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Thursday, July 20, 2017

ज्यादा से ज्यादा प्रचार और कम से कम चिंतन 

ज्यादा से ज्यादा प्रचार और कम से कम चिंतन 

भारत के इतिहास में सबसेज्यादा राष्ट्रवादी सरकार सुरक्षा के क्षेत्र में सिफर साबित हो रही है। ड्राइंग रूम की आराइशों या मंचों की चमकती रोशनी के बीच सुरक्षा बलों के लिये कलेजा काट कर रखने वाले देशभक्तों की जमात मरते हुये सिफाहियों के बारे में दरअसल कुछ नहीं सोचती। उन्हें तो यह सब कर के आलोचकों की जुबान बंद करनी होतीहें ताकि वे हकीकत के लिये आवाज ना उठाये। छत्तीस गढ़ के जंगलों में सीआरपीएफ के जवान नक्सलियों द्वारा बिछायी गयी सुरंगों के विस्फोट से चीथड़ों में बदल दिये जाते हैं। हमारी राष्ट्र भक्त सरकार उन चीथड़ों में बटोर कर ताबूत में डाल देती है और लास्ट पोस्ट की शोकभरी धुन में खो जाती है उनके परिजनों की सिसकियां, विध्टावाओं की हृदय विदारक दहाहड़ और बच्चें की मासूमियत। बदले फीचर्स के साथ कुछ ऐसा ही कश्मीर में हो रहा है। जिनके हाथों में लैपटॉप या कलम होनी चाहिये उनके हाथ में पत्थर या बम दिख रहे हैं, कलाशिनिकोव दिख रहे हैं और नागरिकों की हिफाजत के लिये तैनात फौज मजबूरन नागरिकों को ही मार रही है। बची खुची कसर गोरक्षा के नाम पर हमलों और हत्याओं से पूरी कर दी जा रही है। क्या विडम्बना है कि गोहत्या के अपराध में पकड़े गये आदमी को 14 वर्ष की सजा मिल रही है और दारू पीकर मोटर से राहगीर कुचल डालने वाले अपराधी को दो वर्ष। …और हमारी सरकार मन की बात में लीन है और उनके भक्त मंचों से देश भक्ति के नये नये मुहावरे गढ़ रहे है। इधर किसान आत्म हत्याएं कर रहे हैं और हमारे टैक्स का पैसों से कृषि का विकास नही अनाज का आयात किया जा रहा है ताकि कृषि व्यवस्था और पंगु हो जाय। यह जानकर हैरत होगी जिस कालखंड में सबसे ज्यादा किसानों ने खुदकुशी है उसी अवधि में खाद्यान्न का आयात न केवल 110 गुना बढ़ा है बल्कि पिछले साल तो गेहूं चावल पर से आयात शुल्क भी हटा लिया गया। इसके बाद तो व्यापारियों के लिये स्थानीय मंडी से सस्ता हो गया ऑस्ट्रेलिया से गेहूं का आयात करना। अब आस्ट्रलिया के सूअरों के खाने से बचा गेहूं अब हमारे देश के इंसान खायेंगे, किसान सल्फास खायेंगे और जवान गोलियां खाएंगे, ‘नेताजी’ विदेशी नेताओं को गले लगायेंगे और उनके भगत नारे लगायेंगे- हमारा भारत महान।

इन सारी बातों को छोड़ दें केवल कश्मीर की ही बात करें जो अभी सबसे ज्यादा ज्वलंत मुद्दा है। यदि भक्तजन बुरा ना मानें तो कहा जा सकता है यह सरकार जो सबसे ज्यादा राष्ट्राभिमुख है , इस समस्या को सुलझाना ही नहीं चाहती। आज देश के हर नागरिक को यह चुनौती है कि वह सोचे कि कश्मीर में जहां राजतरंगिनी की धुन गूंजती थी वहां गोलियों की आवाज क्यों गूज रही है। विगत 70 सालों से क्यों कायम है सम्प्रभुत्व लोकतांत्रिक भारतीय गणराज्य में यह मौत-हत्या-बर्बादी-सांस्कृतिक –आध्यात्मिक विनाश। इसका सबसे हास्यास्पद पक्ष यह है कि कोई सरकार इस बारे में लोगों को सही हालात बताना ही नहीं चाहती। ‘मेक इन इंडिया’ का ब्रोक्ररेज पाने वाले नेता ‘ब्रेक इन इंडिया’ की हकीकत को छिपाने का हुनर जानते हैं। हमारे देश की फौज का हर जनरल जानता है कि कश्मीर की समस्या कैसे सुलझ सकती है। जब छोटे से सीरिया ने अपने मुल्क को आई एस आई एस से मुक्त करा लिया तो कश्मीर में छोटे से जिहादियों का गिरोह क्यों नहीं खत्म किया जा सकता है। यह जानकर हैरत होगी कि सीरिया का प्राचीन नाम सूर्या था जो लैटिन से अंग्रेजी और अंग्रेजी अरबी में आते हुये सीरिया बन गया। उसने आतंकिया से मुल्क को मुक्त करा लिया तो हमारा सूर्यक्षेत्र कश्मीर क्यों नहीं आतंकियों से मुक्त हो रहा है। थोड़े जिहादियों की क्या औकात है कि वे हमारी विजयिनी सेना के आगे टिक जाएं। पर कोई सरकार सेना को गंभीरता से नहीं लेती। सरकार को मालूम है कि कश्मीर अशांत रहेगा, सीमा पर बेचैनी बढेगी तो देश में लोग पेट की अकुलाहट भूल जायेगे या बताने से हिचकेंगे। भूख के बारे में बात करने वाले की जुबान बंद करने के लिये एक ही जुमला काफी है कि ‘सीमा पर जवान मर रहे हैं और आपको खाने की थाली दिख रही है, आप तो देशद्रोही हैं।’ आज एक अजेय और जझारू सेना का बहुत तेजी से राजनीतिकरण हो रहा है। इसका उपयोग ना केवल राजनीतिक लाभ के लिये हो रहा है पर बल्कि इसे भी राजनीति का हिस्सा बनाया जा रहा है। कश्मीर जल रहा है पर हमारे नेता सऊदी अरब के किंग और अन्य खाड़ी देशों के सुल्तानों के साथ खा पी रहे हैं जबकि उन्हें मालूम है कि कश्मीरी जिहदियों को इन्हीं लोगों का पैसा मिलता है। चाहे वह किसानों की समस्या हो या नक्सलियों की या जिहादियों की इन सबसे अलग अभी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है ‘‘ज्यादा से ज्यादा प्रचार और कम से कम चिंतन ’’ तथा इस समस्या में फंस गयी है सेना और आम आदमी। खास आदमी तो हमेशा मजे लोता रहा है।       

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