अभी या फिर नहीं कभी
अमरनाथ के बेकसूर तीर्थयात्रियों पर हमले कर पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने बर्दात की हर सीमा लांघ दी है। ये तीर्थ यात्री श्रीनगर से घूम कर लौटे थे। इस हमले से स्पष्ट संदेश जाता है कि कश्मीर में तीर्थ यात्री या पर्यटक कोई सुरक्षित नहीं है। दक्षिण कश्मीर में आतंकवाद का नंगा प्रदर्शन इस बात का सबूत है कि अनंतनाग या उसके आसपास पाकिस्तान समर्थित आतंकियों का बोलबाला है। सुरक्षा बलों का कहना है कि अनंतनाग, पुलवामा, सोफियां और कुलगाम में आतंकियों के बड़- बड़े अड्डे हैं। चाहे वह अचलबाग के थाना प्रभारी फिरोज अहमद दर और उनकी टीम की हत्या हो या तीर्थ यात्रियों की या पर्यटकों की एक बात तो स्पष्ट है कि आतंकी दक्षिण कश्मीर को अपना गढ़ बना चुके हैं। अब सुरक्षा कीर्मयों को चाहिये जैसे पुराने जमाने में हमलावर एक एक गांव पर विजय हासिल कर पूरे राज पर काबिज हो जाते थे उसी तरह दक्षिण कश्मीर के एक गांव को आतंकियों से खाली कराना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे वापस ना आ सकें। हालांकि अमरनाथ यात्रियों पर हमले की खुफिया सूचना थी और बहु स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था भी की गयी थी। अब एक बस के यात्रियों ने सुरक्षा के मानदंडों को अनदेखा कर दिया और मारे गये। ये लोग तीर्थ यात्रा से लौटे थे और श्रीनगर घूमने गये थे। इससे साफ जाहिर है कि आतंकियों ने फकत तीर्थयात्रियों को ही निशाना नहीं बनाया बल्कि उन्होंने पर्यटकों की भी हत्या की। अब सवाल उठता है कि क्या कश्मीर पर्यटन के लिये सुरक्षित नहीं हैं? क्या पर्यटकों को अपने होटल से या जहां वो ठहरे हैं वहां से शाम 7 बजे के बाद बाहर नहीं लौटना चाहिये। वहां एक स्टैंडर्ड तरीका है। सड़क चालू करने के लिये फौजियों का एक जत्था सुबह से शाम तक तैनात होता है। तीर्थ यात्रियों के साथ सैनिक चलते हैं और जब तीर्थ यात्रियों का जत्था आधार शिविर पर लगभग साढ़े चार बजे पहुंच जाता है तो सड़क पर तैनात फौजी टुकड़ी 7.30 बजे के आसपास हटा ला जाती है। अब प्रश्न है कि यात्रियो भरी बस को 7.30 के बाद क्यों जाने दिया गया? यह सुरक्षा में ढील का नतीजा है। इससे साफ जाहिर होता है कि आतंकियों की योजना सुनियोजित है और वे अपनी योजना को पूरा करने में अचूक हैं। उन्होंने एक साथ एक चेक नाके पर हमला किया, यात्रियों से भरी बस पर हमला किया और फिर सैनिकों के एक शिविर पर भी हमला किया और भाग निकले। ये सारे हमले लगभग एक साथ हुये।
लश्करे तैयबा के आतकि बशीर लश्करी को मारे जाने के विरोध में लश्कर के आतंकियों ने एक नये सरगना इस्माइल के नेतृतव में जगह जगह हमले कर रहे हैं और फौज तथा सुरक्षा बल इस्माइल के सफाये के लिये छापे मार रहे हैं। आतंकी दबाव में हैं और वे कुछ ऐसा करना चाहते थे कि सुर्खियों में छा जाएं। हमारे देश की सबसे बड़ी मजबूरी है कि यहां कुछ बुद्धिजीवी कश्मीर की जंग को आजादी की लड़ाई मानते हैं और अनर्गल तर्क देते हैं। उनकी ये दलीलें आतंकियों और पत्थरबाजों के लिये नैतिक कवच का काम करती हैं। इधर सुरक्षा बलों के जवान यह मानते हैं कि इस तरह की दलीरलें हमें अपने काम करने में हिचक पैदा करतीं हैं। कुछ पत्थरबाज तो आतंकी संगहटनों के लिये ही काम करते हैं और खुलकर काम करते हैं। अब अगर सुरक्षा बलों के मेजर गोगोई ने चुनाव आयोग के अफसरों को पत्थरबाजों से बचाने के लिये किसी कश्मीरी को जीप के बोनट पर बांध ही दिया तो ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया। चारो तरफ से आलोचना शुरू हो गयी। पत्थरबाजी रुकी नहीं है हालांकि कम हो गयी है। कुछ आतंकी भी भाग निकले हैं। इधर दुनिया बदल रही है। कई देश मानने लगे हैं कि कश्मीर की यह लड़ाई आजादी की जंग नहीं है। अमरनाथ यात्रियों की हत्या ने इस विचार को और पुखता किया है।
अब मोदी जही को अपना वचन पूरा करना चाहिये कि ‘‘वो (पाकिस्तान समर्थित आतंकी या पाकिस्तानी फौजी) एक मारेंग तो हम दस मारेंगे। ’’ अब वक्त आ गया है कि सरकार कुछ करे अगर अब नहीं तो कभी नहीं। यही मौका है। बढ़ के मारो।
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