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Friday, January 25, 2019

आओ विचारें मिल कर...

आओ विचारें मिल कर...

आज हमारा 69 वां गणतंत्र दिवस है। यद्यपि किसी देश के इतिहास में 69 वर्ष बहुत ज्यादा नहीं होते लेकिन इतने कम भी नहीं होते कि अतीत से आती हुई वक्त की पगडंडियों पर वर्तमान की पग ध्वनि ना सुनी जा सके। ध्वनि साफ सुनाई पड़ रही है । आज जिस बात पर सबसे ज्यादा बात हो रही है वह है राष्ट्रीयता और राष्ट्र प्रेम। हम भारतीय हैं और भारतीयता की अपनी पहचान को इस बहस में भूलते जा रहे हैं । हमारे लिए जानना जरूरी है आज की भारतीयता की पहचान के मायने क्या हैं? भारतीयों के लिए भारतीयता क्या है? अक्सर कहा जाता है लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समानता तथा अनेकता में एकता भारतीयता की पहचान की सीमा रेखा है।  इन दिनों इनके अर्थ गुम होते से दिख रहे हैं ,क्योंकि इन शब्दों के पीछे जो वास्तविक इरादा था वह खत्म होता जा रहा है। सलमान रशदी ने अपनी किताब " मिडनाइट चिल्ड्रन " में लिखा है कि "भारत एक सपना था और हम सब सपना देखने के लिए तैयार हो गए। " लेकिन सवाल है कि क्या सब के सब सपना देखने को तैयार हो गए। सपने का मतलब है क्या अभी भी कुछ है और क्या जो सपना देखा गया वह बदल गया है? क्या एक ध्रुवीय विश्व में गुटनिरपेक्षता कोई अर्थ रखती है? संविधान में समाजवाद की बात करना क्या बुद्धिमानी है? यहां तक की हमारी सरकार है जो संविधान की शपथ लेती हैं वह क्या सही है ? खासकर ऐसे मौके में जब अर्थव्यवस्था दूसरी राह अपना रही है। जब हिंदुत्व का उन्माद बढ़ता जा रहा है वैसे में क्या धर्मनिरपेक्षता सही है?क्या 69 वें साल के पायदान पर खड़े होकर आज के दिन यह सवाल पूछना प्रासंगिक है?
      अभी हाल में सभी भारतीय राजनीतिक दलों के नेतृत्व के एक सर्वे में बड़ा ही चिंताजनक तथ्य उभर कर आया कि देश में अभी कोई ऐसा राजनीतिज्ञ नहीं है जो चिंतनशील हो और अपनी चिंता धारा के माध्यम से कोई नई दृष्टि का प्रतिपादन कर सके। सोचना भी बड़ा मुश्किल हो गया है कि कोई एक विचार जो एकदम नया हो  उस पर अतीत की छाप नहीं हो जो भारत को नैतिक रूप से दूसरे सतह तक पहुंचा दे। भारत बेहद गतिशील है लेकिन इसकी सियासत बहुत गतिहीन है।

फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में
      गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने 1921 में लिखा था कि "भारत का विचार उसके अपने लोगों को एक दूसरे से अलग करने की तीव्र चेतना के विपरीत है।" 19वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रीयता का विचार उत्पन्न हुआ था और इसके बाद पाकिस्तान और इसराइल समेत कई देशों की राष्ट्रीयता उसे प्रभावित हुई । वह विचार था "एक  क्षेत्र में लोगों को एक बंद कर दिया जाए जहां उनकी भाषा एक हो और उनके दुश्मन की एक ही हों।" इसके बाद टैगोर और गांधी तथा भारतीय संविधान की राष्ट्रीयता एक सीमा के भीतर के क्षेत्र के अंतर्गत निवासियों के लिए हो गयी लेकिन भाषा और धर्म एक नहीं हुए और ना ही दुश्मन एक। उदाहरण के लिए देखें भारत का करेंसी नोट, जिसमें एक तरफ महात्मा गांधी की तस्वीर है और दूसरी तरफ भारतीय संसद का चित्र। नोट के किनारे 17 भाषाओं और लिपियों  में नोट का मूल्य लिखा हुआ है। हम कह सकते हैं कि भारत का एक नोट हमारी रोजाना की जिंदगी का एक प्रतिबिंब है। हम कभी भी इस दृष्टिकोण से नोट को नहीं देखते और ना ही ऐसा सोचते हैं। इस नोट को देख कर  कुछ ऐसा विचार उत्पन्न होता है कि हम सब एक हैं और जहां एक तरफ धर्म है दूसरी तरफ परमाणु बम भी।
       भारत का आदर्श  बहुलतावादी है।  उसके रास्ते में दो चुनौतियां हैं ,वह है हिंदू कट्टरवाद और क्षेत्रीय अलगाववाद। यह हमारे देश में आरंभ से ही कायम है। हाल में इसमें तीन और चुनौतियां जुड़ गईं वह हैं  असमानता ,भ्रष्टाचार और पर्यावरण प्रदूषण। देश में आमदनी, दौलत और यहां तक कि उपभोग में भारी असमानता पैदा हो रही है । इसके चलते बहुत से लोग अच्छी शिक्षा, अच्छे रोजगार और अच्छी स्वास्थ्य सेवा से वंचित रह जाते हैं।
वह मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
पर दुख देख दयालुता से ,द्रवित होते थे सदा
विभिन्न  विचार जाति, धर्म, क्षेत्र और लिंग के समानांतर चलते हैं। भारत के आदर्श पर आस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है कि देश में ऐसे ईमानदार और सक्रिय राजनीतिज्ञ तैयार हों जो हर उकसावे के बावजूद जनता में लोकतंत्र और विविधता को कायम रखें । हमारे देश का मुकद्दर निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा लिखा जाता है लेकिन चुनाव काले धन जातिवाद और संप्रदायवाद के बल पर जीते जाते हैं। राजनीति में भ्रष्टाचार और संप्रदायवाद के कीड़े पड़ चुके हैं और उसने समग्र "रियल पॉलिटिक" की काया में इतने घाव पैदा कर दिए हैं कि लगता है उन घावों का इलाज शायद ही हो सके और इस कारण हमारे देश के लोकतंत्र का अजीब स्वरूप दिखने लगा है । आज के दिन हमें यह विचार करना होगा कि क्या हमारा लोकतंत्र और उसके सपने वही हैं जो हमारे पूर्वजो ने देखा था, जैसे भविष्य की कल्पना हमारे पूर्वजों ने की थी।
हम कौन थे, क्या हो गए हैं ,और क्या होंगे अभी
आओ विचारें  आज मिलकर, ये समस्याएं सभी

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