बाद तेलांगना में अपने भाषण के दौरान वे उन्होंने फिर यह मामला उठाया। पिछले महीन साबरमति आश्रम अहमदाबदा में उन्होंने चेतावनी दी और कहा कि गौभक्ति के नाम पर लोगों की हत्या स्वीकार्य नहीं है।
लेकिन इन 344 दिनों में उनकी बातों का क्या असर हुआ? इस दौरान गौरक्षा के नाम पर मार पीट में 7 आदमी मरे। इनलोगों कों कथित गौरक्षकों इतना पीटा कि वे काल के गाल में समा गये। हमले और हमलो में घयल लोगो की बात दर किनार है। इससे साफ जाहिर होता है कि प्रधानमंत्रियों की बार बार की चेतावनियों के बाद भी हालात सुधरने की बजाय बिगड़ गये हैं। पधानमंत्री ने राज्यों पर भी दोष मढ़ना चाहा और कहा कि यह रग्ज्यों का विषय है। लेकिन देश के 16 राज्यों में एन डी ए का शासन है और इस क्षेत्र में देश 61 प्रतिशत आबादी रहती है। आमोदी जी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं पार्टी के लिये उनके कथन ब्रह्म वाक्य माने जाते हैं। फिर भी उनकी चेतावनियां बेअसर होती दिख रहीं हैं। यह बड़ा रहस्यमय लग रहा है।
इससे ऐसा लगता है कि संघ परिवार, जिसके प्रधानमंत्री भी सदस्य हैं, किस तरह अलग- अलग मामलों को अलग- अलग चश्मों से देखता है। जिस दिन प्रधानमंत्री सर्व दलीय बैटक को सम्बोधित कर रहे थे और गौ रक्षकों को समाजविरोधी बता रहे थे उसी दिन ब्रज क्षेत्र में विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया भाजपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित कर रहे थे। उनहोंने कार्यकर्त्ताओं से कहा कि ‘गौ रक्षकों को ना किसी से डरना चाहिये ना किसी दबाव में आना चाहिये। गौओं की रक्षा का काम उन्हें जारी रखना चहिये। ’ अब एक तरफ प्रधानमंत्री जी गौरक्षक समूहों के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं तो दूसरी तरफ संघ परिवार के एक समूह के प्रमुख गौरक्षकों से निर्भय हो कर काम करने की अपील करते हैं। इससे साफ पता चलता है कि यदि संघ परिवार गौ रक्षा के मामले में प्रधानमंत्री जी के साथ नहीं रहेगा तो मोदी जी की चेतावनियां बेअसर ही रहेंगीं। … और अगर वे अपनी ही सोच या बात को लागू नहीं कर पाते तो उनकी छवि क्या रह जायेगी यह बताने की बात नहीं है।
अगर समाज वैज्ञानिक तौर पर सोचें तो मोदी जी इसे रोक नहीं सकते क्योंकि भाजपा के सत्ता में आने का आधार ही सामाजिक नियंत्रण की हिंदुत्व रणनीति है। भीड़ का भय इस रणनीति का प्रमुख भाग है। किसी अपराध की सजा के तौर पर भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार दिया जाना वस्तुत; अंतर समूह नियंत्रण (इंटर ग्रुप कंट्रोल) को लागू किया जाना है। इस सिलसिले में यह जरूरी नहीं है कि मारा जाने वाला सचमुच अपराधी था या नहीं, मार दिया जाना एक व्यापक राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति का जरिया है। इससे सरकार को भी अपनी संकीर्णतावादी नीतियों को लागू करने में सहूलियत होती है। हमले या आलोचना के भय से विरोधी आवाजें नहीं उठती हैं। इसलिये मोदी जी की ऐसी बातें सिर्फ बातें ही रह जाती हैं।
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