CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Tuesday, January 8, 2019

सवर्णों को 10% आरक्षण 

सवर्णों को 10% आरक्षण 

नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्णों के लिए 10% आरक्षण देने का फैसला किया है । यह आरक्षण उन लोगों को मिलेगा जिनकी आय 8 लाख रुपए सालाना से कम है या जिनके पास 5 एकड़ से कम जमीन है । इस संबंध में संविधान संशोधन विधेयक कैबिनेट ने सोमवार को एक बैठक में पारित कर दिया। मंगलवार को इसे लोकसभा में रखा गया जहां लंबी बहस के बाद यह बहुत ज्यादा वोटों से पारित हो गया। अब सवाल उठता है कि  क्या यह फैसला लागू हो पाएगा? यह तो वक्त ही बताएगा। इस पूरे फैसले में शुरू से ही गड़बड़ नजर आ रही है। क्योंकि, अक्सर कैबिनेट की बैठक बुधवार को होती है लेकिन इसे सोमवार को बुला लिया गया था और मंगलवार को संसद का आखरी दिन था। इस फैसले को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना जरूरी है और चूंकि  लोकसभा में सत्तारूढ़ दल का बहुमत है इसलिए यह संविधान संशोधन विधेयक भारी मतों से पारित हो गया। बुधवार को   राज्य सभा में रखा जाएगा  वहां क्या होगा यह तो वक्त बताएगा  लेकिन  इसी उद्देश्य के लिए  राज्य सभा की बैठक  एक दिन बढ़ाई गई है । कुछ लोगों का कहना है  कि इसे सुप्रीम कोर्ट में  चुनौती दी जा सकती है। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए।  लेकिन  संभवत ऐसा नहीं हो पाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के बाद सुप्रीम कोर्ट के लिए इसमें बहुत ज्यादा  कुछ नहीं है, वह सिर्फ इसकी समीक्षा कर सकती है। 
         थोड़ी देर के लिए यह कहा जा सकता है कि सरकार के इस फैसले से विपक्षी दलों की हवा खिसक गई है। लेकिन  इसका गंभीरता से अध्ययन किया जाए तो ऐसा लगेगा कि इससे पिछड़ी जातियां भाजपा से नाराज हो  जाएंगी। यह फैसला लोकसभा चुनाव को नजर में रखकर किया गया है । देखिए आगे क्या होता है। एक बड़े सरकारी अधिकारी के अनुसार पार्टी को उम्मीद है कि वह विपक्षी दलों को इस हथियार से पछाड़ देगी। यह संशोधन अनुसूचित जाति - जनजाति कानून में पिछले वर्ष किए गए संशोधन से पार्टी को जो आघात लगा था उसे संभवत दूर करने का प्रयास भी इसे कहा जा सकता है। अतीत में भी एक इसी तरह के प्रयास ने  राजनीति की दिशा बदल दी थी । 1990 का बीपी सिंह द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों को स्वीकार किया जाना बहुतों को याद होगा। लेकिन शायद मोदी सरकार की बात इस 10% से नहीं बनेगी। सवर्ण आरक्षण का यह फैसला सवर्णों को मनाने की गरज से भी किया गया है। समरसता खिचड़ी से लेकर और कई अन्य प्रयास सब फेल हो गए। अब भाजपा चाहती है कि सवर्णों के मूल जनाधार को
पकड़े रहा जाए । साथ ही, मराठा, जाट, गुर्जर आरक्षण की मांग को भी इसमें जोड़ लिया जाएगा । 
         नरेंद्र मोदी सरकार का यह फैसला राजनीतिक प्रहसन  और मानवद्वेषी  नीति का ताजा उदाहरण है। इन दिनों भारत दो तरह की  हकीकत से मुकाबिल है। इस प्रस्ताव में इस मामले में इमानदारी का एक तत्व है। यह स्वीकार करता है कि यह सरकार हर मोर्चे पर बुरी तरह नाकाम हो गई है। सबसे बड़ी हकीकत यही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था नौकरियों का सृजन नहीं कर पा रही है। काम धंधा चौपट हो गया है।  हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसे लोगों को प्रशिक्षित नहीं कर पा रही है जो अर्थव्यवस्था में भागीदार बन सकें। इस नाकामी के संदर्भ में पढ़े-लिखे सवालों को भरमाने  के लिए रिजर्वेशन का रास्ता अपनाया गया है। वे काम धंधे नहीं मुहैया करा सकते इसलिए सवर्णों में पढ़े लिखे लोग जो हैं उसे यह झुनझुना थमा दिया जा रहा है । यह मामला तब है जब सरकारी नौकरियों का भारी अभाव है। अर्थव्यवस्था को तेज गति देने का वह जुमला खत्म हो गया। अब हम फिर उसी गरीबी के पुराने दिनों में लौट आए हैं । भारत को आरक्षण का एक प्रभावशाली तरीका अपनाना चाहिए और सकारात्मक कदम उठाना चाहिए खासकर के दलितों के मामले में। लेकिन मंडल के बाद हमारी आरक्षण नीति एक तरह से बहुलतावादी राजनीति का उदाहरण बन गई है । यहां सियासत और सत्ता की जरूरतों के आधार पर सारी बातें और सारी नीतियां तय होती हैं। इस पहल का  शिकार दलित ही होते हैं । हर समुदाय अपने को पीड़ित पाता है। आरक्षण का उद्देश्य सही रूप में हाशिए पर बैठे लोगों तक पहुंचता ही नहीं है। आर्थिक रूप से वंचित लोगों की जरूरतों को आरक्षण के माध्यम से पूरा करने का विचार निरर्थक है। ऐसी सामाजिक हालत में एक नई व्यवस्था लागू होने जा रही है। लेकिन इस व्यवस्था को लागू किए जाने का वक्त और इसमें जो शर्तें रखी गई है दोनों से निराशा झलकती है। पिछले आरक्षण की तरह इसमें भी पूरा विचार-विमर्श नहीं किया जा सका। हमारे देश में गैर बराबरी की लड़ाई अभी चल ही रही थी । उसे समाप्त नहीं किया जा सका था। सामाजिक और शैक्षणिक शर्तों पर नौकरियां देने की बात थी आर्थिक शर्तों पर ऐसा कुछ नहीं था । यह नया प्रबंध है । यह गैर बराबरी को बढ़ावा देगा। गैर बराबरी को बनाए रखने की मंशा इसके पीछे स्पष्ट दिखाई पड़ रही है।
          सभी नकारात्मक पहलुओं के बावजूद इसमें एक सकारात्मक पहलू भी है। वह कि इससे आरक्षण का दर्द समाप्त हो जाएगा। ऐतिहासिक रूप से आरक्षण जातियों से जुड़ा हुआ था और सवर्ण समुदाय के लोग आरक्षण से नौकरियों में आए लोगों को अयोग्य  समझते थे और अक्सर उनकी खिल्ली उड़ाई जाती थी। अब जबकि इसमें सवर्णों को भी शामिल कर लिया गया है तो आरक्षण का वह दर्द समाप्त हो गया। अब सवाल आरक्षण को लेकर दलितों - पिछड़ों की हंसी नहीं उड़ा सकते ।  लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के और भी कई तरीके थे।

0 comments: