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Monday, January 14, 2019

फिंगरप्रिंट की जालसाजी से सीमावर्ती क्षेत्रों में फल फूल रहै हैं आतंकवाद के अड्डे 

फिंगरप्रिंट की जालसाजी से सीमावर्ती क्षेत्रों में फल फूल रहै हैं आतंकवाद के अड्डे 


हरिराम पाण्डेय

कोलकाता : अब तक तो सुना जाता था कि कुछ राज्यों के कई जिलों में जीवित लोग मृत घोषित कर दिए गए हैं। लेकिन अब इसका उल्टा हो रहा है। कई जगहों पर मृत लोग  सरकारी रिकार्ड में जीवित हैं।  यह सब चल रहा है फिंगरप्रिंट की जालसाजी से। अब तक फिंगरप्रिंट को सबसे विश्वसनीय सबूत माना जाता था अपराध विज्ञान की प्रयोगशाला से कोर्ट कचहरी और बैंकों तक में फिंगरप्रिंट के माध्यम से ही सारे कारोबार होते थे। यहां तक कि उसकी विश्वसनीयता के कारण ही कई जगहों पर फिंगरप्रिंट के माध्यम से काम करने वालों की हाजिरी बनती है। लेकिन अब जबकि फिंगरप्रिंट की जालसाजी हो रही है सबसे ज्यादा खतरा सीमावर्ती जिलों में पनपते आतंकवाद से हो रहा है। किसी भी मृत व्यक्ति या जीवित व्यक्ति की उंगली की छाप लेकर उसकी नकल बना ली जा रही है।  उसका इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर कोई पकड़ा जाता है या तो वह मृत घोषित हो चुका रहता है या कहीं दूसरी जगह का आदमी पाया जाता है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सीमांत क्षेत्रों में या गोरखधंधा बहुत जम कर चल रहा है। यहां तक कि उंगलियों की छाप से निर्धारित किए जाने वाले वोटर कार्ड भी अब सही नहीं रहे और यह छाप बनवाना इतना आसान हो गया है कोई भी कभी भी जाकर बनवा सकता है।  सन्मार्ग की खोज  के बाद पता चला कि उत्तर बिहार के सिवान से लेकर गोरखपुर तक और उधर नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में फिंगरप्रिंट बनाने के कई गृह उद्योग चल रहे हैं। नेपाल से आए लोग जिनमें पाकिस्तान से नेपाल के रास्ते या बांग्लादेश से नेपाल के रास्ते आए आतंकी भी शामिल हैं वह किसी भी मृत व्यक्ति का फिंगरप्रिंट बनवाकर और उसके माध्यम से भारतीय कागजात हासिल कर लेते हैं।  बैंकों में अकाउंट खुल जाता है और उसके बाद वह राष्ट्र विरोधी धंधे में लग जाते हैं। खबर तो यहां तक है की लोकसभा चुनाव में नकली फिंगर प्रिंट के आधार पर बड़ी संख्या में लोग वोट देने की तैयारी में हैं। अब यह मतदान कैसा होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा । नेपाल से भारत में आकर और  किसी भारतीय  का फिंगरप्रिंट हासिल कर उसकी नकल बनवाकर और उंगलियों में पहन कर वह अपने को भारतीय प्रमाणित करने लगता है। 
कैसे बनते हैं ये फिंगर प्रिंट
फिंगरप्रिंट बनाने वाले किसी भी गरीब मरणासन्न व्यक्ति की छाप ले लेते हैं। यह छाप वाल पुट्टी या आर्टिफिशल क्ले की चकती पर ले लेते हैं और  उसके वोटर कार्ड इत्यादि मामूली रकम देकर खरीद लेते हैं। उंगलियों की छाप की नकल बना लिया जाता है। सारी चीज हिफाजत से रखी जाती है। अब जो मृत व्यक्ति की छाप चाहता है उसे ऊंची कीमत पर बेचा जाता है। एक उंगली की छाप की नकल हज़ार रुपये में मिलती है। 
जीवित लोगों की छाप बनाने का तरीका दूसरा है। किसी भी चिकनी सतह पर उंगलियों की छाप बहुत जल्दी आ जाती है । अब जिसकी उंगली की छाप लेनी है उसे एकदम नए चकाचक चिकनी सतह वाले कांच के गिलास में कोई पेय, मसलन चाय दी जाती है। वह गिलास को पकड़ता है और गिलास में उसकी उंगलियों की छाप आ जाते हैं। इसके बाद बहुत सफाई से उंगलियों की छाप का मोल्ड बना दिया जाता है और फिर उस पर जिलेटिन पाउडर का घोल ढाल कर उसकी नकल बना ली जाती है और जब वह जम जाता  है तो उसे सफाई से काटकर उंगलियों में पहना दिया जाता है। इसमें घंटे भर का समय लगता है। यह तरीका इतना कारगर होता जा रहा है कि जहां उंगलियों की छाप से हाजिरी बनती थी वहां अब रेटिना को पढ़ने वाले यंत्र लगाए जा रहे हैं । 
यही नहीं जब सन्मार्ग में नेपाल सीमा पर सशस्त्र सीमा  बल के अफसरों से इस संबंध में जानकारी चाही तो वे  सन्न रह गए । उन्हें अभी तक इस गोरखधंधे का पता नहीं था।
   इस धंधे से जुड़े लोगों के अनुसार इसमें लगभग रोज  400 से 500 उंगलियों की छाप बनती है । एक उंगली की छाप के लिए महज ₹250 लगते हैं और अगर पांच उंगलियों की छाप बनानी है तो ₹1000 में बन जाती है। । यह लगभग 20 से 25 बार प्रयोग में लाई जा सकती है। यह इतनी सफाई से बनाई जाती है कि उंगलियों की छाप के विशेषज्ञ भी  धोखा खा जाएंगे।
सूत्रों के मुताबिक इसका उपयोग बैंक धोखाधड़ी से लेकर मतदान केंद्र तक में आराम से होता है। आतंकवादी इसका उपयोग भारतीय कागजात तैयार करवाने में करते हैं।  इसके माध्यम से ही तैयार कागजों के कारण भारत नेपाल सीमा पर भिखनाथोरी के दोनों तरफ चितवन नेशनल पार्क से लेकर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व तक ऐसे कई छोटे-छोटे गांव है जहां कि लोग अपनी उंगलियों के निशान बनवाकर भारत और नेपाल दोनों मुल्कों की राष्ट्रीयता का मजा ले रहे हैं। इसके लिए पहले उन इलाकों में लोगों की तलाश की जाती है जो अपनी उंगलियों की छाप बेच सकें।   उसकी नकल बनवाकर कुछ लोग भारतीय और नेपाली  राष्ट्रीयता के  अलग - अलग  कागजात तैयार करवा लेते हैं। क्योंकि   कागजात नकली है और अगर दुर्भाग्यवश उंगलियों की छाप के आधार पर किसी अपराध में उनकी शिनाख्त होने लगती है तो वह तत्काल छाप बदल देते हैं।  सब कुछ धरा रह जाता है ।खबर है कि बांग्लादेश में चुनाव के बाद यह नकली फिंगरप्रिंट की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है।  संदेह किया जाता है कि इसके माध्यम से जालसाजी कर भारत में प्रवेश करने की तैयारी चल रही है। यही नहीं फिंगरप्रिंट बनाने  वाले गिरोहों के करीबी सूत्रों  के अनुसार असम में  एन आर सी के कागजात की जो पड़ताल चल रही है उसमें भी शायद इसका उपयोग हो रहा है। हालांकि इस उपयोग के बारे में अभी तक कोई विश्वसनीय सूचना नहीं है।

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